रविवार, 30 अगस्त 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे १९

20 जनवरी, 2011 की बात है जब मेरी उनसे आखिरी बार बात हुई वह भी करीब 3 घंटे रात के ढाई बजे तक तो उन्होंने मुझे जो बात आखिरी में कही वह थी "अनुरगवा अगर कब्बो नौकरी बदले के मूड होई त बतईहे, मैनेजमेंट से खटपट, दिल्ली में मन लगै कउनो सूरत में अगले दिन तोहरे नाम क अपाॅइंटमेंट लेटर फैक्स करब।हमरो मन ना लगत यार।वो अकैडमिक लेवल अऊर मेंटल लेवल क टीचर ना मिलल यार जेकरे साथ काम करे में मजा आवे अऊर कुछ सीखे के मिले अऊर आपन लेवल बढ़े।तू आ जईबे साथे त बढ़िया रही।"
यह आखिरी वाक्य था जो आज भी मेरे कानों में गूँज रहा है।
(अब आगे )
तारीख थी 23 जनवरी, 2011 और सुबह का 8 बजा था।रविवार का दिन होने के वजह से थोड़ा आलस था कि आराम से काम किया जाएगा।छोटा भाई मेरठ से आया हुआ था।सुबह उठा ही था और भाई को बोला चाय बनाने को।भाई चाय बनाकर लाया और दोनों भाई साथ में बैठकर अखबार पढ़ते हुए चाय की चुस्किया ले रहें थे और समाचारों पर चर्चा कर रहे थे। इतने में बनारस से मेरे मित्र शरद जी का फोन आया।मैंने बड़ी सोचा कि इतनी सुबह फोन शरद का फोन वह भी छुट्टी के दिन।खैर मैंने फोन उठाया और पलग्गी किया।उसके बाद तो उन्होंने तो हिरोशिमा नागासाकी टाइप बम गिराया जिसके प्रभाव से उबरना बड़ा मुश्किल है मेरे लिए।उन्होंने कहा 'अनुराग सर, अमब्रीश सर नहीं रहे'।दो मिनट तक तो मैं चेतनाशून्य हो गया।फिर मैंने अपने को संभाला और प्रतिक्रिया स्वरुप उन्हें डाँटते हुए कहा 'का यार शरद पगला गईला का? सबेरे सबेरे अइसन मजाक करल जाला का? होश में बोला'
उन्होंने कहा 'नहीं अनुराग सर सही कहत हई।एक रोड ऐक्सिडेंट में हम लोग को छोड़ कर चले गए।' मैंने तुरंत फोन काटा क्योंकि मैं तो चेतनाशून्य हो चुका था इतना मैं आज कह सकता हूँ क्योंकि मुझे आज भी नहीं याद आता है कि मैंने क्या सोचा था उस समय।मेरे को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ।किससे पूछा जाए और क्या पूछा जाए, कैसे पूछा जाए।भईया के घर का सबका नंबर था लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। मैंने तुरंत लैपटाॅप उठाया और Syna International School Katni की वेबसाइट खोली और उनके स्कूल का नंबर निकाला।फोन मिलाया तो ऑफिस में किसी ने उठाया तो मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने मुझे पूरा वाकया बताया।मैंने तुरंत उनसे प्रिंसिपल का नंबर माँगा क्योंकि मैं उनको मिल चुका था दो साल पहले इंटरव्यू में और मैंने मना कर दिया था उनको।मैंने तुरंत फोन लगाया उनको और बोला 'Mr Aditya, myself Anurag this side from Delhi a very close friend of Ambrish Bhaiya. I came to know about the incident. Now what is the position there. I am thinking to reach Katni. Now you give me the suggestion'
उन्होंने कहा ' Yes whatever happened it has been a tremendous loss to the family, school and everyone associated. We lost 2 teachers on the spot among whom Mr Pathak was one of them. Still two are in serious condition in hospital. I don't know what to say. In my opinion it would be better that you move to Varanasi directly as post-mortem is over and the body is here. In couple of hours the family will start from here. There is no use of coming here as family will need your support there more" 
