बुधवार, 2 दिसंबर 2015

Parasitism

एक दिन हमरा एक ठो शिष्य मंगरुआ बहुते खुनसाया हुआ हमरे पास आया।अँखिया से लोर भी चुआ रहा था।पढ़ने में गदाईये टाइप था लेकिन करेजा का बहुत साफ अऊर बेबाक टाइप था।हम पूछे 'का हुआ रे मँगरुआ? काहे तुम्हरे आँख में कोशी नदी नियर बाढ़ आया हुआ है?'
बोला कि 'गुरुजी ऊ जीव विज्ञान वाली मैडम बहुत मारी हैं अऊर बहुत फूहर-फूहर बोली हैं भर कलास के आगे। कह रहीं थी कि हमारे माई-बाऊ को भी बुलाएंगी।माई-बाऊ आएँगे तो बहुते बुरा हो जाएगा।'
हम पूछे कि 'एतना का हो गया कि मैडम इतनी असहिष्णु हो गईं हैं अऊर तुम्हारे पीछे कसम खाकर पड़ गई हैं?'
मगरुआ बोला 'गुरुजी टेस्ट हुआ था अऊर हम उसमें फेल हो गए हैं'
हम बोले 'अरे बुड़बक पढ़ेंगा नहीं तो फेल होबै न करेगा?'
'अरे गुरुदेव इस बेर तो हम जम के मेहनत किए थे लेकिन पता नहीं मैडम अपनी ललिता पवार टाइप सास की तरह क्यों व्यवहार करती हैं मेरे साथ। कुछहु लिखो काटकर अंडा दे देती हैं जईसे कि हमको अंडा देकर उनका हिया जुड़ा जाएगा' मँगरुआ बोला।
हम कहे 'अबे मँगरुआ अईसा का आया था अऊर तुम का लिखकर आए कि मैडम अपनी सास का गुस्सा तुम पर उलट दीं?' मँगरुआ बोला 'गुरुजी आपको इहां का बताएँ, आप खुदै चलकर देख लीजिए कि हम का लिखे हैं अऊर मैडम कईसे रेत दीं हमको'।
हम बोले कि चल मँगरुआ देखते हैं लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि मूड़ी अपना गोत कर रखना काहे कि जनबै करते हो कि मैडम खुर्राट टाइप हैं अऊर मैडम लोग से थोड़ा हम डेराते हैं अऊर कम बोलते हैं लेकिन सत्य का साथ देते हैं। अऊर तो अऊर सही बताएँ जीव विज्ञान वाली मैडम अइसी जीव हैं जिनका विज्ञान आज ले हमारे माथा में नहीं घुसा।हम चल दिए मँगरुआ के पीछे-पीछे अऊर मैडम के पास पहुँच गए। मैडम से हम बहुत विनम्रता से पूछे ' What happened Maam? Why Mangaruwa is so much upset? He is very scared and is crying a lot'
मैडम बोलीं 'Mr Singh! What rubbish he wrote in his paper? There was a question in paper. What is parasite? Explain with the help of examples its features. And you know what he has written?'
हमको समझ में आ गया कि जरूर ससुरा कुछ अंड-बंड लिखा होगा। हम मँगरुआ को डाँटते हुए बोले 'What Madam is saying? You have written nonsense in the paper. And when you will write bullshit then you will fail only.'
मैंने उन वैज्ञानिक जीव से पूछा ' Could you please read what he wrote?'
मैडम ने कहा 'Yes Sir, I will read for you. He wrote,Parasites are plants or animals that live on, or in, another organism  (the host ), getting their nutrients from that host.'
मैंने कहा ' Madam though I don't teach biology but I know little bit. I think he is absolutely right. You could have given him marks for this.' मैडम ने थोड़ा अपने बीपी को ऊपर करते हुए और गले की विंडपाईप पर जोर लगाते हुए और थोड़ा सा ऑक्सीजन की मात्रा को अपनी नासिका में बढ़ाते हुए कहा "Sir I have already given marks for this but what he wrote as examples and explanation he gave, I gave him zero for that and I know he wrote that explanation under your influence.'
एक तो हम अईसहीं बिज्ञान से डेराते हैं अऊर ऊपर से ऐसा जीव हो सामने तो अपना ही  मनोविज्ञान गड़बड़ाने लगता है। मैडम उधर वाईब्रेट कर रही थीं गुस्सा से अऊर उधर मँगरूआ ऑस्सीलेट करने लगा तो हम हार्मोनिक मोड में आ गए नहीं तो दूनों सर्कुलर मोड में आ जाएँगे। मैडम से मैंने मामले को ठंडा करने के लिए कहा तो मैडम तो पूरा हीटिंग मोड में आ गईं। उन्होंने कहा 'No, Mr Singh let me read it for you. He is your favourite student and you came to favour him and take his side.' मैडम को समझाते हुए कहा 'Leave it Maam . Be cool and calm.'
मैडम ने कहा देखिए parasites के गुण क्या लिखा है ', लेकिन मैंने तुरंत मैडम से कहा 'मैडम थोड़ा हिन्दी में बांचिएगा तो हमको समझ में ठीक से आएगा काहे कि खुनवा में उहे दऊड़ रहा है। अंग्रेजी ज्यादा देर तक सुन नहीं पाता हूँ कनवा भभाने लगता है अऊर धुअँटने लगता है। मैडम ने समझते हुए मुझे पहला गुण सुनाने लगीं -
1. The parasite should have high searching capacity of host and utilize the host.
मतलब कि परजीवी के पास तीव्र क्षमता होती है अपने पोशी को खोजने और उसका लाभ लेने की। और व्याख्या आपके शिष्य ने लिखा है 'कि जैसे भारत के आजाद होने के बाद देश पूरा परजीवियों के हाथ में आ गया। राजनेता, साहित्यकार, इतिहासकार, मीडिया इत्यादि हर क्षेत्र में परजीवियों का बोलबाला हो गया।
2. It should be fairly host specific in feeding rather than polyphagous i.e. restriction in feeding habit to a relatively few species. This implies high degree of adaptation.
मतलब कि परजीवी में एक अद्भुत कला होती है और वह अपना काम निकालने के लिए बहुत ही आसानी से संयोजित हो जाते हैं। ऊपर बताए हुए परजीवियों में गजब की संयोजन क्षमता होती है। अपना चारा(पद,गरिमा,पुरस्कार इत्यादि) के खातिर इन परजीवियों ने अपने पेशे के सिद्धांतों एवं मूल्यों से जमकर समझौता किया। इनका चारे का जुगाड़ पूर्णतः अपने आकाओं की दैवीय छवि बनाने एवं गढ़ने पर निर्भर करती है। इतिहासकारों ने फर्जियों को ऐतिहासिक बना दिया,साहित्यकारों ने साहित्य लिखकर महिमामंडित किया, कलाकारों ने अभिनय करके और जो वाकई में ऐतिहासिक थे और डिजर्व करते थे या तो उनको दरकिनार किया गया या तो विलेन बना दिया गया।मीडिया ने खूब झाल मजीरा बजाकर खूब गुणगान किया और कई सड़क छाप पत्रकार आज कई चैनलों के CEO बन बैठे हैं।जैसे क्लीनिक में काम करने वाला कंपाऊंडर खुद क्लीनिक खोलकर अपनी दुकान चलाने लगता है। वैसे ही ये सब परजीवी अपनी-अपनी क्लीनिक खोलकर मठाधीस हो गए।
3. Parasites increase their own fitness by exploiting hosts for resources necessary for their survival, e.g. food, water, heat, habitat, and transmission.
मतलब कि परजीवी अपनी तंदुरुस्ती की खातिर और चारा की खातिर पोशी का जमकर दोहन करते हैं। जैसे कि भारत में ऊपर बताए गए परजीवी अपने शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं राजनीतिक तंदुरुस्ती की खातिर राष्ट्र का दोहन करते हैं। पद, धन, सत्ता, आधिपत्य इत्यादि इनके चारे हैं।
4. Parasites reduce host biological fitness by general or specialized pathology, such asparasitic castration and impairment of secondary sex characteristics, to the modification of host behavior.
मतलब की परजीवी अपने स्वार्थ के लिए अपने पोशी के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है और भीतर ही भीतर उसको खोखला करता है और पोशी के अंदर नए नकारात्मक लक्षण विकसित होने लगते हैं जिनको वह अपने आचरण में प्रदर्शित करने लगता है।
इसकी व्याख्या इसप्रकार मँगरुआ ने की है। भारत स्वतंत्रता के पश्चात जिस जींर्ण-शींर्ण अवस्था में छोड़ गए थे उसके बावजूद भी भारत के अंदर अदम्य क्षमता थी कि वह फिर से अपने को पुनः स्थापित कर सकता था क्योंकि भारतीय सभ्यता की जड़ें बहुत मजबूत रही हैं लेकिन इन परजीवियों ने भारत की सभ्यता,संस्कृति और मूल्यों की जड़ों को हिलाना शुरू किया। नफरत, भ्रष्टाचार, व्यभिचार, शोषण, धार्मिक उन्माद, हिंसा,भाई- भतीजावाद, रक्तपात, वैमनस्य इत्यादि की भावना इस तरह से स्थापित किया कि आज अकर्मणयता और यह सब मूल्य लोकाचार हो गए हैं। सही तरीके और मेहनत से कोई कुछ पाना ही नहीं चाहता है, दूसरे का गला भी कट जाए लेकिन अपना एक बाल भी नहीं टूटने चाहिए।
मैडम इतना बोली ही थीं कि मैंने उनको बीच में ही काटकर कहा ' मैडम छोड़ दीजिए।मुझे समझ में आ गया है कि मँगरुआ आगे का लिखा होगा।'
लेकिन मैडम गुस्से से खून की तरह लाल होते हुए बोलीं ' No Mr. Singh, listen further. Don't have courage to listen what your favourite student has written. You know his qualities and level very well then also you came to me and you are challenging me and my competency.'
मैंने तुरंत मामले की गंभीरता और नजाकत   समझते हुए तुरंत कहा ' नहीं मैडम, मैं बकलोल आदमी आपकी competency challenge करूँगा। मैडम आपकी competency चेक करने के लिए competent भी होना पड़ेगा और बहुत मजबूत कलेजा चाहिए और मेरे अंदर दुनहू नहीं है। मैं तो केवल इस लिए आ गया क्योंकि मँगरुआ भोकर-भोकरके रो रहा था अऊर कह रहा था कि बहुत मेहनत करके पढ़ा था इस बेर। एतना रोते हुए आज ले हम उसको नहीं देखे हैं'। फिर मैं मँगरुआ के तरफ पलट कर उसको गुर्राते हुए बोला 'You fool. What do you think of yourself, that you are brilliant and you try to behave like a biologist.' एक तो ससुर अंड का बंड लिखते हो अऊर ऊपर से बुलुक्का फाड़ कर भोकरके रोते हो। मैडम के सामने मेरी इज्जत उतार दिया तुम।भाग जाओ इंहा से अब। मैडम बहुत इनटेलिजेंट हैं तुमको बुझाता नहीं है। अपने नियर समझ रक्खा है?'
मँगरुआ तुरंत रोते हुए बहुत गुस्से से वहाँ से निकल गया और फिर मैंने मैडम से कहा 'मैडम बुरा मत मानिएगा तो एगो बात बोलें?' मैडम ने बिंदु टाइप मुँह बिचकाते हुए बोलीं  'ठीक है बोलिए'।
'मैडम भले मँगरुआ आपके विज्ञान के हिसाब से भले अंड-बंड लिखा है लेकिन मेरे मनोविज्ञान के हिसाब से बिलकुले सही लिखा है। मैडम आप भले ओकरा को गदहा कहिए लेकिन हमरे हिसाब से ऊ बहुत तेज लईका है अऊर शायद उस जीव से भी तेज जो आपके जीव विज्ञान में पूरा नंबर पाया है। उसका skill देखिए मैडम केतना सुंदर ढंग से inter-disciplinary skill का उदाहरण प्रस्तुत किया है उसने। मैं खुदै आपसे यह पूछना चाहूँगा कि क्या parasite जानवरों में ही हो सकते हैं।मनुष्य क्या parasitic लक्षणों को प्रदर्शित नहीं कर सकता है या करता है? मँगरुआ ने जो explanation दिया है मुझे तो एकदम ही सही लगता है। मनुष्य भी तो एक जीव है और भारत में जिन परिजीवियों का नाम मँगरुआ लिया ऊ सब भी दूसरे जीवों का हक मारकर, लोगों के बीच उन्माद बढ़ाकर देश को अस्वस्थ ही तो कर रहे हैं। भ्रष्टाचार में लिप्त होकर और भाई-भतीजावाद को प्रश्रत देकर उन्होंने अपने जैसे परजीवियों के प्रजनन की प्रवृत्ति को ही देशाचरण बनाया है। इन सब प्रवृत्तियों के कारण भारतीय सभ्यता और संस्कृति क्या अपना स्वरूप नहीं बदल रही है? चोरी, दलाली, हिंसा, नग्नता, तिरस्कार, भ्रष्टाचार, वैमनस्य इत्यादि भारतीय जनमानस  के लक्षण बन गए हैं और जो हकदार हैं इस देश की सभ्यता, संस्कृति और मूल्यों के वाहक हैं वह दरकिनार कर दिए गए या उन लोगों ने भी परिस्थितियों के सामने घुटने टेक दिए और समझौता कर लिया। आप उन सबको परजीवी नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगी? मैडम try to be tolerant and try to think something out of the box also and don't behave like a parasite.'
इतना कहते ही मैडम फुंकारने लगीं और तमतमाते हुए, पैर पटकते हुए स्टाफरूम की तरफ चल दीं।
बाह रे मँगरुआ बाह! तोर भविष्य बड़ा उज्ज्वल लऊकत ह हमके। जीव-वैज्ञानिक भले ना बन पईबे लेकिन राजनीति-वैज्ञानिक जरूर बनबे। भोले बाबा विश्वनाथ कृपा बनाएँ रखें हमेशा तोहरे ऊपर।
                                             
