मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

Subsistence Crisis


एक दिन हम कलास में फ्रेंच रेवोल्यूशन पढ़ा रहे थे तो एक ठो बड़ा खुरापाती लईका था, न पढ़ने में मन लगा रहा था अऊर न तो चुपै बईठ रहा था।कभी बगल वाली लईकी को छेड़ रहा था तो कभी बगल वाले लईका को चिकोटी काट देता था।देख देख कर हमारा पारा हाई हो रहा था फिर भी उसको देख कर हम महटिया रहे थे। आखिर कब तक बर्दाश्त करते। मने मन सोचे कि एक ठो सवाल दाग देते हैं अऊर व्याख्या पूछ लेते हैं। ससुर बता तो पाएँगे नहीं तो बल हिक कांड़ देंगे। हम बीचै में अपने पाठन को रोक कर, गोस्सा से लाल होकर अऊर चिल्लाते हुए कड़क आवाज में बोले " अमन यू गेट अप एंड टेल मी, व्हाट इज सब्सिसटेंश क्राइसिस एंड एक्सप्लेन मी विद द हेल्प ऑफ इगजाम्पल। एंड हाऊ डज इट लीड टू रिबेलियन?"

पहिले तो ससुरा गदाई नियर चुप रहा लेकिन जब हम घुड़के तो बुड़बकवा काँपते हुए बोला " सर सब्सिस्टेंट क्राइसिस इज दैट सिचुएशन वेन ऑवर लाईव्लीहुड इज एंडेन्जर्ड" एतना बोलकर ससुरा चुपा गया अऊर हम मने मन खुश हुए कि लगता है इसके आगे नहीं आता है अऊर बल भर अब कंड़ाएगा। हम दाँत पीसते हुए बोले "न्याऊ एक्सप्लेन मी विद इगजामपल"
ऊ तो काँप गया अऊर फिर बोला " सर जइसे फ्रांस में 10 परशेंट आबादी के पास 90 प्रतिशत संपत्ति थी और ये बिना टैक्स चुकाए मलाई काटते।जो सबसे ऊपर का वर्ग था वह अय्याशी का जीवन जीता था द्वतीय वर्ग प्रथम का तेल लगाकर खूब पुरस्कृत होता था और मलाई काटता था। ऊपर के दोनों वर्ग को टैक्स माफ था और तृतीय वर्ग जिसमें 90 प्रतिशत आबादी थी वही टैक्स देते थे। दोज हू वर नाॅट हैविंग इनकम वर पेइंग इनकम टैक्स एंड अदर टाइप ऑफ टैक्सेस। राज्य भी जनता की बेहतरी के लिए कोई उपाय नहीं कर रही थी ऊपर से मौसम ने बची खुची कसर पूरी कर दी।वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे थे जिसको वहन करना जनता के बस के बाहर था। उसके सामने तो दो ही उपाय थे या तो विद्रोह करे या तो आत्महत्या तो उसने विद्रोह का रास्ता अपनाया और फ्रांस की क्रांति हुई।"

हम तो सोचने लगे कि इ तो ससुरा बता दिया अब इ तो बच गया लेकिन हमहूं कसम खा लिए थे कि कांड़ेंगे जरूर ससुर को तो दूसरा प्रश्न दाग दिए " एक्सप्लेन मी द काॅनसेप्ट विद इग्जामपल इन इंडियन कांटेक्सट"लगे ससुर पसीने पसीने होने अऊर ओनके जेतना पसीना आ रहा था हमार पसीना ओतने सूख रहा था। तो साहब 2 मिनट तक चुप रहे तो हम खुश हुए कि चलो अब धो देते हैं। जइसे सोटा उठाए धोने के लिए वइसै....ससुर बोल उठे "गुरु जी बता रहे हैं"। हम बोले कि "हाँ साहब बांचिए अऊर समझाइए"। तो साहब बोले "जइसे सर भारत की आजादी के बाद भारत में भी तीन वर्ग हुआ।