इतना कहने के बाद मैंने फोन काट दिया।इतने देर में भाई सभी चीजों से अनभिज्ञ था फिर मेरी स्थिति को देखकर उसने मुझसे पूछा तो मैंने उसे बताया तो वह तो पत्थर सा हो गया।भाई भी भईया से आत्मिक रूप से जुड़ा हुआ है चुंकि पूरे तीन वर्ष वह मेरे साथ ही रहकर बनारस पढ़ाई की और भईया उसे बेटे की तरह मानते थे।उसने तुरंत कहा कि आप जाइए मैं यहाँ हूँ नहीं तो मेरठ चला जाऊँगा।
मैंने अनुमान लगाया कि यदि वह लोग कटनी से 11 बजे भी चलेंगे तो 6 बजे शाम तक बनारस पहुँच जाएँगे और मैं यहाँ दिल्ली से निकलता हूँ तो जो भी ट्रेन मिलेगी तुरंत तो मैं कल सुबह 7 बजे से पहले नहीं पहुँच पाऊंगा और तब तक तो सब खत्म हो चुका होगा।
मैंने तुरंत फोन अपनी माँ को लगाया तो वह तो काठ हो गईं क्योंकि भईया की दूसरी बेटी माँ के देख-रेख में अस्पताल में पैदा हुई थी।एक हफ्ते तक माँ अस्पताल रही भाभी के साथ।माँ ने तुरंत कहा"बेटा नौकरी की चिंता मत करो तुरंत बनारस परिवार के पास पहुँचो।' मैंने माँ को बताया कि किसी भी सूरत में मैं टाइम पर पहुँच नहीं पाऊँगा तो उन्होंने कहा कि तुम निकलो।मैंने तुरंत बात पर अमल किया और फोन मिलाया अपने विभागाध्यक्ष को, तो उनका फोन बंद था।मैंने तुरंत उनके फोन पर एक संदेश भेज दिया।मैंने तुरंत अपने एक सहकर्मी को मिलाया और उनको विवरण दिया और उनसे कहा कि आप सूचित कर दीजिएगा।फिर मैंने एक और सहकर्मी को भी खबर की।
मैंने तुरंत मन बनाया कि अब 1 बजे चुके हैं और नई दिल्ली स्टेशन पहुँचुंगा 2-3 बज जाएगा और कोई ट्रेन नहीं मिलेगी और अगली ट्रेन शाम को सात बजे शिवगंगा एक्सप्रेस ही है।मैंने मन बना लिया कि अब शिवगंगा पकड़ कर सुबह 8 बजे पहुंचुँगा।मैं तुरंत भाई को बताया और निकल गया।2 बजे करीब नई दिल्ली स्टेशन पहुँच गया और लाइन में जाकर सामान्य श्रेणी के टिकट के चक्कर में पड़ गया।वहीं बगल में 'करेंट रिजर्वेशन' का काऊंटर था।मुझे यह स्वीकार करने में थोड़ी भी झिझक नहीं है कि उस समय तक मुझे 'करेंट रिजर्वेशन' में क्या होता है नहीं मालूम था। पता नहीं क्या मन में आया कि मैंने सोचा देखता हूँ पता करता हूँ कि क्या होता है।
वहाँ पहुँच कर मैंने पूछा कि क्या शिवगंगा से करेंट रिजर्वेशन मिल जाएगा तो अगले ने तुरंत पूछा कि कहाँ जाना है।मैंने उनको बताया कि बनारस तो उन्होंने कहा कि शिवगंगा से तच नहीं मिल पाएगा लेकिन एक ट्रेन है 'युवा एक्सप्रेस' में है और वह छूटने वाली है लेकिन समस्या यह है कि वह मुगलसराए जाती है और और पूरी ट्रेन चेयरकार है।सोने को जगह नहीं मिल पाएगी। मैंने सोचा कि सामान्य श्रेणी में खड़े होकर जाने से बेहतर तो है कि आराम से बैठकर जाया जाए।मैंने उन्हें तुरंत कहा आप टिकट बना दीजिए।मैं टिकट लिया और पैसे देकर प्लैटफार्म की तरफ भागा। 3:30 बज चुके थे और 15 मिनट में ट्रेन छूटने वाली थी तो भागकर एक बोगी में जगह देखकर बैठ गया।मैंने तुरंत शरद और यमन को फोन लगाकर जानकारी ली कि क्या समाचार है।उन्होंने बताया कि परिवार वाले कटनी से निकल गए हैं और 8 बजे तक आ जाएंगे फिर मणिकर्णिका घाट पर आगे।मैंने उनको सूचित किया कि मैं ट्रेन पकड़ लिया हूँ और रात-बिरात तक पहुँच जाऊँगा तो उन्होंने कहा कि 'अनुराग सर घरे वाला एतना देर इंतजाल करिहन?' मैंने उनसे कहा कि आप सूचित कर दीजिए। शरद ने कहा कि वह सूचित कर देंगे।