'बेबाकी'

शनिवार, 14 नवंबर 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे २०

छः बजे तक सबकुछ समाप्त हो गया था और जीवन का अंतिम सत्य सामने था।जीवन के अंतिम समय आपको विदा करने कितने लोग आएं हैं उससे आपकी हैसियत का अनुमान लगता है और वही आपके कमाई की वास्तविक पूँजी है।
(अब आगे)
हम बनारस वाले दोस्त घाट से बाहर आकर एक जगह इकट्ठा हुए।मुझे तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है।मुझे आज भी लगता है जैसे उस समय कोई मुझे धक्का देकर चला रहा है या कहिए कि मुझे रिमोट से कोई चला रहा था ।मैं वहाँ से आनंद भईया के साथ उनके घर चला आया।नहाने के पश्चात मेरा मन बहुत ही बेचैन हो गया तो मैं कपड़े बदल कर बाहर आ गया।कुछ देर ऐसे ही सड़क पर टहलता रहा।फिर पता नहीं क्या दिमाग में आया रिक्शा पकड़ कर स्कूल चल दिया।वहाँ पहुँचा तो देखा कि भईया की एक फोटो रिशेप्शन पर एक मेज पर लगाई गई थी और माला चढ़ाई गई थी और बगल के मेज पर एक थाली में ढेर सारी गुलाब की पंखुड़ियाँ रखी हुई थी।मैंने पुष्प अर्पित किया और सीधे प्रिंसिपल के चैंबर में गया।मुझे देखते ही प्रिंसिपल उठ खड़ी हुईं और उनके आँखो से आँसू बहने लगे।मुझे बैठने कहने के पश्चात चर्चा होने लगी और उन्होंने कहा 'Anurag when Sharad informed me instantly your face appeared in front of my face and immediately I asked Sharad that have you informed Anurag. He told me that yes he informed you.'
फिर उन्होंने कहा कि Anurag go and meet other teachers.मैं एक एक फ्लोर होता हुआ तीसरे फ्लोर पर गया जिस फ्लोर पर वह कक्षाएँ थी जिनको हमने और भईया ने पढ़ाया था।सब टीचर अपनी अपनी कक्षाओं में थे।जैसे ही मैं गैलरी में पहुँचा और एक कक्षा में प्रवेश किया तो बच्चे खड़े हो गए और कुछ बच्चे अपनी सीट पर से उठकर आकर लिपटकर रोने लगे।फिर सामने वाली कक्षा के टीचर ने देखा तो वह आ गए और उनके पीछे-पीछे बच्चे भी आ गए और मुझे घेर कर रोने लगे।मुझे बहुत उलझन होने लगी, मैं तुरंत कक्षा से निकल आया और जैसे गैलरी में आगे बढ़ा सभी क्लास के बच्चे एक-एक करके निकल कर आकर घेर कर रोने लगे।मैं बहुत परेशान हो गया और मुझे लगा कि मुझे चलना चाहिए नहीं तो स्कूल का वातावरण बोझिल हो जाएगा।मैं तुरंत तेजी से भागा और निकल कर बाहर आ गया।दो घंटे रहने के बाद मैं चला आया।तब तक पिताजी का काॅल आया कि कैंट रोडवेज आकर मिलो क्योंकि घर से खबर हो गई थी कि मैं बनारस में हूँ।पापा गाँव से आ रहे थे।मैं मिलने गया और उनको बताया तो वह भी सदमें में आ गए।मैं बनारस फिर 25 तारीख को भी रहा और 25 की शाम को शिवगंगा पकड़ कर 26 जनवरी को सुबह दिल्ली पहुँच गया।विद्यालय की छुट्टी थी तो मैं दिन भर घर में ही रहा।
27 को सुबह मैं विद्यालय पहुँचा तो देखा तो फिजा पूरी तरह बदल चुकी थी।मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मेरी अनुपस्थिति में कुछ विभाग में हुआ क्या? मुझसे कोई बात नहीं कर रहा था।मुझे भी किसी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी, क्योंकि मैं अकेला पुरुष था और मुझे थोड़ा डर भी लगता है उनसे बात करने में और झिझक भी होती है। मैं ऑफिस में गया और एक छुट्टी का फार्म लेकर भर कर जब विभागाध्यक्ष के पास गया उस पर हस्ताक्षर के लिए तो उन्होंने बिना कुछ बात किए उस पर हस्ताक्षर करके बिना आँख ऊपर किए एक तरफ टरका दिया।
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।3-4 दिन के पश्चात मुझे स्कूल की काऊंसलर ने बुलाया और कहा 'Anurag Sir without permission and information you went on leave for couple of days. ऐसे किसी की भी डेथ पर आप चले जाएंगे।'
मैंने उनसे कहा ' मैडम किसी की डेथ का मामला नहीं है जो गया है वह मेरे भाई थे। Madam though he was colleague but for me he was elder brother. Our relationship was of that type that kids of my school use to consider us real brother.'
मैंने उन्हें समझाया और हालात बताया और कहा 'Ma'am I think whatever was the condition but I think as a human being I think I need to be sensitive enough and address such situations.'
अब तक मैं बहुत संयमित होकर बात कर रहा था लेकिन इसके बाद उन्होंने जो कहा उससे तो मेरा पारा चढ़ गया और मुझे अपने गुस्से को नियंत्रित करने के लिए मुझे मुट्ठी भींचना पड़ा।उन्होंने कहा ' Mr Anurag I giving you my example. Sir I came to school on that day also when my grandfather passed away. I am totally committed towards my profession'. इतने में मैंने उन्हें बीच में टोका और कहा "Ma'am he was your grabfather and where I went that person was my elder brother, I wouldn't have done if I would have been in your place and moreover Ma'am if you are insensitive that is not my fault. Remember Maam नौकरी परिवार के लिए है, परिवार नौकरी के लिए नहीं।'मेरी आवाज तेज होती जा रही थी और चेहरा लाल होता जा रहा था।मैंने अपनी बात जारी करते हुए कहा 'Maam now I have serious doubt over the type of counseling you provide to these kids and their families and parents. I find you a major reason behind the indiscipline in the school. Your counseling can never unite a family rather wherever you will be involved a united family will divide.'
मैं एक सांस में कहता गया और जहाँ भी उन्होंने बीच में टोकने की कोशिश की मुझे मैंने तुरंत कहा कि 'let me finish'. इतना कहने के बाद उनके पास कुछ कहने के लिए रहा ही नहीं।मैंने सोचा कि इस विद्यालय में नहीं रहना है जहाँ का मैनेजमेंट संवेदनहीनता की पराकाष्ठा पर है और खास बात कि यह विद्यालय दिल्ली/एनसीआर का नामी विद्यालय है जहाँ पढ़ाने में टीचर को गर्व का अनुभव होता है लोगों के लिए स्टेटस का प्रश्न होता है।मैं वहाँ से निकला और सीधे रिसोर्स सेंटर में जाकर एक त्यागपत्र टाइप करके अपने मेल में सुरक्षित किया और प्रिंट लेकर पर्स में रख लिया कि यदि कुछ आगे हुआ और एक शब्द कोई कहा तो वाक्य पूरा करने के पहले त्यागपत्र रख दूँगा।फरवरी का महीना चल रहा था और वार्षिक परीक्षा शुरू होने वाली थी।मेरी भी कुछ नैतिक जिम्मेदारी बनती है बच्चों के प्रति और यह मैंने भईया से ही सीखा था।मेरे पास कक्षा 12 का एक विद्यार्थी था उसके प्रति भी मेरी जिम्मेदारी थी।बच्चा बहुत मेधावी था और बहुत संस्कारी था और नाम भी अनुराग था।उसका बोर्ड का मेरा पर्चा 7 मार्च को था।जिस दिन अनुराग का इतिहास का पर्चा खत्म हुआ मैंने उसी दिन अपना त्यागपत्र बड़ी प्रेम के साथ दे दिया।मुझे लगा जैसे मैंने अपने ऊपर से बहुत बड़ा भार उतार दिया हो।चुंकि एक महीने पहले नोटिस दिया था तो एक महीना जाना ही था लेकिन एक एक दिन मेरे लिए जंग लड़ने के समान था।फिर मुझे एक दिन बुलाया गया और कहा गया कि अनुराग सर आपका त्यागपत्र हम 1 अप्रैल से मानते हुए चल रहे हैं क्योंकि आपको बोर्ड की उत्तरपुस्तिकाओं के मुल्यांकन के लिए जाना पड़ेगा, बोर्ड से पत्र आया है।मैंने भी हाँ कह दिया क्योंकि अभी मुझे अपने वाले त्यागपत्र के अनुसार 15 दिन और जाना था और यदि मैं बोर्ड के पर्चों के मुल्यांकन के लिए गया तो यहाँ आने से बच जाऊँगा।मैं अगले दिन से अपने कार्य पर।कार्य पूरा होने पर एक दिन विद्यालय गया और सब कुछ सौंप कर निवृत हो गया।घर में किसी को नहीं बताया था।अब पूरा दिन खाली कमरे पर बैठा रहता था और इतने में ही कुछ दिन के बाद पिताजी छोटी बहन की शादी के सिलसिले में आ गए और 20 दिन करीब रह गए।इसके बाद क्या-क्या हुआ मैंने पहले के भागों में लिख ही दिया है।
भईया आप मेरे मन-मस्तिष्क में हमेशा रहे हैं और आज शारीरिक रूप से साथ रहते तो आपको फोन करके या आपके पास डाइरेक्ट पहुँच कर यही कहता -
'Many-many happy returns of the day Bhaiya. Happy Birthday Bhaiya'
जन्मदिन मुबारक हो भईया......... 
चिठ्ठी न कोई संदेश,.............

