रविवार, 30 अगस्त 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे १९

20 जनवरी, 2011 की बात है जब मेरी उनसे आखिरी बार बात हुई वह भी करीब 3 घंटे रात के ढाई बजे तक तो उन्होंने मुझे जो बात आखिरी में कही वह थी "अनुरगवा अगर कब्बो नौकरी बदले के मूड होई त बतईहे, मैनेजमेंट से खटपट, दिल्ली में मन लगै कउनो सूरत में अगले दिन तोहरे नाम क अपाॅइंटमेंट लेटर फैक्स करब।हमरो मन ना लगत यार।वो अकैडमिक लेवल अऊर मेंटल लेवल क टीचर ना मिलल यार जेकरे साथ काम करे में मजा आवे अऊर कुछ सीखे के मिले अऊर आपन लेवल बढ़े।तू आ जईबे साथे त बढ़िया रही।"
यह आखिरी वाक्य था जो आज भी मेरे कानों में गूँज रहा है।
(अब आगे )
तारीख थी 23 जनवरी, 2011 और सुबह का 8 बजा था।रविवार का दिन होने के वजह से थोड़ा आलस था कि आराम से काम किया जाएगा।छोटा भाई मेरठ से आया हुआ था।सुबह उठा ही था और भाई को बोला चाय बनाने को।भाई चाय बनाकर लाया और दोनों भाई साथ में बैठकर अखबार पढ़ते हुए चाय की चुस्किया ले रहें थे और समाचारों पर चर्चा कर रहे थे। इतने में बनारस से मेरे मित्र शरद जी का फोन आया।मैंने बड़ी सोचा कि इतनी सुबह फोन शरद का फोन वह भी छुट्टी के दिन।खैर मैंने फोन उठाया और पलग्गी किया।उसके बाद तो उन्होंने तो हिरोशिमा नागासाकी टाइप बम गिराया जिसके प्रभाव से उबरना बड़ा मुश्किल है मेरे लिए।उन्होंने कहा 'अनुराग सर, अमब्रीश सर नहीं रहे'।दो मिनट तक तो मैं चेतनाशून्य हो गया।फिर मैंने अपने को संभाला और प्रतिक्रिया स्वरुप उन्हें डाँटते हुए कहा 'का यार शरद पगला गईला का? सबेरे सबेरे अइसन मजाक करल जाला का? होश में बोला'
उन्होंने कहा 'नहीं अनुराग सर सही कहत हई।एक रोड ऐक्सिडेंट में हम लोग को छोड़ कर चले गए।' मैंने तुरंत फोन काटा क्योंकि मैं तो चेतनाशून्य हो चुका था इतना मैं आज कह सकता हूँ क्योंकि मुझे आज भी नहीं याद आता है कि मैंने क्या सोचा था उस समय।मेरे को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ।किससे पूछा जाए और क्या पूछा जाए, कैसे पूछा जाए।भईया के घर का सबका नंबर था लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। मैंने तुरंत लैपटाॅप उठाया और Syna International School Katni की वेबसाइट खोली और उनके स्कूल का नंबर निकाला।फोन मिलाया तो ऑफिस में किसी ने उठाया तो मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने मुझे पूरा वाकया बताया।मैंने तुरंत उनसे प्रिंसिपल का नंबर माँगा क्योंकि मैं उनको मिल चुका था दो साल पहले इंटरव्यू में और मैंने मना कर दिया था उनको।मैंने तुरंत फोन लगाया उनको और बोला 'Mr Aditya, myself Anurag this side from Delhi a very close friend of Ambrish Bhaiya. I came to know about the incident. Now what is the position there. I am thinking to reach Katni. Now you give me the suggestion'
उन्होंने कहा ' Yes whatever happened it has been a tremendous loss to the family, school and everyone associated. We lost 2 teachers on the spot among whom Mr Pathak was one of them. Still two are in serious condition in hospital. I don't know what to say. In my opinion it would be better that you move to Varanasi directly as post-mortem is over and the body is here. In couple of hours the family will start from here. There is no use of coming here as family will need your support there more" 