उनसे बात खत्म करने के बाद मुझे प्यास लगी तो मैं पानी खोजते हुए पैंट्री की तरफ गया तो देखा कि एक बोगी में पूरी सीटें खाली थी और केवल गिन कर 5 व्यक्ति बैठे थे।मैं तुरंत वापस भाग कर अपना सामान ले आकर सीट पर बैग रखकर पानी की खोज में निकल गया।पानी लेकर आया और पीकर बैठ गया।बीच बीच में शरद और यमन से बात करके समाचार लेता रहा। ट्रेन 9 बजे कानपुर पहुँच गई और मेरे लिए एक-एक पल भारी पड़ रहा था।इतने में Scindia School से मेरे और भईया के घनिष्ठ मित्र Roopak Pande का फोन आया कि वह लोग भी ग्वालियर से निकल गए हैं लेकिन समस्या यह कि ग्वालियर से एक ही ट्रेन बनारस के लिए थी और वह अगले दिन पहुँचाती। चुंकि भईया 2-3 महीने पहले ही Scindia School छोड़कर कटनी ज्वाइन किया था और कटनी वाले स्कूल के प्रिंसिपल भी Scindia School से गए थे तो सबसे पहले खबर इन लोगों को मिल गई थी।वह लोग अपनी गाड़ी से आ रहे थे।मैंने भी उनको बताया कि मैं भी रास्ते में हूँ ।
खैर जैसे ही कानपुर से आगे बढ़ा तो बुरी तरीके से थके और चेतनाशून्य होने के कारण मुझे नींद आ गई और मैं सो गया।मेरी नींद मुगलसराय ही खुली जब ट्रेन खड़ी हो गई।मैंने घड़ी देखा तो सवा-एक बजे थे।मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं पहुँच गया।मैंने यमन को फोन करके समाचार लिया और बताया कि मैं पहुँच गया हूँ और सीधे घाट आ रहा हूँ।यमन ने बताया कि जब उन लोगों ने परिवार को सूचित किया कि मैं चल चुका हूँ तो पिताजी(भईया के) ने कहा कि 'अनुराग सबसे घनिष्ठ रहा है और उतनी दूर से आ रहा है तो उसके आने पर ही आगे का काम होगा'।पूरा परिवार मेरी राह देख रहा था और मैंने तुरंत ऑटो किया और मैदागिन पहुँच गया जहाँ यमन मुझे लेने आए हुए थे।मैं घाट पर पहुँचा तो देखा कि वहाँ सैकड़ों से ज्यादा लोगों की भीड़ लगी थी।
हम लोग बनारस 3-4 वर्ष पहले छोड़ चुके थे फिर भी वहाँ हर व्यक्ति दिखा जिससे हम लोग नजदीक थे।चाय वाला, पान वाला, मेडिकल स्टोर वाला, सब्जी वाला, हर स्कूल के टीचर जहाँ उन्होंने पढ़ाया था।मैं जब पहुँचा तो सबसे पहले उमेश भइया से सामना हुआ और उन्होंने मुझे पकड़ लिया और लिपट गए।फिर पिताजी से सामना हुआ तो वह मेरा हाथ पकड़ कर बोले "देख रहे हो अनुराग जहाँ मुझे होना चाहिए था वहाँ आज वह सोया हुआ है।कितना प्रेम था उसके अंदर कि तुम दिल्ली से आ गए और भी शहरों में जानने वाले भी आ गए हैं और कुछ रास्ते में हैं।बताओ इस 78 वर्ष की उम्र में मैं कैसे दो छोटी बच्चियों को संभालूँगा" मैं तो काठ हो चुका था समझ में ही नहीं आ रहा था क्या बोला जाए।आनंद भईया ने कहा कि"जा अनुराग तोहरे इंतजार होत रहल अंतिम दर्शन कर ला भाई क।का हमहन सबसे भयल रहल कि सबके छोड़ कर चल गईनअ" मैं उठकर वहाँ गया जहाँ वह चिरनिद्रा में सोए हुए थे।मुझे अंतिम दर्शन कराया गया और आगे की कार्रवाई शुरू हुई।4 बजे के करीब ग्वालियर से Roopak Bhaiya भी अपने छः मित्रों के साथ आ गए लेकिन इसका अफसोस उन्हें जिंदगी भर रहेगा कि अंतिम दर्शन उनके भाग्य में नहीं लिखा था।
छः बजे तक सबकुछ समाप्त हो गया था और जीवन का अंतिम सत्य सामने था।जीवन के अंतिम समय आपको विदा करने कितने लोग आएं हैं उससे आपकी हैसियत का अनुमान लगता है और वही आपके कमाई की वास्तविक पूँजी है।
(क्रमशः)