'बेबाकी'

खदेरनबो

हरिहरबो अपने पतोह को देखकर बहुत इतराती थीं और इतराए भी काहे नहीं। बहु बहुत सुघ्घर, मलाई नियर चिक्कन अऊर गोरी थी। पढ़ी भी अपने इलाका में सबसे ज्यादा थी। अऊर तो अऊर 5'4" लंबी भी थी,माल भी बढ़िया-बढ़िया लाई थी अऊर बढ़िया अमाऊंट में भी। पूरा मोहल्ला में चर्चा हो गया हरिहरबो के पतोह को लेकर। लेकिन समस्या खदेरनबो को थी।उनके करेजा पर तो साँप लोट रहा था, करेजा धुंकनी की तरह जल रहा था। खदेरनबो भी कसम खा लीं कि हमहू अपने मँगरुआ का बियाह करेंगे तो उससे सुगघर, उससे चिकनी अऊर उससे पढ़ी-लिखी पतोह लेकर आएँगे जो कई गुना माल लेकर आएँगी। हरिहरबो की पतोह का चर्चा तो मोहल्ला में है हमरी पतोह का चर्चा इलाका में होगा।
खदेरनबो कुनकुनाते हुए पहुँच गईं खदेरन के पास अऊर जोर डालने लगीं कि मँगरुआ का बियाह देखिए। इधर खदेरन तिलकहरू जुगाड़ने लगे उधर खदेरनबो हरिहरबो अऊर उनके पतोह में खोट निकाल कर घर घर चर्चा करने लगीं। हरिहरबो बहुत अईसन हैं तो वईसन हैं, पतोहिया गोर नहीं है खाली किरीम-पाऊडर पोतती है, समधी को बेचकर पईसा लिया, गाड़ी में तेल भरावे भर का पईसा नहीं है अऊर दुआरी पर गाड़ी रखकर भौकाल बनाता है। खदेरन के बेटा का बियाह अब इज्जत का बात हो गया पूरे परिवार के लिए।रर-रिश्तेदारी में भी सनेश पहुँच गया अऊर तो अऊर चारो ओर हरिहर अऊर उसके पतोह का बुराई का चर्चा होने लगा।
तिलकहरू रोज दुआरी पर आने लगे। इधर खदेरनबो तिलकहरू का फोटो देखतीं,नाक भौं सिकोड़तीं। लईकी छोट है पाँच-पाँच चाहिए, सुग्घर नहीं है, गोर चाहिए, पढ़ी लिखी भी कम है थोड़ा अऊर होना चाहिए तो उधर खदेरन रोज बजारी में चाय-पान की दुकान पर भौकाल बनाने लगे अऊर हरिहर को गरियाने लगे। खदेरन के साथ उनका बनिहार रोज साथ जाता था अऊर हाँ में हाँ मिलाता था। जब कऊनो गाड़ी नई चार पहिया खदेरन देखते तो सबसे यही कहते 'मँगरुआ के बियाह में इहे गाड़ी लियाएगी। रोज एक ठो गाड़ी देखते, दाम पूछते अऊर मोंछ टे कर यही बतिया रोज दोहराते। हरिहर अऊर खदेरन का एक परिवार से कुछ विवाद चल रहा था लेकिन खदेरना को तो हरिहर का मिट्टी खराब करना था तो खदेरन उधर चोंच लड़ाने लगे, बइठने लगे खूब छनने लगी।
हरिहर बेचारू को कोई फर्क नहीं पड़ता।ऊ अपने काम धंधा में व्यस्त,हाड़ तोड़ कर मेहनत करते।बचवा उनका अपना काम करता अऊर मस्ती में कट रही थी। हरिहर के पास सब समाचार पहुँच जाता था लेकिन कुछ नहीं बोलते। वह जानते थे कि वह ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं। क्या क्या नहीं कहा लोगों ने उनके बारे में, उनकी मेहरारू,पतोह अऊर बेटवा के बारे में लेकिन कुछ नहीं बोलते। कष्ट तो होता बेचारू को। लोग रोज-रोज आकर सवाल पूछते, भला-बुरा कहते लेकिन हरिहर का करते बेचारू।
तिलकहरू लोग रोज खदेरन के दरवाजे पर लाइन लगाए रहते। खदेरनबो लईकी का डीटेल जाॅग्रफी अऊर हिस्ट्री देखतीं तो खदेरन उसके परिवार का इकान्मिक्स। कहीं इकान्मिक्स ठीक था जाॅग्रफी गड़बड़ था तो कहीं हिस्ट्री। कहीं हिस्ट्री अऊर जाॅग्रफी ठीक था तो इकान्मिक्स गड़बड़। जहाँ कुछ सही समझ में आया तो उनको सेलेक्ट कर लिया।अब अगला क्रम था लड़की देखने का। खदेरनबो एक के बाद एक लईकी देखतीं लेकिन समस्या यह थी कि जब किसी लड़की को देखतीं तो हरिहरबो की पतोह का चेहरा सामने आता था। वे उससे तुलना करने लगतीं अऊर एक के बाद एक लड़की को नहीं करती गईं। जो लड़की पसंद आती तो उधर खदेरन अपनी इकाॅनमी को सुधारने के लिए उसके घर वालों का सेनसेक्स गिराने पर लग जाते लेकिन बात कहीं नहीं बन पा रही थी। इधर मँगरुआ के मन में भी लड्डू फूटने शुरू हो गए अऊर खूब सपना देखने लगा दिन-रात। चारों तरफ हर घर के भीतर अऊर दुआरी पर मँगरुआ अऊर उसके तिलकहरू चर्चा का विषय बन गए। देखते-देखते अऊर धीरे-धीरे पाँच साल हो गए न तो खदेरनबो को हरिहरबो के पतोह से सुग्घर पतोह मिली अऊर न तो खदेरन को बड़ी इकाॅनमी वाला घर मिला। चारों तरफ लोग मजाक उड़ाने लगे अऊर धीरे धीरे तिलकहरुओं का टाँटा लग गया। मँगरुआ की भी बियाह की उमर निकल रही थी अऊर परेशान होकर एक दिन विद्रोह कर दिया। मजबूर होकर खदेरन अऊर खदेरनबो एक लड़की देखकर बेटवा का बियाह कर दिए। न सुग्घर पतोह मिली, न माल।सब लोग गरियाने लगे तो मुँह छुपाने के अलावा कऊनो उपाय नहीं था अऊर खदेरनबो अंदर ही अंदर धुंकनी की तरह जलती रहीं। हरिहर का परिवार मजे में था अऊर चारों तरफ वाहवाही होने लगी।
'बेबाकी'
नोट : भाई लोग इसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है। गरियाइएगा मत।

