मंगलवार, 7 जुलाई 2015

कुकुर


एक दिन मैं पाण्डेपुर की तरफ
पुलिसलाईन की सड़क से जा रहा था
देखा कि एक सिपाही कुत्ता घुमा रहा था
मैं तुरंत रूका, उसकी तरफ झुका
मैंने पूछा
भाई आप कुत्ता क्यों घुमा रहे हैं?
तपाक से कुत्ता बोल उठा
मुझे घुमाने की ही तो तनख्वाह पा रहे हैं
इसलिए मुझे यानी कुत्ता घुमा रहे हैं।
मैंने पूछा भाई ऐसा क्यों और कैसे
कुत्ता बोल उठा सुनिए ये सब होता है ऐसे
वो जमाना गया जब ये
सबके रक्षक हुआ करते थे
इनकी इज्जत थी, लोग इनसे डरा करते थे
गुरु अब जमाना बदल रहा है
पहले ये रक्षक था अब भक्षक हो रहा है।
अब वो जगह हमने ले लिया है
लोग लाखों में हमें खरीद कर लाते हैं,
बढ़िया खिलाते हैं, एसी में सुलाते हैं,
बढ़िया ट्रेनिंग देते हैं और समझाते हैं,
खुद के बच्चे गलियों के आवारा हो जाते हैं।
अगर हमको ये बढ़िया नहीं खिलाएंगे,
सैर-सपाटा टाईमली नहीं कराएंगे,
तो इनके काम हम कैसे निपटा पाएँगे।
इन इंसानों से हम कुत्ते भले हैं,
राग-द्वेष में नहीं पले हैं,
अपना सुख-दुख खुद बाँट लेते हैं,
इंसानो की तरह इंसानों को ही,
नहीं काट लेते हैं ।
मेरा काटा तो मर जाएगा,
ये काटें तो न जियेगा,
ना ही चैन से मर पाएगा।
यदि नहीं सुधरी हालत इनकी,
तो जिंदगी भर ये कुत्ता ही घुमाएगा।
पर मेरी आपसे एक दरख्वास्त है,
हो रही हमारी भी लाईफ फास्ट है,
इतना मत हमको बदल देना,
कुत्ता हूँ, कुत्ता ही रहने देना,
अब तक कुत्ता कहलाता आया हूँ,
इंसान मत कहलाने देना।
                                                                                                                          'बेबाकी'

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