बेबाकी

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे १८

भईया और मैंने एकसाथ काम किया था बल्कि मैं उन्हें बड़ा भाई मानता हूँ।मैंने बनारस सन 2007 में छोड़ा और भईया 2008 में।वह 2008 में भारत के प्रतिष्ठित विद्यालय 'Scindia School, Gwalior' में भूगोल के शिक्षक नियुक्त हुए।मैंने अपने पूरे जीवन में बहुत सारे भूगोल के शिक्षक देखें हैं लेकिन विषय पर जिस तरह की पकड़ उनकी थी वैसा आजतक कोई नहीं मिला।सैनिक स्कूल घोड़ाकाल और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और भारत के सुप्रसिद्ध geomorphologist श्री सविंद्र सिंह के बहुत चहेते शिष्य थे।CMS Lucknow से अपनी यात्रा शुरू की उसके बाद Dalhousie Hill Top Shimla फिर Sunbeam School Varanasi उसके बाद Scindia School Gwalior और आखिरी में Syna International School Katni. मेरे और उनके द्वारा शिक्षित छात्र और छात्राएँ और साथ में काम किए शिक्षक उस व्यक्ति का आकलन सही कर सकते हैं हो सकता है कि मेरा आकलन प्रभावित हो सकता है।मुझसे करीब 12 वर्ष बड़े थे लेकिन हमेशा मुझे एक दोस्त और छोटे भाई कि तरह माना।उस व्यक्ति से मेरी मुलाकात बनारस वाले स्कूल में हुई थी।अक्टूबर, 2004 को मैंने एक नई शुरुआत की थी।मैंने Sunbeam School Varuna से नौकरी शुरू की और जिस व्यक्ति से मेरा पहला परिचय कराया गया वह थे श्री अम्ब्रीश पाठक।मैं 23 साल का लड़का केवल स्नातक हालाँकि परास्नातक का छात्र भी था उस समय और कोई अनुभव नहीं।भईया भूगोल के परास्नातक और 12 वर्षों का अनुभव वह भी देश के नामी गिरामी बढ़िया विद्यालयों के।मैं बहुत डरा सहमा सा रहता था और बोलने की हिम्मत नहीं होती थी उनके सामने।उनका इस बात पर ध्यान गया और एक दिन मुझे उन्होंने बैठाकर इसपर बात की लेकिन मेरे अंदर से वह हिचक निकल ही नहीं रही थी।उन्होंने मेरे को बहुत अच्छे से पढ़ लिया था, मेरे ज्ञान को समझ चुके थे और उस हिचक को निकालने के लिए गजब का तरीका निकाला।जब भी होता तो मुझे बुला लेते और बड़ी छोटी-छोटी चीजें मुझसे पूछते और मैं सोचता कि यार इनको यह नहीं आता।कभी कभार तो अपने क्लास से किसी बच्चे को भेजते और बोलते कि जाइए अनुराग सर को बुला लाइए।बच्चा आता मुझे बुलाकर ले जाता और जब मैं पहुँचता तो मुझसे कहते "अनुराग सर थोड़ा यह काॅन्सेप्ट बच्चों को समझा दीजिए शायद आप मुझसे बेहतर इनको समझा पाएँगे।मैं समझाने की कोशिश कर रहा हूँ इनको समझ में नहीं आ रहा है तो मैंने सोचा कि आपको बुला लूँ आप बहुत टैलेंटेड हैं " मैंने देखा कि वह ऐसे टाॅपिक पर मुझे बुलाते जो बहुत ही हल्का होता था जिस पर उनको पूरा विश्वास होता था कि मैं समझा दूँगा आसानी से।मुझे आश्चर्य होता था कि इतनी छोटी चीज नहीं समझा पा रहे हैं यह।