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

Subsistence Crisis


एक दिन हम कलास में फ्रेंच रेवोल्यूशन पढ़ा रहे थे तो एक ठो बड़ा खुरापाती लईका था, न पढ़ने में मन लगा रहा था अऊर न तो चुपै बईठ रहा था।कभी बगल वाली लईकी को छेड़ रहा था तो कभी बगल वाले लईका को चिकोटी काट देता था।देख देख कर हमारा पारा हाई हो रहा था फिर भी उसको देख कर हम महटिया रहे थे। आखिर कब तक बर्दाश्त करते। मने मन सोचे कि एक ठो सवाल दाग देते हैं अऊर व्याख्या पूछ लेते हैं। ससुर बता तो पाएँगे नहीं तो बल हिक कांड़ देंगे। हम बीचै में अपने पाठन को रोक कर, गोस्सा से लाल होकर अऊर चिल्लाते हुए कड़क आवाज में बोले " अमन यू गेट अप एंड टेल मी, व्हाट इज सब्सिसटेंश क्राइसिस एंड एक्सप्लेन मी विद द हेल्प ऑफ इगजाम्पल। एंड हाऊ डज इट लीड टू रिबेलियन?"

पहिले तो ससुरा गदाई नियर चुप रहा लेकिन जब हम घुड़के तो बुड़बकवा काँपते हुए बोला " सर सब्सिस्टेंट क्राइसिस इज दैट सिचुएशन वेन ऑवर लाईव्लीहुड इज एंडेन्जर्ड" एतना बोलकर ससुरा चुपा गया अऊर हम मने मन खुश हुए कि लगता है इसके आगे नहीं आता है अऊर बल भर अब कंड़ाएगा। हम दाँत पीसते हुए बोले "न्याऊ एक्सप्लेन मी विद इगजामपल"
ऊ तो काँप गया अऊर फिर बोला " सर जइसे फ्रांस में 10 परशेंट आबादी के पास 90 प्रतिशत संपत्ति थी और ये बिना टैक्स चुकाए मलाई काटते।जो सबसे ऊपर का वर्ग था वह अय्याशी का जीवन जीता था द्वतीय वर्ग प्रथम का तेल लगाकर खूब पुरस्कृत होता था और मलाई काटता था। ऊपर के दोनों वर्ग को टैक्स माफ था और तृतीय वर्ग जिसमें 90 प्रतिशत आबादी थी वही टैक्स देते थे। दोज हू वर नाॅट हैविंग इनकम वर पेइंग इनकम टैक्स एंड अदर टाइप ऑफ टैक्सेस। राज्य भी जनता की बेहतरी के लिए कोई उपाय नहीं कर रही थी ऊपर से मौसम ने बची खुची कसर पूरी कर दी।वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे थे जिसको वहन करना जनता के बस के बाहर था। उसके सामने तो दो ही उपाय थे या तो विद्रोह करे या तो आत्महत्या तो उसने विद्रोह का रास्ता अपनाया और फ्रांस की क्रांति हुई।"

हम तो सोचने लगे कि इ तो ससुरा बता दिया अब इ तो बच गया लेकिन हमहूं कसम खा लिए थे कि कांड़ेंगे जरूर ससुर को तो दूसरा प्रश्न दाग दिए " एक्सप्लेन मी द काॅनसेप्ट विद इग्जामपल इन इंडियन कांटेक्सट"लगे ससुर पसीने पसीने होने अऊर ओनके जेतना पसीना आ रहा था हमार पसीना ओतने सूख रहा था। तो साहब 2 मिनट तक चुप रहे तो हम खुश हुए कि चलो अब धो देते हैं। जइसे सोटा उठाए धोने के लिए वइसै....ससुर बोल उठे "गुरु जी बता रहे हैं"। हम बोले कि "हाँ साहब बांचिए अऊर समझाइए"। तो साहब बोले "जइसे सर भारत की आजादी के बाद भारत में भी तीन वर्ग हुआ।सबसे ऊपर वाला जो सत्ता पर काबिज, जो तमाम तरीके की सुख-सुविधाएँ का उपभोग करता है। हर चीज उसको सबसिडी के रेट पर मिलती है और कऊनो टैक्स-फैक्स का झंझट नहीं है। इस वर्ग का काम है किसी प्रकार से सत्ता में बने रहना होता है, साम-दाम,दण्ड-भेद। जो वो सिखाता है, दिखाता है, सुनाता है जनता वही सीखती है, देखती है और सुनते हुए खूब झाल-मजीरा के साथ गुणगान करती है। दूसरा वर्ग बीच वाला होता है जो दलाल का काम करता है और चाटुकारिता करता है। वह अंदर से खोखला होता है और उसका काम होता है सत्ता को तेल लगाना। इसमें साहित्यकार,मीडिया, इतिहासकार इत्यादि आते हैं जिनका काम जनता के सामने सत्ता को ईश्वरीय रूप में पेश करना ताकि जनता भजन गाती रहे और बदले में इन सबको पुरस्कार और कई तरह की रेवड़ी बाँटी जाती है। दोनों में गजबै का सामनजस्य होता है या कह सकते हैं कि दून्नो एक दूसरे के पूरक होते हैं। अऊर तीसरा वर्ग सबसे नीचे वाला होता है जो जमकर खटता है अऊर अपने कमाई का ज्यादा हिस्सा टैक्स के रूप में अपने भगवान को चढ़ा देता है। और जब जनता असंतोष के कारण चिल्लाना शुरू करती है तो आरक्षण, सबसिडी और कई तरह के प्रलोभनों द्वारा जनता के मुँह में लेमनचूस डाल दिया जाता है ताकि चुभलाते रहे और समय समय पर ऐसा होता आया है।" 
इतना कहने के बाद घोंचू नियर चुपा गया। हम तो बड़ा खुश हुए कि लेहली हम इनकर और गरजते हुए बोले कि "इससे रेबिलियन कहाँ हुआ?" तो वह थोड़ा सा जोश में आते हुए बोला "अरे गुरुजी हमार व्याख्या अभी पूरी कहाँ हुई थी कि आप बीचे में लकड़ी कर दिए। लेकिन दुर्भाग्य उन दोनो ऊपरी वर्गों का कि 2014 में सत्ता बदल गई अऊर नया जो आया है वह पारदर्शिता में विश्वास करता है तो व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए जब नियम कानून बदले जा रहे हैं तो पिछले वाले धुआँ फेंक रहे हैं। इनका इतिहास खुल रहा है।आप ही बताइए गुरुजी कि 6000 NGO का लाइसेंस रद्द किया तो चारा आना बंद हो गया तो अऊर ऊप्पर से पिछला पाप का घड़ा उलटा रहा है धीरे धीरे तो सबसे ऊपरी वर्ग की इस स्थिति को का कहेंगे? अब इ सबसिसटेंट क्राइसिस नहीं है तो का ह? रही बात दूसरे वर्ग की जो तेल का कारखाना और तेल लगाने की सर्विस देता था अब छटपटा रहा है।मैं यह नहीं कहता हूँ कि सब दलाल हैं लेकिन मंडली पूरी दलालों की थी और दलाली से चलती थी। जिनको ये सब तेल लगाते जब वही पलिहरे क बानर बन रहे हैं तो इन सबको कहाँ से रोटी फेंकेंगे। इन सबके भी NGO पर ताला लग गया।कामधेनू गाय बिसुक गई अब आगे शायद दूध न दे पाए। दूसरे वर्ग की इस स्थिति को आप का कहेंगे? भुखले मरेगा तो उसको सबसिसटेंट क्राइसिसे न कहा जाएगा?"
कलास का बच्चा लोग मुसकिया रहा था अऊर थपोड़ी पीटने लगा तो हम का बताएँ कि हमको केतना गुस्सा आया बस कहिए कि मुट्ठी भींच कर अपने गोस्सा को शांत किए हुए थे।
एतना बोलने के बाद ससुरा फिर चुपा गया तो हम मने मन मुसकियाए अऊर हमारा चेहरा हरिया गया कि अब त लेई लेब इनके अऊर बोले हम "बस हो गया? एतनै आता है न? इसमें रेबीलियन कइसे भया बे?" बचवा तनि सा सीना ताना अऊर मुसकियाते हुए बोला " बकलोल हैं का? का पढ़कर आए हैं आप। अगवां सुनिए। रेबीलियन अइसे हुआ कि आप देख रहे हैं न साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वालों को। ई रेबीलियन है,साजिश है विद्रोह है।"
एतना पर हम उसको टोक दिए काहे कि हमहू किरिया खा लिए थे कि ठोकेंगे जरूर इनको अऊर बोले "अबे तुमको देखा नहीं रहा है कि उ सब सम्मानित साहित्यकार हैं।साहित्यकार बहुत संवेदनशील होता है। ऊ सब तो कलबुर्गी की हत्या अऊर दादरी कांड के विरोध में लऊटाया है। माहौल नहीं देख रहा है" फिर ससुरा बीच में हमको टोक कर बोला "गुरु जी हम तो आपको समझदार समझते थे लेकिन आपो उहे हैं। आपको दिखा नहीं रहा है कि मीडिया पिछले डेढ़ बरिस से कवन राग टेर रहा है। अऊर तो अऊर अइसे टेर रहा है कि जइसे निरहू चचा से लेकर मौनी बाबा तक यहाँ राम राज्य था अऊर कुल बीपत पिछले डेढ़ै बरिस में आ गई, आसमान फट गया। सबका चारा बंद हो गया है। दादरी के पहिले तो भारत जैनी था एकहू मच्छर भी नहीं मरा इहां।84 ,बाबरी, मुंबई, गोधरा, भागलपुर, मुजफ्फरनगर अऊर पता नहीं केतना हुआ। महाराष्ट्र में केतना किसान लोग आत्महत्या कर लिया, बहुत जगह पर जातियों के बीच दंगा हुआ, कितना बहिन बेटी का इज्जत लुटाया अऊर मारा गया।आप कह रहे हैं कि साहित्यकार संवेदनशील होता है? घंटा होता है। कहाँ मर गई थी इन सब की संवेदनशीललता। अब शील भंग हो रहा है, मीडिया का दुकान बंद हो रहा है अऊर चारा बंद हो गया है अऊर ए कुल साहित्यकार को कोई पूछ नहीं रहा है तो पुरस्कार की ट्रफिया तो काभधेनु तो है नहीं तो घरे में रखकर अचार डालेगा सब। लिख तो सकता नहीं है सब। भोथरही कलम से जो लिख दिया अऊर तलवा चाटने के लिए पुरस्कार मिला।अब लिखेगा तो कऊनो इ कुल का किताब मूँगफली, लाई-दाना,पकऊड़ा समोसा का खोमचा बनाने का काम आएगा।इसलिए सब पुरस्कार लऊटा रहा है अऊर मीडिया खूब भौंक रहा है। नहीं इ सब करेगा तो आत्महत्या के अलावा कऊनो उपाय नहीं है दूसरा। इसी को कहते हैं गुरु जी 'सबसिस्टेंश क्राइसिस' और ऐसे होता है उसकी वजह से रेबीलियन या विद्रोह। लेकिन गुरुजी इस मुगालते में मत रहिएगा कि इ फ्रेंच रेवोल्यूशन है।कुछ नहीं उखड़ने वाला है जनता सब जानती है अऊर जान गई है। कुछहू नहीं कबर पाएगा ।"
लौंडा एतना बोलकर चुपाया ही था कि पूरा कलास खड़ा होकर सीटी मारने लगा अऊर थपोड़ी पीटने लगा। लौंडे को कांड़ नहीं पाए कुल साम-दाम,दंड-भेद लगाकर तो सब बेकार है, हमरा तो इज्जत उतर गया अऊर इ बात तो आग की तरह फैल जाएगा अऊर ऊपर पहुँचा तो हम तो 'सबसिस्टेंश क्राइसिस' में आ जाएँगे। जब एक ठो लड़का को नहीं कांड़ पाए तो अऊर का कबार पाऊँगा।डिग्रिया का घरे में रहकर अंडा देगा? अइसा करता हूँ कि हम भी विद्रोह करता हूँ अऊर कुल डिग्री बोर्ड अऊर विश्वविद्यालय को लऊटा देता हूँ अऊर विद्यालय से इसतीफा दे देता हूँ ।
'बेबाकी'