इतना कहने के बाद मैंने फोन काट दिया।इतने देर में भाई सभी चीजों से अनभिज्ञ था फिर मेरी स्थिति को देखकर उसने मुझसे पूछा तो मैंने उसे बताया तो वह तो पत्थर सा हो गया।भाई भी भईया से आत्मिक रूप से जुड़ा हुआ है चुंकि पूरे तीन वर्ष वह मेरे साथ ही रहकर बनारस पढ़ाई की और भईया उसे बेटे की तरह मानते थे।उसने तुरंत कहा कि आप जाइए मैं यहाँ हूँ नहीं तो मेरठ चला जाऊँगा।
मैंने अनुमान लगाया कि यदि वह लोग कटनी से 11 बजे भी चलेंगे तो 6 बजे शाम तक बनारस पहुँच जाएँगे और मैं यहाँ दिल्ली से निकलता हूँ तो जो भी ट्रेन मिलेगी तुरंत तो मैं कल सुबह 7 बजे से पहले नहीं पहुँच पाऊंगा और तब तक तो सब खत्म हो चुका होगा।
मैंने तुरंत फोन अपनी माँ को लगाया तो वह तो काठ हो गईं क्योंकि भईया की दूसरी बेटी माँ के देख-रेख में अस्पताल में पैदा हुई थी।एक हफ्ते तक माँ अस्पताल रही भाभी के साथ।माँ ने तुरंत कहा"बेटा नौकरी की चिंता मत करो तुरंत बनारस परिवार के पास पहुँचो।' मैंने माँ को बताया कि किसी भी सूरत में मैं टाइम पर पहुँच नहीं पाऊँगा तो उन्होंने कहा कि तुम निकलो।मैंने तुरंत बात पर अमल किया और फोन मिलाया अपने विभागाध्यक्ष को, तो उनका फोन बंद था।मैंने तुरंत उनके फोन पर एक संदेश भेज दिया।मैंने तुरंत अपने एक सहकर्मी को मिलाया और उनको विवरण दिया और उनसे कहा कि आप सूचित कर दीजिएगा।फिर मैंने एक और सहकर्मी को भी खबर की।
मैंने तुरंत मन बनाया कि अब 1 बजे चुके हैं और नई दिल्ली स्टेशन पहुँचुंगा 2-3 बज जाएगा और कोई ट्रेन नहीं मिलेगी और अगली ट्रेन शाम को सात बजे शिवगंगा एक्सप्रेस ही है।मैंने मन बना लिया कि अब शिवगंगा पकड़ कर सुबह 8 बजे पहुंचुँगा।मैं तुरंत भाई को बताया और निकल गया।2 बजे करीब नई दिल्ली स्टेशन पहुँच गया और लाइन में जाकर सामान्य श्रेणी के टिकट के चक्कर में पड़ गया।वहीं बगल में 'करेंट रिजर्वेशन' का काऊंटर था।मुझे यह स्वीकार करने में थोड़ी भी झिझक नहीं है कि उस समय तक मुझे 'करेंट रिजर्वेशन' में क्या होता है नहीं मालूम था। पता नहीं क्या मन में आया कि मैंने सोचा देखता हूँ पता करता हूँ कि क्या होता है।
वहाँ पहुँच कर मैंने पूछा कि क्या शिवगंगा से करेंट रिजर्वेशन मिल जाएगा तो अगले ने तुरंत पूछा कि कहाँ जाना है।मैंने उनको बताया कि बनारस तो उन्होंने कहा कि शिवगंगा से तच नहीं मिल पाएगा लेकिन एक ट्रेन है 'युवा एक्सप्रेस' में है और वह छूटने वाली है लेकिन समस्या यह है कि वह मुगलसराए जाती है और और पूरी ट्रेन चेयरकार है।सोने को जगह नहीं मिल पाएगी। मैंने सोचा कि सामान्य श्रेणी में खड़े होकर जाने से बेहतर तो है कि आराम से बैठकर जाया जाए।मैंने उन्हें तुरंत कहा आप टिकट बना दीजिए।मैं टिकट लिया और पैसे देकर प्लैटफार्म की तरफ भागा। 3:30 बज चुके थे और 15 मिनट में ट्रेन छूटने वाली थी तो भागकर एक बोगी में जगह देखकर बैठ गया।मैंने तुरंत शरद और यमन को फोन लगाकर जानकारी ली कि क्या समाचार है।उन्होंने बताया कि परिवार वाले कटनी से निकल गए हैं और 8 बजे तक आ जाएंगे फिर मणिकर्णिका घाट पर आगे।मैंने उनको सूचित किया कि मैं ट्रेन पकड़ लिया हूँ और रात-बिरात तक पहुँच जाऊँगा तो उन्होंने कहा कि 'अनुराग सर घरे वाला एतना देर इंतजाल करिहन?' मैंने उनसे कहा कि आप सूचित कर दीजिए। शरद ने कहा कि वह सूचित कर देंगे।