मैंने एक दिन उनसे पूछा भी कि वह ऐसा क्यों करते हैं तो उन्होंने मुझसे कहा ' देख अनुरगवा तू हमसे बहुत छोट हऊवे अऊर तोर नाॅलेज अपने सब्जेक्ट पर जबरदस्त ह अऊर तू अगर हमरे सम्हने एतना दब के अऊर सहम के रहबे त अपने के स्थापित कइसे करबे।हमार का ह हमके सब जानत ह कि हम कइसन अदमी हई अऊर कइसन मास्टर हई अऊर हमार ज्ञान का ह।तोके कऊनो दिक्कत हो त हमरे पजरे आव अऊर हमके कुछ ना समझ में आई त हम तोरे किहन आइब।एम्मन कउनो शर्माए वाली बात ना ह।" आज यदि उन बातों को इस नकारात्मक प्रतिस्पर्धा के दौर में सोचता हूँ और जितना मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है उस आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि " साथ वाले को सिखाने में उन्हें गर्व की अनुभूति होती थी और उससे सीखने में खुशी"। 
मैंने इतने दिनों में जो अनुभव किया है जब कोई शिक्षक बच्चों के सामने अपनी गलती को स्वीकार नहीं करता है और अपने को श्रेष्ठ समझता है तो उसके अंदर कहाँ से वह कलेजा आएगा कि अपनी क्लास में किसी टीचर को बुला कर बोले कि आप समझा दीजिए मैं नहीं समझा पा रहा हूँ। 

एक ही हफ्ते में हम इतने करीब आ गए कि दोनों साथ साथ हमेशा रहते थे।मैं बनारस के दक्षिणी भाग लंका से रोज आता था और वह पक्के महाल से आते थे।बाद में कुछ महीने के बाद हम दोनों ने विद्यालय के पास ही फ्लैट ले लिया।भईया अकेले रहते थे और मेरे साथ मेरा छोटा भाई रहता था।अब हमारा रोज शाम को मिलना शुरू हो गया।कभी मैं शाम को उनके यहाँ रुक जाया करता था तो कभी वह।सुबह तैयार होकर निकल जाते नौकरी पर दोनों साथ में।कभी मैंने उनकी शर्ट पहनी तो कभी मैंने।बहुत प्रयास हुआ प्रिंसिपल की तरफ से कि हमारे बीच खटास उत्पन्न करा दी जाए पर उस केमेस्ट्री को तोड़ना इनके बस की बात नहीं थी।यह तो शायद ईश्वर ही कर सकता था लेकिन खटास तो पैदा वह भी नहीं कर पाया।