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

न्यूटन के गति के सिद्धांत/नियम


हम पढ़ने में बहुत गदाई थे मने गदहा थे अऊर सब मिला स्कूल में बकलोलवा-बकलोलवा कह कर मुँह बिराते थे। सबसे बड़का बात ई था कि बिज्ञान हमारे खोपड़िया में कब्बो नहीं घुसता था अऊर उसमें भी भौतिक बिज्ञान तो मर्चा नियर भभाता था। रसायन अऊर जीव तो रट-रूट कर बार्डर तक कांख के पहुँचो जाते थे लेकिन भौतिकिया तो लगता था कि ससुरा कउनो दूसरे ग्रह से आया है।बड़ी न पिटाए हैं न भौतिक वाले माड़साब से। अरे कुछहू जवाब दो तो लगता था कि अपने मेहरारू वाला गोस्सा हम ही पर निकाल रहे हैं।मास्टर कौन बनाया उनको ,ऊ तो धोबी होते तो बहुते बढ़िया कपड़ा धोते। अब बताइए कि भरी कलास में धोते थे अऊर हम लजा जाते थे कि लईकी लोग के सम्हने उतार रहे हैं।
अइसहीं एक बेरी हमसे पूछ दिए 'अनुरगवा ठड़ा हो अऊर न्यूटन का गति का तीनों सिद्धांत बताओ अऊर व्याख्या करो'।
हम तो तुरंते सोचे कि 'बेटा आज तो पुजाए' अऊर मने-मन सोचे कि ' ससुरा न्यूटनवा मर के स्थिर हो गया अऊर साला हम लोगों की गति गड़बड़ कर गया। ऊहे ससुर तेजूखाम थे। अरे सेब गिरा तो गिरा,अइसा तो था नहीं कि उसके पहिले गिरबे नहीं किया अऊर बाद में नहीं गिरता।अरे गिरा तो गिरने देते उसमें ज्ञान बघारने का, का जरूरत था।कीड़ा काट रहा था , कुलबुला रहा था।'
एतना सोच ही रहे थे कि माड़साब गब्बर टाइप गुर्राए अऊर हम सकपका गए। कुर्सी पर बइठ के एक ठो मोटहर डंडा मेज पर बजा रहे थे। देखकर तो पसीना आ गया अऊर जऊनो आता था भुलाने लगा। एतना में एक ठो बहुत सुघ्घर लइकी बगल में बइठी थी धीरे से एक ठो पन्ना पर एक,दो,तीन करके तीनों सिद्धांत मेरे तरफ बढ़ा दी। गुरुआ देख नहीं पाया अऊर थोड़ा सा परान हिया में आया मेरे। हिम्मत करके बोला " गुरु जी सुनाएं" तो गुरु जी मूड़ी हिला दिए। हम बोले 'गुरूजी प्रथम नियम: प्रत्येक पिंड तब तक अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है"। गुरुजी मूड़ी हिलाकर बोले कि ठीक है अऊर बोले कि व्याख्या करो। अब कऊनो धीरे से उसका भी चुटका दिया होता तो काम बन जाता। अब का करें समझे में नहीं आ रहा था। एतना में गुरूआ कुर्सी से उठकर आ गया मोटका सोटा लेके। कसम से पसीना-पसीना हो गए हम।गुरु बोले फिर से बताओ अऊर व्याख्या करो।
हम डेराते-डेराते बोले' प्रथम नियम: प्रत्येक पिंड तब तक अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है। व्याख्या इ है कि जइसे पपुआ जब गायब रहता है या चुपाया रहता है अऊर जब तक बहरे से कोई हुरपेंचता नहीं है तब तक न तो ऊ बहरे आता है अऊर न तो मुँहवे खोलता है। अऊर जब बोलने लगता है तो बोलते रहता है जब तक कि बहरी से कोई इसारा करके या हुरपेंचके चुपवाता नहीं है अऊर ओकरे बाद कुछ दिन छुट्टी पर गायब हो जाता है'
अबही हम बोलकर सांसो नहीं लिए थे कि गुरूआ पपुआ नियर जोश में आ गया जइसे कि हम जवाब नहीं खोद दिए हों अऊर ले सोटा-ले सोटा धर दिया हमको।चोट से जादा तो हम लजा गए। गुरुआ का पारा चढ़ा था अऊर लग रहा था जइसे मेहरारू से रात में भिड़ गया हो अऊर खाना न मिला हो अऊर भुखले सो गया हो। गुरुआ गुर्राया अऊर बोला कि दूसरा नियम बताओ अऊर व्याख्या करो। अरे हमार तो हालत पतली हो गई कि पहिलही नियम में एतना प्यार बरसाया तो तीसरे आते तक तो ऊबाल मारके ओवरफ्लो करने लगेगा।
हमहू काँपते-काँपते बोले ' द्वितीय नियम: किसी भी पिंड की संवेग परिवर्तन की दर लगाये गये बल के समानुपाती होती है और उसकी (संवेग परिवर्तन की) दिशा वही होती है जो बल की होती है।
अऊर इसका व्याख्या इ है कि पपुआ को हुरपेंचने वाला जो बल उसी अनुपात में होती है जब हुरपेंचने वालों को लगने लगने लगता है कि अब कुछ किया जाए नहीं तो साँस लेना दुसुआर हो जाएगा अऊर उनकी साँस तो पपुआ में चाभी भरने पर है क्योंकि पपुआ अपने से तो चल नहीं सकता है।इसलिए समय समय पर वेग में परिवर्तन होता रहता है।
'अरे माई रे',हमारे मुँहे से निकला।गुरुआ एतना जोर का सोटा धर दिया जइसे मेहरारू रतिया में भुखले रख के घरवो से निकाल दी थी। बिना साँस लिए गुरुआ धरे जा रहा था अऊर कलास का लईका-लईकी लोग मुसकिया रहा था अऊर ठहाका मार रहा था जइसे संसद में पपुआ जब बोलता है तो उसको हुरपेंचने वाले उसके पीछे बईठा रहता है अऊर मुसकियाता है अऊर विपक्ष में बइठा लोग ठहाका लगाता है।
गुरुआ भी सोच लिया था कि मेहरारु का महीना भर का गुस्सा आजै निकाल लेगा फिर आखिरी सोटा देकर कहा कि 'तीसरा नियम बताओ अऊर व्याख्या करो।' हमहू डेराते-काँपते बोले ' तृतीय नियम: प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।' अऊर व्याख्या इ है कि जेतना बल लगाया जाता है पपुआ पर ओतने तेजी से ऊ अपना कुर्ता का बांही केहुनी पर चढ़ाता अऊर ओतने तेजी से भोंकना शुरू करता है। अऊर दूसर व्याख्या इ है कि जेतना गुरुआइन आपको भुखले रखती हैं अऊर जेतना रात घरे से बहरी कर देती हैं ओतने कठिन सवाल आप दागकर ओतने तबीयत से हमको धोते हैं'
'अरे मईया रे मईया,लेहलस मुँहफुकऊना जान हमार बचा ला भोले बाबा विश्वनाथ हमके' कहकर हम चिल्ला रहे थे अऊर गुरुआ हमको भर कलास में नचा-नचा कर धो रहा था।
ओकरे बाद तो कसम खा लिए कि भरसाईं में जाए बिज्ञान हम नहीं पढ़ेंगे आगे। हमको न्यूटन अऊर आइंसटीन नहीं बनना है।बिज्ञान इंटर के बाद छोड़ के इतिहास लेकर गड़ा मुर्दा उखाड़े अऊर आज ले उखाड़ रहे हैं ।
'बेबाकी'

