बुधवार, 15 जुलाई 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे ११


मैं थोड़ा निराश लेकिन आश्वस्त हो कर कृष्णेश के यहाँ लौट आया।उन्होंने पूछा कि क्या हुआ तो मैंने उनको सब बताया सिवाय इसके कि मेरा बटुआ कट गया।अलवर वाले स्कूल की बारी थी अब।मेरी पूरी बातचीत शुरुआत से वहाँ के vice-principal साहब से हो रही थी जो एक दक्षिण भारतीय थे।मैंने उनको फोन लगाया तो उन्होंने कहा कि 'Anurag Sir your interview has been postponed and you will be intimated after couple of days as Director Maam has to go out of station in emergency.'

मैं फिर बड़ा निराश हुआ कि तकदीर आखिर मुझसे चाहती क्या है।फिर मैंने पेपर उठाया और vacancies देखने लगा।एक विद्यालय दिखा जिसमें जगह थी।साक्षात्कार के लिए CV लेकर जाना था।अब अगले दिन मैं फिर थोड़ा जोश में गया।सुबह पहुँच गया और अपने बारी की प्रतीक्षा कर रहा था कि मुझे एक परिचित चेहरा दिखा।नजरें मिली तो उन्होंने भी पहचान लिया।

ये थीं श्रीमति कालरा जिनसे मेरी मुलाकात 2010 दिसंबर में हुई थी जब मैं बी. एड की परीक्षा दे रहा था।दिल्ली की एक और हकीकत से मेरा परिचय हुआ था मेरा उनके माध्यम से। चुंकि IGNOU से बी.एड inservice teachers ही कर सकते हैं तो जितने वहाँ थे सब टीचर ही थे।मेरी परीक्षा के दौरान जान पहचान हो गई और वो अपने बच्चे के ऐडमीशन को लेकर बहुत चिंतित थी।कहा कि बहुत सारे स्कूलों के फार्म डाल दिया है और 30000 खर्च किया फार्म पर फिर भी आश्वस्त नहीं थीं कि ऐडमीशन मिल ही जाएगा।उन्होंने कहा कि कुछ से बातचीत चल रही है, तो मुझे लगा कि सिफारिश की बात कर रही हैं।खैर एक दिन परीक्षा के वक्त बड़ी खिली-खिली नजर रहीं थीं तो मैंने भी पूछ दिया मजाक में ही 'क्या मैम बड़ी खुश और खिली नजर रहीं हैं, भाई साहब ने कुछ गिफ्ट दिया क्या कुछ अनोखा या बेटे का दाखिला हो गया।'
उन्होंने कहा 'सर मेरे बेटे का ऐडमीशन हो गया और मैंने 4 लाख रुपए बचा लिए'
मुझे ये 'बचा लेने' वाली बात समझ में नहीं आई तो हम बकलोल आदमी पूछ दिए कि 'मैडम आपका बेटा इतना टैलेन्टेड है कि स्कूल ने आपको 4 लाख रुपए दिए?' उन्होंने कहा 'नहीं सर ऐक्चुअली डील 9 लाख में शुरू हुई थी और फाइनली 5 लाख में सेटल हुई।'


मैंने सोचा कि इस महिला को इस बात की खुशी है कि 4 लाख बचा लिए इसने, इस बात का गम नहीं है कि 5 लाख पानी में चले गए।जिस इंसान ने 5 लाख नर्सरी के ऐडमीशन के लिए दिया है घूस में उसके लिए तो स्कूल शिक्षा का मंदिर नहीं बल्कि दुकान है और वह एक अभिभावक होकर अपने को एक कस्टमर समझेगा और अपने बच्चे के अंदर भी यही विकसित करेगा।बच्चा फिर तो विद्यालय और शिक्षकों को ठेंगे पर लेकर चलेगा।किस तरह की शिक्षा इस दुकान से मिलेगी और किस तरह का चरित्र निर्माण होगा।और ये मैडम खुद शिक्षा के क्षेत्र में रहकर उसके बलात्कार में अपना योगदान दे रही हैं।
वैसे आजकल शिक्षा के बलात्कार का रेट 5 Star दुकानों में 40 लाख या एक low-floor AC bus है।बच्चे के अंदर बलात्कारी चरित्र का निर्माण नर्सरी से ही शुरू हो जाता है। वह बच्चा जब भी आगे, जिस क्षेत्र में जाएगा उसका बलात्कार करेगा।


खैर जब उनके विद्यालय में मेरी मुलाकात उनसे हुई तो उन्होंने कहा 'सर आप यहाँ कैसे?' मैंने बताया तो उन्होंने कहा कि 'सर आप जैसा साधारण रहने वाला व्यक्ति यहाँ काम नहीं कर पाएगा।' मैंने कहा 'क्यों?' उन्होंने कहा 'यहाँ फैशनेबल टीचरों को रखते हैं।' मैंने कहा 'यहाँ टीचर पढ़ाने नहीं catwalk करने आते हैं क्या? मेरे इस प्रश्न पर वो हँस दीं और कहा ' कुछ दिन पहले की बात है एक टीचर है फिजिक्स की जो बहुत साधारण ढंग से रहती है लेकिन पढाती बढ़िया है।उसकी सैलरी रोक दिया प्रिंसिपल ने और accountant को बोला कि जब ये रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने आए तो मेरे पास भेज देना।वो जब गई एकाउंट सेक्शन में तो उसे मैडम का संदेश दे दिया गया।वो सीधे वहाँ से principal chamber गई और पूछा अपनी सैलरी के बारे में।Principal ने तुरंत अपनी P.A को बुलाया और उसको 10000 रुपए दिए और कहा इन्हे बाजार ले जाकर कुछ Branded कपड़े दिलाओ और Parlour में जाकर इनका हुलिया बदलवाओ फिर ही इनको इनकी तनख्वाह मिलेगी। वो टीचर इतनी लज्जित हुई कि वहाँ से बाहर निकल कर आई और दूसरे दिन त्यागपत्र दे दिया।' 
मैं तो अवाक रह गया और मैडम से कहा 'मैडम मैं तो ठेठ बनारसी आदमी, अपना काम अच्छे से करना जानता हूँ सब क्रीम-पाऊडर-लिपस्टिक हमसे नहीं हो पाएगा।' इतना कहकर मैं मैडम को धन्यवाद कहा और चला आया बाहर।
फिर मायूसी और चिंता लेकिन जब शाम को कमरे पर पहुँच कर मेल चेक किया तो देखा कि अलवर वाले स्कूल से मेल आया था।मायूसी के बीच एक आशा कि किरण।
                                                                                                                                      (शेष अगले अंक में)
'बेबाकी'

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