यहाँ तक कि उनके बनारस छोड़ने के बाद भी जब भी मुझे 2 दिनों की छुट्टी मिलती थी मैं Scindia School भागता था।दिल्ली से ग्वालियर मुझे महावीर मंदिर से पांडेपुर की दूरी की तरह लगता था।जब छुट्टी में दोनों लोग बनारस पहुँचते तो क्या कहने।कभी कभार उनको परेशान करने के लिए और मजा लेने के लिए मैं रात-बिरात फोन मिला दिया करता था।अचानक फोन देखकर बहुत गरियाते और कहते "देख अनुरगवा तोके नींद ना आवत ह त तू सारे हमार नींद खराब करत हऊवे।देख ढेर पानी मत भर नांही त ठीक ना होई।मिलबे त बहुत कांड़ब, आऊ तू ईंहा त बताइला तोके"।फिर कुछ देर के बाद गरियाने के बाद जब ठंडक हो जाती थी तो फिर लंबी चर्चा और विषय होता था शिक्षा, शिक्षा का स्तर, राजनीति या समाज।भईया ही वह शख्स थे जिनसे मैं हर बात शेयर कर सकता था, हर समस्या। 20 जनवरी, 2011 की बात है जब मेरी उनसे आखिरी बार बात हुई वह भी करीब 3 घंटे रात के ढाई बजे तक तो उन्होंने मुझे जो बात आखिरी में कही वह थी "अनुरगवा अगर कब्बो नौकरी बदले के मूड होई त बतईहे, मैनेजमेंट से खटपट, दिल्ली में मन लगै कउनो सूरत में अगले दिन तोहरे नाम क अपाॅइंटमेंट लेटर फैक्स करब।हमरो मन ना लगत यार।वो अकैडमिक लेवल अऊर मेंटल लेवल क टीचर ना मिलल यार जेकरे साथ काम करे में मजा आवे अऊर कुछ सीखे के मिले अऊर आपन लेवल बढ़े।तू आ जईबे साथे त बढ़िया रही।"
यह आखिरी वाक्य था जो आज भी मेरे कानों में गूँज रहा है।

(क्रमशः)

बेबाकी

सोमवार, 24 अगस्त 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे १७

नौकरी तो मिल गई लेकिन सही में विश्वास ही नहीं हो रहा था। जैसे कोई गीत पसंद आ जाता है तो व्यक्ति बार-बार उसको रिवाइंड करके सुनता है उसी तरह बार-पिछले पाँच महीने की घटना मेरे मन और मस्तिष्क में रिवाइंड होकर सामने आती थी।घटनाएँ रिवाइंड होती थीं तो आँसू फारर्वड मोड में आ गए थे शायद इसलिए कि उनको मौका नहीं मिला था।इसी बीच अचानक दो दिनों के बाद फोन उस विद्यालय से आ गया जहाँ पर leave vacancy थी कि वो मेरी शर्त को मान गए हैं और इस वर्ष वह लोग मुझे PGT HISTORY के तौर पर नियुक्त करेंगे एवं अगले वर्ष मेरे लिए कक्षा 11-12 में नया विषय POLITICAL SCIENCE भी रखेंगे।मेरी वहाँ के प्रिंसिपल से बात हुई और उन्होंने कहा -" मिस्टर अनुराग वे डोंट वांट टू लीव अ टीचर लाइक यू एंड इन आर्डर टू रिटेन यू विथ अस वी विल इंट्रोड्यूस पोलिटिकल साइंस ऐज अ न्यू सब्जेक्ट.वी विल आल्सो हैव ऐन एडवांटेज दैट वी विल आल्सो गेट अ टीचर हू कैन  डील विथ फोर सब्जेक्ट्स अलोन एंड दैट टू वेरी कॉन्फिडेंटली ."
मैंने उनसे बड़ी विनम्रता से कहा मैम आई एम वेरी थैंकफुल टू यू दैट यू डिड दिस मच फॉर  मी.बट आई एम वेरी सॉरी टू इन्फॉर्म यू दैट आई गॉट द जॉब एंड आई हैव रिसीव्ड द ऑफर लेटर ऑफ़ अ स्कूल.बट एनीवे मैम आई विल कम टू मीट यू इन कपल ऑफ़ डेज " फिर मैडम ने कहा कि "मिस्टर अनुराग कोंग्रेचुलेशन्स फॉर योर जॉब एंड इट्स माय हार्ड लक दैट योर इशू गॉट स्टक बिटवीन मी एंड द मैनेजमेंट डिले .एनीवे व्हेनेवेर यू विश यू कैन कम टू मीट मी ."
फिर अगले दिन मेरे पास उस विद्यालय से फोन आया जिससे मैंने दोनों विषय पढ़ाने की शर्त के साथ 60000 रूपए की माँग की थी।उनका फोन जब मैंने उठाया तो उन्होंने कहा "मिस्टर  अनुराग आयी डिस्कस्ड योर प्रपोजल विथ हायर अथॉरिटीज एंड वी आर रेडी टू नेगोसिएट ऑन योर टर्म्स एंड कंडीसन्स. यू कैन कम टुमारो फॉर फरदर प्रोसीडिंग्स"