रविवार, 30 अगस्त 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे १९

20 जनवरी, 2011 की बात है जब मेरी उनसे आखिरी बार बात हुई वह भी करीब 3 घंटे रात के ढाई बजे तक तो उन्होंने मुझे जो बात आखिरी में कही वह थी "अनुरगवा अगर कब्बो नौकरी बदले के मूड होई त बतईहे, मैनेजमेंट से खटपट, दिल्ली में मन लगै कउनो सूरत में अगले दिन तोहरे नाम क अपाॅइंटमेंट लेटर फैक्स करब।हमरो मन ना लगत यार।वो अकैडमिक लेवल अऊर मेंटल लेवल क टीचर ना मिलल यार जेकरे साथ काम करे में मजा आवे अऊर कुछ सीखे के मिले अऊर आपन लेवल बढ़े।तू आ जईबे साथे त बढ़िया रही।"
यह आखिरी वाक्य था जो आज भी मेरे कानों में गूँज रहा है।
(अब आगे )
तारीख थी 23 जनवरी, 2011 और सुबह का 8 बजा था।रविवार का दिन होने के वजह से थोड़ा आलस था कि आराम से काम किया जाएगा।छोटा भाई मेरठ से आया हुआ था।सुबह उठा ही था और भाई को बोला चाय बनाने को।भाई चाय बनाकर लाया और दोनों भाई साथ में बैठकर अखबार पढ़ते हुए चाय की चुस्किया ले रहें थे और समाचारों पर चर्चा कर रहे थे। इतने में बनारस से मेरे मित्र शरद जी का फोन आया।मैंने बड़ी सोचा कि इतनी सुबह फोन शरद का फोन वह भी छुट्टी के दिन।खैर मैंने फोन उठाया और पलग्गी किया।उसके बाद तो उन्होंने तो हिरोशिमा नागासाकी टाइप बम गिराया जिसके प्रभाव से उबरना बड़ा मुश्किल है मेरे लिए।उन्होंने कहा 'अनुराग सर, अमब्रीश सर नहीं रहे'।दो मिनट तक तो मैं चेतनाशून्य हो गया।फिर मैंने अपने को संभाला और प्रतिक्रिया स्वरुप उन्हें डाँटते हुए कहा 'का यार शरद पगला गईला का? सबेरे सबेरे अइसन मजाक करल जाला का? होश में बोला'
उन्होंने कहा 'नहीं अनुराग सर सही कहत हई।एक रोड ऐक्सिडेंट में हम लोग को छोड़ कर चले गए।' मैंने तुरंत फोन काटा क्योंकि मैं तो चेतनाशून्य हो चुका था इतना मैं आज कह सकता हूँ क्योंकि मुझे आज भी नहीं याद आता है कि मैंने क्या सोचा था उस समय।मेरे को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ।किससे पूछा जाए और क्या पूछा जाए, कैसे पूछा जाए।भईया के घर का सबका नंबर था लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। मैंने तुरंत लैपटाॅप उठाया और Syna International School Katni की वेबसाइट खोली और उनके स्कूल का नंबर निकाला।फोन मिलाया तो ऑफिस में किसी ने उठाया तो मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने मुझे पूरा वाकया बताया।मैंने तुरंत उनसे प्रिंसिपल का नंबर माँगा क्योंकि मैं उनको मिल चुका था दो साल पहले इंटरव्यू में और मैंने मना कर दिया था उनको।मैंने तुरंत फोन लगाया उनको और बोला 'Mr Aditya, myself Anurag this side from Delhi a very close friend of Ambrish Bhaiya. I came to know about the incident. Now what is the position there. I am thinking to reach Katni. Now you give me the suggestion'
उन्होंने कहा ' Yes whatever happened it has been a tremendous loss to the family, school and everyone associated. We lost 2 teachers on the spot among whom Mr Pathak was one of them. Still two are in serious condition in hospital. I don't know what to say. In my opinion it would be better that you move to Varanasi directly as post-mortem is over and the body is here. In couple of hours the family will start from here. There is no use of coming here as family will need your support there more" 
इतना कहने के बाद मैंने फोन काट दिया।इतने देर में भाई सभी चीजों से अनभिज्ञ था फिर मेरी स्थिति को देखकर उसने मुझसे पूछा तो मैंने उसे बताया तो वह तो पत्थर सा हो गया।भाई भी भईया से आत्मिक रूप से जुड़ा हुआ है चुंकि पूरे तीन वर्ष वह मेरे साथ ही रहकर बनारस पढ़ाई की और भईया उसे बेटे की तरह मानते थे।उसने तुरंत कहा कि आप जाइए मैं यहाँ हूँ नहीं तो मेरठ चला जाऊँगा।
मैंने अनुमान लगाया कि यदि वह लोग कटनी से 11 बजे भी चलेंगे तो 6 बजे शाम तक बनारस पहुँच जाएँगे और मैं यहाँ दिल्ली से निकलता हूँ तो जो भी ट्रेन मिलेगी तुरंत तो मैं कल सुबह 7 बजे से पहले नहीं पहुँच पाऊंगा और तब तक तो सब खत्म हो चुका होगा।
मैंने तुरंत फोन अपनी माँ को लगाया तो वह तो काठ हो गईं क्योंकि भईया की दूसरी बेटी माँ के देख-रेख में अस्पताल में पैदा हुई थी।एक हफ्ते तक माँ अस्पताल रही भाभी के साथ।माँ ने तुरंत कहा"बेटा नौकरी की चिंता मत करो तुरंत बनारस परिवार के पास पहुँचो।' मैंने माँ को बताया कि किसी भी सूरत में मैं टाइम पर पहुँच नहीं पाऊँगा तो उन्होंने कहा कि तुम निकलो।मैंने तुरंत बात पर अमल किया और फोन मिलाया अपने विभागाध्यक्ष को, तो उनका फोन बंद था।मैंने तुरंत उनके फोन पर एक संदेश भेज दिया।मैंने तुरंत अपने एक सहकर्मी को मिलाया और उनको विवरण दिया और उनसे कहा कि आप सूचित कर दीजिएगा।फिर मैंने एक और सहकर्मी को भी खबर की।
मैंने तुरंत मन बनाया कि अब 1 बजे चुके हैं और नई दिल्ली स्टेशन पहुँचुंगा 2-3 बज जाएगा और कोई ट्रेन नहीं मिलेगी और अगली ट्रेन शाम को सात बजे शिवगंगा एक्सप्रेस ही है।मैंने मन बना लिया कि अब शिवगंगा पकड़ कर सुबह 8 बजे पहुंचुँगा।मैं तुरंत भाई को बताया और निकल गया।2 बजे करीब नई दिल्ली स्टेशन पहुँच गया और लाइन में जाकर सामान्य श्रेणी के टिकट के चक्कर में पड़ गया।वहीं बगल में 'करेंट रिजर्वेशन' का काऊंटर था।मुझे यह स्वीकार करने में थोड़ी भी झिझक नहीं है कि उस समय तक मुझे 'करेंट रिजर्वेशन' में क्या होता है नहीं मालूम था। पता नहीं क्या मन में आया कि मैंने सोचा देखता हूँ पता करता हूँ कि क्या होता है।
वहाँ पहुँच कर मैंने पूछा कि क्या शिवगंगा से करेंट रिजर्वेशन मिल जाएगा तो अगले ने तुरंत पूछा कि कहाँ जाना है।मैंने उनको बताया कि बनारस तो उन्होंने कहा कि शिवगंगा से तच नहीं मिल पाएगा लेकिन एक ट्रेन है 'युवा एक्सप्रेस' में है और वह छूटने वाली है लेकिन समस्या यह है कि वह मुगलसराए जाती है और और पूरी ट्रेन चेयरकार है।सोने को जगह नहीं मिल पाएगी। मैंने सोचा कि सामान्य श्रेणी में खड़े होकर जाने से बेहतर तो है कि आराम से बैठकर जाया जाए।मैंने उन्हें तुरंत कहा आप टिकट बना दीजिए।मैं टिकट लिया और पैसे देकर प्लैटफार्म की तरफ भागा। 3:30 बज चुके थे और 15 मिनट में ट्रेन छूटने वाली थी तो भागकर एक बोगी में जगह देखकर बैठ गया।मैंने तुरंत शरद और यमन को फोन लगाकर जानकारी ली कि क्या समाचार है।उन्होंने बताया कि परिवार वाले कटनी से निकल गए हैं और 8 बजे तक आ जाएंगे फिर मणिकर्णिका घाट पर आगे।मैंने उनको सूचित किया कि मैं ट्रेन पकड़ लिया हूँ और रात-बिरात तक पहुँच जाऊँगा तो उन्होंने कहा कि 'अनुराग सर घरे वाला एतना देर इंतजाल करिहन?' मैंने उनसे कहा कि आप सूचित कर दीजिए। शरद ने कहा कि वह सूचित कर देंगे।
उनसे बात खत्म करने के बाद मुझे प्यास लगी तो मैं पानी खोजते हुए पैंट्री की तरफ गया तो देखा कि एक बोगी में पूरी सीटें खाली थी और केवल गिन कर 5 व्यक्ति बैठे थे।मैं तुरंत वापस भाग कर अपना सामान ले आकर सीट पर बैग रखकर पानी की खोज में निकल गया।पानी लेकर आया और पीकर बैठ गया।बीच बीच में शरद और यमन से बात करके समाचार लेता रहा। ट्रेन 9 बजे कानपुर पहुँच गई और मेरे लिए एक-एक पल भारी पड़ रहा था।इतने में Scindia School से मेरे और भईया के घनिष्ठ मित्र Roopak Pande का फोन आया कि वह लोग भी ग्वालियर से निकल गए हैं लेकिन समस्या यह कि ग्वालियर से एक ही ट्रेन बनारस के लिए थी और वह अगले दिन पहुँचाती। चुंकि भईया 2-3 महीने पहले ही Scindia School छोड़कर कटनी ज्वाइन किया था और कटनी वाले स्कूल के प्रिंसिपल भी Scindia School से गए थे तो सबसे पहले खबर इन लोगों को मिल गई थी।वह लोग अपनी गाड़ी से आ रहे थे।मैंने भी उनको बताया कि मैं भी रास्ते में हूँ ।
खैर जैसे ही कानपुर से आगे बढ़ा तो बुरी तरीके से थके और चेतनाशून्य होने के कारण मुझे नींद आ गई और मैं सो गया।मेरी नींद मुगलसराय ही खुली जब ट्रेन खड़ी हो गई।मैंने घड़ी देखा तो सवा-एक बजे थे।मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं पहुँच गया।मैंने यमन को फोन करके समाचार लिया और बताया कि मैं पहुँच गया हूँ और सीधे घाट आ रहा हूँ।यमन ने बताया कि जब उन लोगों ने परिवार को सूचित किया कि मैं चल चुका हूँ तो पिताजी(भईया के) ने कहा कि 'अनुराग सबसे घनिष्ठ रहा है और उतनी दूर से आ रहा है तो उसके आने पर ही आगे का काम होगा'।पूरा परिवार मेरी राह देख रहा था और मैंने तुरंत ऑटो किया और मैदागिन पहुँच गया जहाँ यमन मुझे लेने आए हुए थे।मैं घाट पर पहुँचा तो देखा कि वहाँ सैकड़ों से ज्यादा लोगों की भीड़ लगी थी।
हम लोग बनारस 3-4 वर्ष पहले छोड़ चुके थे फिर भी वहाँ हर व्यक्ति दिखा जिससे हम लोग नजदीक थे।चाय वाला, पान वाला, मेडिकल स्टोर वाला, सब्जी वाला, हर स्कूल के टीचर जहाँ उन्होंने पढ़ाया था।मैं जब पहुँचा तो सबसे पहले उमेश भइया से सामना हुआ और उन्होंने मुझे पकड़ लिया और लिपट गए।फिर पिताजी से सामना हुआ तो वह मेरा हाथ पकड़ कर बोले "देख रहे हो अनुराग जहाँ मुझे होना चाहिए था वहाँ आज वह सोया हुआ है।कितना प्रेम था उसके अंदर कि तुम दिल्ली से आ गए और भी शहरों में जानने वाले भी आ गए हैं और कुछ रास्ते में हैं।बताओ इस 78 वर्ष की उम्र में मैं कैसे दो छोटी बच्चियों को संभालूँगा" मैं तो काठ हो चुका था समझ में ही नहीं आ रहा था क्या बोला जाए।आनंद भईया ने कहा कि"जा अनुराग तोहरे इंतजार होत रहल अंतिम दर्शन कर ला भाई क।का हमहन सबसे भयल रहल कि सबके छोड़ कर चल गईनअ" मैं उठकर वहाँ गया जहाँ वह चिरनिद्रा में सोए हुए थे।मुझे अंतिम दर्शन कराया गया और आगे की कार्रवाई शुरू हुई।4 बजे के करीब ग्वालियर से Roopak Bhaiya भी अपने छः मित्रों के साथ आ गए लेकिन इसका अफसोस उन्हें जिंदगी भर रहेगा कि अंतिम दर्शन उनके भाग्य में नहीं लिखा था।
छः बजे तक सबकुछ समाप्त हो गया था और जीवन का अंतिम सत्य सामने था।जीवन के अंतिम समय आपको विदा करने कितने लोग आएं हैं उससे आपकी हैसियत का अनुमान लगता है और वही आपके कमाई की वास्तविक पूँजी है।
(क्रमशः)