उनसे बात खत्म करने के बाद मुझे प्यास लगी तो मैं पानी खोजते हुए पैंट्री की तरफ गया तो देखा कि एक बोगी में पूरी सीटें खाली थी और केवल गिन कर 5 व्यक्ति बैठे थे।मैं तुरंत वापस भाग कर अपना सामान ले आकर सीट पर बैग रखकर पानी की खोज में निकल गया।पानी लेकर आया और पीकर बैठ गया।बीच बीच में शरद और यमन से बात करके समाचार लेता रहा। ट्रेन 9 बजे कानपुर पहुँच गई और मेरे लिए एक-एक पल भारी पड़ रहा था।इतने में Scindia School से मेरे और भईया के घनिष्ठ मित्र Roopak Pande का फोन आया कि वह लोग भी ग्वालियर से निकल गए हैं लेकिन समस्या यह कि ग्वालियर से एक ही ट्रेन बनारस के लिए थी और वह अगले दिन पहुँचाती। चुंकि भईया 2-3 महीने पहले ही Scindia School छोड़कर कटनी ज्वाइन किया था और कटनी वाले स्कूल के प्रिंसिपल भी Scindia School से गए थे तो सबसे पहले खबर इन लोगों को मिल गई थी।वह लोग अपनी गाड़ी से आ रहे थे।मैंने भी उनको बताया कि मैं भी रास्ते में हूँ ।
खैर जैसे ही कानपुर से आगे बढ़ा तो बुरी तरीके से थके और चेतनाशून्य होने के कारण मुझे नींद आ गई और मैं सो गया।मेरी नींद मुगलसराय ही खुली जब ट्रेन खड़ी हो गई।मैंने घड़ी देखा तो सवा-एक बजे थे।मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं पहुँच गया।मैंने यमन को फोन करके समाचार लिया और बताया कि मैं पहुँच गया हूँ और सीधे घाट आ रहा हूँ।यमन ने बताया कि जब उन लोगों ने परिवार को सूचित किया कि मैं चल चुका हूँ तो पिताजी(भईया के) ने कहा कि 'अनुराग सबसे घनिष्ठ रहा है और उतनी दूर से आ रहा है तो उसके आने पर ही आगे का काम होगा'।पूरा परिवार मेरी राह देख रहा था और मैंने तुरंत ऑटो किया और मैदागिन पहुँच गया जहाँ यमन मुझे लेने आए हुए थे।मैं घाट पर पहुँचा तो देखा कि वहाँ सैकड़ों से ज्यादा लोगों की भीड़ लगी थी।
हम लोग बनारस 3-4 वर्ष पहले छोड़ चुके थे फिर भी वहाँ हर व्यक्ति दिखा जिससे हम लोग नजदीक थे।चाय वाला, पान वाला, मेडिकल स्टोर वाला, सब्जी वाला, हर स्कूल के टीचर जहाँ उन्होंने पढ़ाया था।मैं जब पहुँचा तो सबसे पहले उमेश भइया से सामना हुआ और उन्होंने मुझे पकड़ लिया और लिपट गए।फिर पिताजी से सामना हुआ तो वह मेरा हाथ पकड़ कर बोले "देख रहे हो अनुराग जहाँ मुझे होना चाहिए था वहाँ आज वह सोया हुआ है।कितना प्रेम था उसके अंदर कि तुम दिल्ली से आ गए और भी शहरों में जानने वाले भी आ गए हैं और कुछ रास्ते में हैं।बताओ इस 78 वर्ष की उम्र में मैं कैसे दो छोटी बच्चियों को संभालूँगा" मैं तो काठ हो चुका था समझ में ही नहीं आ रहा था क्या बोला जाए।आनंद भईया ने कहा कि"जा अनुराग तोहरे इंतजार होत रहल अंतिम दर्शन कर ला भाई क।का हमहन सबसे भयल रहल कि सबके छोड़ कर चल गईनअ" मैं उठकर वहाँ गया जहाँ वह चिरनिद्रा में सोए हुए थे।मुझे अंतिम दर्शन कराया गया और आगे की कार्रवाई शुरू हुई।4 बजे के करीब ग्वालियर से Roopak Bhaiya भी अपने छः मित्रों के साथ आ गए लेकिन इसका अफसोस उन्हें जिंदगी भर रहेगा कि अंतिम दर्शन उनके भाग्य में नहीं लिखा था।
छः बजे तक सबकुछ समाप्त हो गया था और जीवन का अंतिम सत्य सामने था।जीवन के अंतिम समय आपको विदा करने कितने लोग आएं हैं उससे आपकी हैसियत का अनुमान लगता है और वही आपके कमाई की वास्तविक पूँजी है।
(क्रमशः)


बेबाकी

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