मैंने उनसे तुरंत कहा सर आयी ऐम वेरी सॉरी टू से दैट यू आर लेट ऐज आयी हैव रिसीव्ड ऑफर लेटर म वन ऑफ़ द स्कूल  इन  डेल्ही."
उन्होंने पूछा -" हाउ मच आर दे पेइंग यू ? " 
मैंने उनसे तुरंत कहा -"सर पे स्केल  अक्कोर्डिंग टू  PGT ग्रेड "
इसपर उन्होंने कहा "बट मिस्टर अनुराग वी आर पेइंग यू मोर एंड दैट आल्सो अप्प्रोक्सिमेटली  २२००० विथ आल द अदर फैसिलिटीज." मैंने तुरंत सोचा कि यह व्यक्ति मुझे खरीदने की कोशिश कर रहा है और मैंने तुरंत जवाब दिया सर आयी थैंक यू फॉर योर एफ्फर्टस एंड  फेवर फॉर मी.सर टुडे इफ आयी एक्सेप्ट योर ऑफर एंड रेफ्यूज़ देम एंड टुमारो इफ समबडी  विल पे मी 80000 एंड आयी एक्सेप्ट दैट एंड रेफ्यूज़ यू देन व्हाट विल यू थिंक अबाउट मी. सर आयी थिंक दैट आयी शुड नोट डिच दैट पर्सन हू ऑफ्फर्ड मी जॉब ऑन माय टर्म्स एंड  कंडीशंस विथ दिस स्टेटमेंट दैट 'मिस्टर सिंह आयी थिंक यू डिज़र्व इट एंड यू टेक आईटी ', व्हेन एवरीवन हियर आज ट्राइंग टू सप्रेस मी विद दियर अमाउंट इन सच अ वे दैट आयी ऐम  नॉट अ टीचर बट अ वर्कर ऑर अ प्रॉस्टिट्यूट. सर सॉरी फॉर दीज हार्श वर्ड्स बट माय  प्रिंसिपल्स एंड वर्क एथिक्स डसन्ट अलाउ मी टू मूव फॉरवर्ड विथ योर ऑफर'
बहुत से लोग मुझे अड़ियल, पागल, बेवकूफ और न जाने क्या-क्या कहेंगे और कह रहे होंगे लेकिन मैंने वह किया जो मेरी अंतरात्मा ने कहा।
मेरी बात उनके समझ में आ गई कि मैं नहीं मानने वाला हूँ तो उन्होंने कहा मिस्टर अनुराग आयी अंडरस्टुड योर पॉइंट एंड आयी रेस्पेक्ट योर वर्क एथिक्स.इट्स आवर हार्ड लक. बेस्ट ऑफ़  लक फॉर योर फ्यूचर होप वी मीट नेक्स्ट टाइम इन फ्यूचर "
मैंने धन्यवाद कहा और माफी माँगते हुए फोन काट दिया।उसके बाद मेरे पास करीब सभी विद्यालयों से फोन आया(केवल अलवर को छोड़ कर) कि वह मेरे शर्तों को मानने को तैयार हैं।मैंने सबको धन्यवाद कहा और अपनी नौकरी के बारे में सूचित किया।अब अगला लक्ष्य था पश्चिमी दिल्ली से दक्षिणी दिल्ली शिफ्ट करने के लिए कमरा खोजना और ऐसी स्थिति में जब जेब में पैसे न हों क्योंकि दो महीने का एडवांस किराया मकान मालिक को देने के लिए और एक महीने का किराया दलाल को।
मेरे सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि बटुआ कटने के कारण मेरे सब पहचान के कागजात गायब हो गए थे।गैस कनेक्शन ट्रांसफर कराना था उसके लिए पहचान पत्र और निवास प्रमाण पत्र की आवश्यकता थी।मेरे को 16 अगस्त से स्कूल ज्वाइन करना था तो मैं किसी तरह पैसे की व्यवस्था करके एक कमरे का सेट खोजा और 15 अगस्त की शाम को सामान के साथ उधर चला गया।16 अगस्त से नौकरी शुरू की और उसी दिन अन्ना हजारे का आंदोलन शुरू हुआ और 30 अगस्त को जाकर उन्होंने अनशन समाप्त किया।संयोग देखिए कि उसी दिन मेरे गैस सिलिंडर की व्यवस्था हुई।चुंकि मैं बाहर कुछ नहीं खाता हूँ तो रोज सुबह, दोपहर और रात को केला खाता और रात में रोज आधा किलो का 'मदर डेरी' का पैकेट ले आता और उसे फाड़ करके पैकेट से ही मुँह लगाकर कच्चा दूध पीता था।इन 15 दिनों में अन्न से कोई परिचय नहीं हुआ ।
(क्रमशः)