बेबाकी

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे १८

भईया और मैंने एकसाथ काम किया था बल्कि मैं उन्हें बड़ा भाई मानता हूँ।मैंने बनारस सन 2007 में छोड़ा और भईया 2008 में।वह 2008 में भारत के प्रतिष्ठित विद्यालय 'Scindia School, Gwalior' में भूगोल के शिक्षक नियुक्त हुए।मैंने अपने पूरे जीवन में बहुत सारे भूगोल के शिक्षक देखें हैं लेकिन विषय पर जिस तरह की पकड़ उनकी थी वैसा आजतक कोई नहीं मिला।सैनिक स्कूल घोड़ाकाल और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और भारत के सुप्रसिद्ध geomorphologist श्री सविंद्र सिंह के बहुत चहेते शिष्य थे।CMS Lucknow से अपनी यात्रा शुरू की उसके बाद Dalhousie Hill Top Shimla फिर Sunbeam School Varanasi उसके बाद Scindia School Gwalior और आखिरी में Syna International School Katni. मेरे और उनके द्वारा शिक्षित छात्र और छात्राएँ और साथ में काम किए शिक्षक उस व्यक्ति का आकलन सही कर सकते हैं हो सकता है कि मेरा आकलन प्रभावित हो सकता है।मुझसे करीब 12 वर्ष बड़े थे लेकिन हमेशा मुझे एक दोस्त और छोटे भाई कि तरह माना।उस व्यक्ति से मेरी मुलाकात बनारस वाले स्कूल में हुई थी।अक्टूबर, 2004 को मैंने एक नई शुरुआत की थी।मैंने Sunbeam School Varuna से नौकरी शुरू की और जिस व्यक्ति से मेरा पहला परिचय कराया गया वह थे श्री अम्ब्रीश पाठक।मैं 23 साल का लड़का केवल स्नातक हालाँकि परास्नातक का छात्र भी था उस समय और कोई अनुभव नहीं।भईया भूगोल के परास्नातक और 12 वर्षों का अनुभव वह भी देश के नामी गिरामी बढ़िया विद्यालयों के।मैं बहुत डरा सहमा सा रहता था और बोलने की हिम्मत नहीं होती थी उनके सामने।उनका इस बात पर ध्यान गया और एक दिन मुझे उन्होंने बैठाकर इसपर बात की लेकिन मेरे अंदर से वह हिचक निकल ही नहीं रही थी।उन्होंने मेरे को बहुत अच्छे से पढ़ लिया था, मेरे ज्ञान को समझ चुके थे और उस हिचक को निकालने के लिए गजब का तरीका निकाला।जब भी होता तो मुझे बुला लेते और बड़ी छोटी-छोटी चीजें मुझसे पूछते और मैं सोचता कि यार इनको यह नहीं आता।कभी कभार तो अपने क्लास से किसी बच्चे को भेजते और बोलते कि जाइए अनुराग सर को बुला लाइए।बच्चा आता मुझे बुलाकर ले जाता और जब मैं पहुँचता तो मुझसे कहते "अनुराग सर थोड़ा यह काॅन्सेप्ट बच्चों को समझा दीजिए शायद आप मुझसे बेहतर इनको समझा पाएँगे।मैं समझाने की कोशिश कर रहा हूँ इनको समझ में नहीं आ रहा है तो मैंने सोचा कि आपको बुला लूँ आप बहुत टैलेंटेड हैं " मैंने देखा कि वह ऐसे टाॅपिक पर मुझे बुलाते जो बहुत ही हल्का होता था जिस पर उनको पूरा विश्वास होता था कि मैं समझा दूँगा आसानी से।मुझे आश्चर्य होता था कि इतनी छोटी चीज नहीं समझा पा रहे हैं यह।


मैंने एक दिन उनसे पूछा भी कि वह ऐसा क्यों करते हैं तो उन्होंने मुझसे कहा ' देख अनुरगवा तू हमसे बहुत छोट हऊवे अऊर तोर नाॅलेज अपने सब्जेक्ट पर जबरदस्त ह अऊर तू अगर हमरे सम्हने एतना दब के अऊर सहम के रहबे त अपने के स्थापित कइसे करबे।हमार का ह हमके सब जानत ह कि हम कइसन अदमी हई अऊर कइसन मास्टर हई अऊर हमार ज्ञान का ह।तोके कऊनो दिक्कत हो त हमरे पजरे आव अऊर हमके कुछ ना समझ में आई त हम तोरे किहन आइब।एम्मन कउनो शर्माए वाली बात ना ह।" आज यदि उन बातों को इस नकारात्मक प्रतिस्पर्धा के दौर में सोचता हूँ और जितना मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है उस आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि " साथ वाले को सिखाने में उन्हें गर्व की अनुभूति होती थी और उससे सीखने में खुशी"। 
मैंने इतने दिनों में जो अनुभव किया है जब कोई शिक्षक बच्चों के सामने अपनी गलती को स्वीकार नहीं करता है और अपने को श्रेष्ठ समझता है तो उसके अंदर कहाँ से वह कलेजा आएगा कि अपनी क्लास में किसी टीचर को बुला कर बोले कि आप समझा दीजिए मैं नहीं समझा पा रहा हूँ। 

एक ही हफ्ते में हम इतने करीब आ गए कि दोनों साथ साथ हमेशा रहते थे।मैं बनारस के दक्षिणी भाग लंका से रोज आता था और वह पक्के महाल से आते थे।बाद में कुछ महीने के बाद हम दोनों ने विद्यालय के पास ही फ्लैट ले लिया।भईया अकेले रहते थे और मेरे साथ मेरा छोटा भाई रहता था।अब हमारा रोज शाम को मिलना शुरू हो गया।कभी मैं शाम को उनके यहाँ रुक जाया करता था तो कभी वह।सुबह तैयार होकर निकल जाते नौकरी पर दोनों साथ में।कभी मैंने उनकी शर्ट पहनी तो कभी मैंने।बहुत प्रयास हुआ प्रिंसिपल की तरफ से कि हमारे बीच खटास उत्पन्न करा दी जाए पर उस केमेस्ट्री को तोड़ना इनके बस की बात नहीं थी।यह तो शायद ईश्वर ही कर सकता था लेकिन खटास तो पैदा वह भी नहीं कर पाया।