सबसे ऊपर वाला जो सत्ता पर काबिज, जो तमाम तरीके की सुख-सुविधाएँ का उपभोग करता है। हर चीज उसको सबसिडी के रेट पर मिलती है और कऊनो टैक्स-फैक्स का झंझट नहीं है। इस वर्ग का काम है किसी प्रकार से सत्ता में बने रहना होता है, साम-दाम,दण्ड-भेद। जो वो सिखाता है, दिखाता है, सुनाता है जनता वही सीखती है, देखती है और सुनते हुए खूब झाल-मजीरा के साथ गुणगान करती है। दूसरा वर्ग बीच वाला होता है जो दलाल का काम करता है और चाटुकारिता करता है। वह अंदर से खोखला होता है और उसका काम होता है सत्ता को तेल लगाना। इसमें साहित्यकार,मीडिया, इतिहासकार इत्यादि आते हैं जिनका काम जनता के सामने सत्ता को ईश्वरीय रूप में पेश करना ताकि जनता भजन गाती रहे और बदले में इन सबको पुरस्कार और कई तरह की रेवड़ी बाँटी जाती है। दोनों में गजबै का सामनजस्य होता है या कह सकते हैं कि दून्नो एक दूसरे के पूरक होते हैं। अऊर तीसरा वर्ग सबसे नीचे वाला होता है जो जमकर खटता है अऊर अपने कमाई का ज्यादा हिस्सा टैक्स के रूप में अपने भगवान को चढ़ा देता है। और जब जनता असंतोष के कारण चिल्लाना शुरू करती है तो आरक्षण, सबसिडी और कई तरह के प्रलोभनों द्वारा जनता के मुँह में लेमनचूस डाल दिया जाता है ताकि चुभलाते रहे और समय समय पर ऐसा होता आया है।" 
इतना कहने के बाद घोंचू नियर चुपा गया। हम तो बड़ा खुश हुए कि लेहली हम इनकर और गरजते हुए बोले कि "इससे रेबिलियन कहाँ हुआ?" तो वह थोड़ा सा जोश में आते हुए बोला "अरे गुरुजी हमार व्याख्या अभी पूरी कहाँ हुई थी कि आप बीचे में लकड़ी कर दिए। लेकिन दुर्भाग्य उन दोनो ऊपरी वर्गों का कि 2014 में सत्ता बदल गई अऊर नया जो आया है वह पारदर्शिता में विश्वास करता है तो व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए जब नियम कानून बदले जा रहे हैं तो पिछले वाले धुआँ फेंक रहे हैं। इनका इतिहास खुल रहा है।आप ही बताइए गुरुजी कि 6000 NGO का लाइसेंस रद्द किया तो चारा आना बंद हो गया तो अऊर ऊप्पर से पिछला पाप का घड़ा उलटा रहा है धीरे धीरे तो सबसे ऊपरी वर्ग की इस स्थिति को का कहेंगे? अब इ सबसिसटेंट क्राइसिस नहीं है तो का ह? रही बात दूसरे वर्ग की जो तेल का कारखाना और तेल लगाने की सर्विस देता था अब छटपटा रहा है।मैं यह नहीं कहता हूँ कि सब दलाल हैं लेकिन मंडली पूरी दलालों की थी और दलाली से चलती थी। जिनको ये सब तेल लगाते जब वही पलिहरे क बानर बन रहे हैं तो इन सबको कहाँ से रोटी फेंकेंगे। इन सबके भी NGO पर ताला लग गया।कामधेनू गाय बिसुक गई अब आगे शायद दूध न दे पाए। दूसरे वर्ग की इस स्थिति को आप का कहेंगे? भुखले मरेगा तो उसको सबसिसटेंट क्राइसिसे न कहा जाएगा?"
