गुरुवार, 9 जुलाई 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे ७

अब मेरे पास कुल जमा-पूँजी 4000 रुपए बच गए।अब आप बताईए जो बनारसी पान खाता हो वो 4000 रुप्पली में क्या उखाड़ लेगा।का नहाई अउर का निचोड़ी।यदि आप पान के शौकीन हैं और खाली बैठे, मानसिक संतुलन में हों तो पान की संख्या बढ़ जाना तो स्वाभाविक है।अब बताइए कि पान पर हथौड़ा पड़े तो अच्छे-अच्छों का मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाए, हमारी हालत तो खुद ही खस्ताहाल थी।

घर से आने के अगले दस दिनों में कुछ ऐसे भी दिन थे जब कहीं निकलने का मन नहीं किया तो घर में गुमसुम बैठा रहता था।यहाँ इस परीक्षा की घड़ी में एक व्यक्ति जिसके परिवार ने मेरे ध्यान को बटाने की कोशिश की वो हैं डाॅ.अनिल टपलू।अनिल जी के बेटे को मैंने विद्यालय और घर पर दोनों जगह पढ़ाया है।अनिल जी एक निर्वासित कश्मीरी पंडित है जिनके पिताजी श्री टीका लाल टपलू पहले कश्मीरी पंडित ही नहीं पहले हिन्दू थे जिनको उग्रवादियों ने पंडितोें को आतंकित करने के लिए गोली मारी थी।उनको गोली मारकर ही उग्रवादियों ने कश्मीर में अपने रणनीति का श्रीगणेश किया था। श्री टीका लाल टपलू राजनीति में सक्रीय थे और Kashmir BJP के उपाध्यक्ष थे और उन्हें 'Lion of Kashmir' कहा जाता था।बहुत कहानियाँ सुनने को मिली टपलू जी के बेटे और बहू से।

टपलू साहब और उनकी धर्मपत्नी मेरा बहुत सम्मान करते हैं और शिक्षकों की बहुत इज्जत करते हैं।वो मेरे फ्लैट से चार फ्लैट छोड़कर कर रहते थे।शाम को अमूमन जाते थे और पकड़ कर घर ले जाते थे चाय पिलाने के लिए ताकि मेरा ध्यान बटा सकें।

उन्होंने कहा सर जब तक आपकी जाॅब नहीं लगती है तब तक आप मेरे यहाँ ही लंच और डिनर करेंगे।मैंने मना किया तो उनकी धर्मपत्नी ने कहा 'सर मुझे मालूम है कि आप एक बहुत सिद्धांतों पर जीने वाले व्यक्ति हैं और आपका स्वाभिमान आपको इसकी इजाजत नहीं देता है।लेकिन आप मेरी बात को समझने की कोशिश करिए, पहली बात तो हम लोगों ने आपको अपने घर के सदस्य की तरह समझा है।हम लोग भी कश्मीर से जब निर्वासित हुए तो हमको भी किसी ने सहारा दिया था।मुझे मालूम है कि आप जिस मानसिक अवस्था से गुजर रहे हैं उस अवस्था में हम आप पर कोई एहसान नहीं कर रहे हैं।आप हमारे यहाँ खाने आएंगे तो हमें अच्छा लगेगा और इसे हमारी तरफ से दक्षिणा समझिए जो आपने मेरे बेटे अनमोल को दिया है।

जब मैं अपने कमरे पर रहता था तो कभी कभार उनके यहाँ चला जाता था।चाय-नाश्ते के दौरान उनके संघर्षों की कहानियाँ सुनता था।बहुत कुछ जानने को मिला जो कि बहुत ही काम आता है जब मैं पढा़ता हूँ 'भारतीय राजनीति'।टपलू दम्पति ने मेरे मन को उन सब चीजों से कुछ देर के लिए ही भटकाया और वह बहुत कारगर हुआ मेरे लिए।मैं ताउम्र उन लोगों का आभारी रहूँगा।

लेकिन ये कितने दिन चलता?
                                                                 (शेष अगले अंक में……….)

'बेबाकी'

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