यहाँ तक कि उनके बनारस छोड़ने के बाद भी जब भी मुझे 2 दिनों की छुट्टी मिलती थी मैं Scindia School भागता था।दिल्ली से ग्वालियर मुझे महावीर मंदिर से पांडेपुर की दूरी की तरह लगता था।जब छुट्टी में दोनों लोग बनारस पहुँचते तो क्या कहने।कभी कभार उनको परेशान करने के लिए और मजा लेने के लिए मैं रात-बिरात फोन मिला दिया करता था।अचानक फोन देखकर बहुत गरियाते और कहते "देख अनुरगवा तोके नींद ना आवत ह त तू सारे हमार नींद खराब करत हऊवे।देख ढेर पानी मत भर नांही त ठीक ना होई।मिलबे त बहुत कांड़ब, आऊ तू ईंहा त बताइला तोके"।फिर कुछ देर के बाद गरियाने के बाद जब ठंडक हो जाती थी तो फिर लंबी चर्चा और विषय होता था शिक्षा, शिक्षा का स्तर, राजनीति या समाज।भईया ही वह शख्स थे जिनसे मैं हर बात शेयर कर सकता था, हर समस्या। 20 जनवरी, 2011 की बात है जब मेरी उनसे आखिरी बार बात हुई वह भी करीब 3 घंटे रात के ढाई बजे तक तो उन्होंने मुझे जो बात आखिरी में कही वह थी "अनुरगवा अगर कब्बो नौकरी बदले के मूड होई त बतईहे, मैनेजमेंट से खटपट, दिल्ली में मन लगै कउनो सूरत में अगले दिन तोहरे नाम क अपाॅइंटमेंट लेटर फैक्स करब।हमरो मन ना लगत यार।वो अकैडमिक लेवल अऊर मेंटल लेवल क टीचर ना मिलल यार जेकरे साथ काम करे में मजा आवे अऊर कुछ सीखे के मिले अऊर आपन लेवल बढ़े।तू आ जईबे साथे त बढ़िया रही।"
यह आखिरी वाक्य था जो आज भी मेरे कानों में गूँज रहा है।

(क्रमशः)

बेबाकी

सोमवार, 24 अगस्त 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे १७

नौकरी तो मिल गई लेकिन सही में विश्वास ही नहीं हो रहा था। जैसे कोई गीत पसंद आ जाता है तो व्यक्ति बार-बार उसको रिवाइंड करके सुनता है उसी तरह बार-पिछले पाँच महीने की घटना मेरे मन और मस्तिष्क में रिवाइंड होकर सामने आती थी।घटनाएँ रिवाइंड होती थीं तो आँसू फारर्वड मोड में आ गए थे शायद इसलिए कि उनको मौका नहीं मिला था।इसी बीच अचानक दो दिनों के बाद फोन उस विद्यालय से आ गया जहाँ पर leave vacancy थी कि वो मेरी शर्त को मान गए हैं और इस वर्ष वह लोग मुझे PGT HISTORY के तौर पर नियुक्त करेंगे एवं अगले वर्ष मेरे लिए कक्षा 11-12 में नया विषय POLITICAL SCIENCE भी रखेंगे।मेरी वहाँ के प्रिंसिपल से बात हुई और उन्होंने कहा -" मिस्टर अनुराग वे डोंट वांट टू लीव अ टीचर लाइक यू एंड इन आर्डर टू रिटेन यू विथ अस वी विल इंट्रोड्यूस पोलिटिकल साइंस ऐज अ न्यू सब्जेक्ट.वी विल आल्सो हैव ऐन एडवांटेज दैट वी विल आल्सो गेट अ टीचर हू कैन  डील विथ फोर सब्जेक्ट्स अलोन एंड दैट टू वेरी कॉन्फिडेंटली ."
मैंने उनसे बड़ी विनम्रता से कहा मैम आई एम वेरी थैंकफुल टू यू दैट यू डिड दिस मच फॉर  मी.बट आई एम वेरी सॉरी टू इन्फॉर्म यू दैट आई गॉट द जॉब एंड आई हैव रिसीव्ड द ऑफर लेटर ऑफ़ अ स्कूल.बट एनीवे मैम आई विल कम टू मीट यू इन कपल ऑफ़ डेज " फिर मैडम ने कहा कि "मिस्टर अनुराग कोंग्रेचुलेशन्स फॉर योर जॉब एंड इट्स माय हार्ड लक दैट योर इशू गॉट स्टक बिटवीन मी एंड द मैनेजमेंट डिले .एनीवे व्हेनेवेर यू विश यू कैन कम टू मीट मी ."
फिर अगले दिन मेरे पास उस विद्यालय से फोन आया जिससे मैंने दोनों विषय पढ़ाने की शर्त के साथ 60000 रूपए की माँग की थी।उनका फोन जब मैंने उठाया तो उन्होंने कहा "मिस्टर  अनुराग आयी डिस्कस्ड योर प्रपोजल विथ हायर अथॉरिटीज एंड वी आर रेडी टू नेगोसिएट ऑन योर टर्म्स एंड कंडीसन्स. यू कैन कम टुमारो फॉर फरदर प्रोसीडिंग्स"

मैंने उनसे तुरंत कहा सर आयी ऐम वेरी सॉरी टू से दैट यू आर लेट ऐज आयी हैव रिसीव्ड ऑफर लेटर म वन ऑफ़ द स्कूल  इन  डेल्ही."
उन्होंने पूछा -" हाउ मच आर दे पेइंग यू ? " 
मैंने उनसे तुरंत कहा -"सर पे स्केल  अक्कोर्डिंग टू  PGT ग्रेड "
इसपर उन्होंने कहा "बट मिस्टर अनुराग वी आर पेइंग यू मोर एंड दैट आल्सो अप्प्रोक्सिमेटली  २२००० विथ आल द अदर फैसिलिटीज." मैंने तुरंत सोचा कि यह व्यक्ति मुझे खरीदने की कोशिश कर रहा है और मैंने तुरंत जवाब दिया सर आयी थैंक यू फॉर योर एफ्फर्टस एंड  फेवर फॉर मी.सर टुडे इफ आयी एक्सेप्ट योर ऑफर एंड रेफ्यूज़ देम एंड टुमारो इफ समबडी  विल पे मी 80000 एंड आयी एक्सेप्ट दैट एंड रेफ्यूज़ यू देन व्हाट विल यू थिंक अबाउट मी. सर आयी थिंक दैट आयी शुड नोट डिच दैट पर्सन हू ऑफ्फर्ड मी जॉब ऑन माय टर्म्स एंड  कंडीशंस विथ दिस स्टेटमेंट दैट 'मिस्टर सिंह आयी थिंक यू डिज़र्व इट एंड यू टेक आईटी ', व्हेन एवरीवन हियर आज ट्राइंग टू सप्रेस मी विद दियर अमाउंट इन सच अ वे दैट आयी ऐम  नॉट अ टीचर बट अ वर्कर ऑर अ प्रॉस्टिट्यूट. सर सॉरी फॉर दीज हार्श वर्ड्स बट माय  प्रिंसिपल्स एंड वर्क एथिक्स डसन्ट अलाउ मी टू मूव फॉरवर्ड विथ योर ऑफर'
बहुत से लोग मुझे अड़ियल, पागल, बेवकूफ और न जाने क्या-क्या कहेंगे और कह रहे होंगे लेकिन मैंने वह किया जो मेरी अंतरात्मा ने कहा।
मेरी बात उनके समझ में आ गई कि मैं नहीं मानने वाला हूँ तो उन्होंने कहा मिस्टर अनुराग आयी अंडरस्टुड योर पॉइंट एंड आयी रेस्पेक्ट योर वर्क एथिक्स.इट्स आवर हार्ड लक. बेस्ट ऑफ़  लक फॉर योर फ्यूचर होप वी मीट नेक्स्ट टाइम इन फ्यूचर "
मैंने धन्यवाद कहा और माफी माँगते हुए फोन काट दिया।उसके बाद मेरे पास करीब सभी विद्यालयों से फोन आया(केवल अलवर को छोड़ कर) कि वह मेरे शर्तों को मानने को तैयार हैं।मैंने सबको धन्यवाद कहा और अपनी नौकरी के बारे में सूचित किया।अब अगला लक्ष्य था पश्चिमी दिल्ली से दक्षिणी दिल्ली शिफ्ट करने के लिए कमरा खोजना और ऐसी स्थिति में जब जेब में पैसे न हों क्योंकि दो महीने का एडवांस किराया मकान मालिक को देने के लिए और एक महीने का किराया दलाल को।
मेरे सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि बटुआ कटने के कारण मेरे सब पहचान के कागजात गायब हो गए थे।गैस कनेक्शन ट्रांसफर कराना था उसके लिए पहचान पत्र और निवास प्रमाण पत्र की आवश्यकता थी।मेरे को 16 अगस्त से स्कूल ज्वाइन करना था तो मैं किसी तरह पैसे की व्यवस्था करके एक कमरे का सेट खोजा और 15 अगस्त की शाम को सामान के साथ उधर चला गया।16 अगस्त से नौकरी शुरू की और उसी दिन अन्ना हजारे का आंदोलन शुरू हुआ और 30 अगस्त को जाकर उन्होंने अनशन समाप्त किया।संयोग देखिए कि उसी दिन मेरे गैस सिलिंडर की व्यवस्था हुई।चुंकि मैं बाहर कुछ नहीं खाता हूँ तो रोज सुबह, दोपहर और रात को केला खाता और रात में रोज आधा किलो का 'मदर डेरी' का पैकेट ले आता और उसे फाड़ करके पैकेट से ही मुँह लगाकर कच्चा दूध पीता था।इन 15 दिनों में अन्न से कोई परिचय नहीं हुआ ।
(क्रमशः)

'बेबाकी'