कलास का बच्चा लोग मुसकिया रहा था अऊर थपोड़ी पीटने लगा तो हम का बताएँ कि हमको केतना गुस्सा आया बस कहिए कि मुट्ठी भींच कर अपने गोस्सा को शांत किए हुए थे।
एतना बोलने के बाद ससुरा फिर चुपा गया तो हम मने मन मुसकियाए अऊर हमारा चेहरा हरिया गया कि अब त लेई लेब इनके अऊर बोले हम "बस हो गया? एतनै आता है न? इसमें रेबीलियन कइसे भया बे?" बचवा तनि सा सीना ताना अऊर मुसकियाते हुए बोला " बकलोल हैं का? का पढ़कर आए हैं आप। अगवां सुनिए। रेबीलियन अइसे हुआ कि आप देख रहे हैं न साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वालों को। ई रेबीलियन है,साजिश है विद्रोह है।"
एतना पर हम उसको टोक दिए काहे कि हमहू किरिया खा लिए थे कि ठोकेंगे जरूर इनको अऊर बोले "अबे तुमको देखा नहीं रहा है कि उ सब सम्मानित साहित्यकार हैं।साहित्यकार बहुत संवेदनशील होता है। ऊ सब तो कलबुर्गी की हत्या अऊर दादरी कांड के विरोध में लऊटाया है। माहौल नहीं देख रहा है" फिर ससुरा बीच में हमको टोक कर बोला "गुरु जी हम तो आपको समझदार समझते थे लेकिन आपो उहे हैं। आपको दिखा नहीं रहा है कि मीडिया पिछले डेढ़ बरिस से कवन राग टेर रहा है। अऊर तो अऊर अइसे टेर रहा है कि जइसे निरहू चचा से लेकर मौनी बाबा तक यहाँ राम राज्य था अऊर कुल बीपत पिछले डेढ़ै बरिस में आ गई, आसमान फट गया। सबका चारा बंद हो गया है। दादरी के पहिले तो भारत जैनी था एकहू मच्छर भी नहीं मरा इहां।84 ,बाबरी, मुंबई, गोधरा, भागलपुर, मुजफ्फरनगर अऊर पता नहीं केतना हुआ। महाराष्ट्र में केतना किसान लोग आत्महत्या कर लिया, बहुत जगह पर जातियों के बीच दंगा हुआ, कितना बहिन बेटी का इज्जत लुटाया अऊर मारा गया।आप कह रहे हैं कि साहित्यकार संवेदनशील होता है? घंटा होता है। कहाँ मर गई थी इन सब की संवेदनशीललता। अब शील भंग हो रहा है, मीडिया का दुकान बंद हो रहा है अऊर चारा बंद हो गया है अऊर ए कुल साहित्यकार को कोई पूछ नहीं रहा है तो पुरस्कार की ट्रफिया तो काभधेनु तो है नहीं तो घरे में रखकर अचार डालेगा सब। लिख तो सकता नहीं है सब। भोथरही कलम से जो लिख दिया अऊर तलवा चाटने के लिए पुरस्कार मिला।अब लिखेगा तो कऊनो इ कुल का किताब मूँगफली, लाई-दाना,पकऊड़ा समोसा का खोमचा बनाने का काम आएगा।इसलिए सब पुरस्कार लऊटा रहा है अऊर मीडिया खूब भौंक रहा है। नहीं इ सब करेगा तो आत्महत्या के अलावा कऊनो उपाय नहीं है दूसरा। इसी को कहते हैं गुरु जी 'सबसिस्टेंश क्राइसिस' और ऐसे होता है उसकी वजह से रेबीलियन या विद्रोह। लेकिन गुरुजी इस मुगालते में मत रहिएगा कि इ फ्रेंच रेवोल्यूशन है।कुछ नहीं उखड़ने वाला है जनता सब जानती है अऊर जान गई है। कुछहू नहीं कबर पाएगा ।"
लौंडा एतना बोलकर चुपाया ही था कि पूरा कलास खड़ा होकर सीटी मारने लगा अऊर थपोड़ी पीटने लगा। लौंडे को कांड़ नहीं पाए कुल साम-दाम,दंड-भेद लगाकर तो सब बेकार है, हमरा तो इज्जत उतर गया अऊर इ बात तो आग की तरह फैल जाएगा अऊर ऊपर पहुँचा तो हम तो 'सबसिस्टेंश क्राइसिस' में आ जाएँगे। जब एक ठो लड़का को नहीं कांड़ पाए तो अऊर का कबार पाऊँगा।डिग्रिया का घरे में रहकर अंडा देगा? अइसा करता हूँ कि हम भी विद्रोह करता हूँ अऊर कुल डिग्री बोर्ड अऊर विश्वविद्यालय को लऊटा देता हूँ अऊर विद्यालय से इसतीफा दे देता हूँ ।
'बेबाकी'