'बेबाकी'

शनिवार, 8 अगस्त 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे १६

समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब क्या करूँ? आर्थिक दबाव दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था।कब तक किसी के यहाँ पड़ा रहूँगा, और ऐसे कितने दिन चलेगा।भाई की जिम्मेदारी एक अलग चिंता का विषय थी मेरे लिए।सोचता था कि चलो अभी तक किसी को पता नहीं है घर में।घर से फोन आता था तो काट देता था या बहाना बना देता था कि स्कूल में हूँ।पिताजी हमेशा फोन करके बहन के लिए रिश्ते पता लगाने के लिए कहते थे, यह दबाव एक और चिंता का सबब था।सोचता था कि यदि नौकरी मिलने में जितनी देरी हुई है अभी तक यदि इतनी और हो गई तब तो मेरे लिए भी छिपा पाना नामुमकिन हो जाएगा।ऐसे में घर वालों पर क्या बीतेगी।यह सब सोचते दिमाग फटने सा हो जाता था।

खैर इन सब झंझावातों के बीच ही मैं अगले दिन फिर एक विद्यालय में साक्षात्कार के लिए पहुँचा। यह विद्यालय दक्षिणी दिल्ली में है।वहाँ पहुँच कर मैंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। मेरा साक्षात्कार लेने के बजाय मुझे सीधे एक क्लास में ले गए जो कि कक्षा 11वी थी लेकिन मुझे कक्षा 12वी की किताब दी गई पढ़ाने के लिए।मुझे थोड़ा सा अजीब जरूर लगा लेकिन मेरे लिए यह एक बहुत ही दिलचस्प अवसर था।मैंने सोचा यहीं पर मैं अपना सही मुल्यांकन कर सकता हूँ।पढ़ाने में मजा आ सकता है यदि बच्चे थोड़े से भी होशियार होंगे।मेरे बैग में उस दिन अचानक ही मुझे एक Hard disk दिख गई जो मैं हमेशा रखता था जिसमें बढ़िया संगीत, कला-फिल्में, वृतचित्र का एक नायाब खजाना है। मुझे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पढ़ाना था उसमें भी पहला पाठ 'शीत-युद्ध'।शीत युद्ध पर मेरे पास एक 24 कड़ियों का वृतचित्र था। मैंने तुरंत प्रोजेक्टर चालू कराया और वह चालू कर दिया।शुरू करने के पहले मैंने भूमिका बनाने के लिए पहले बोर्ड पर उनको शीत-युद्ध की भूमिका समझाई फिर वह वृतचित्र चालू कर दिया।जहाँ मुझे लगता कि यहाँ मुझे समझाना चाहिए वहाँ उसे रोककर मैं समझाता फिर आगे बढ़ जाता था।ऐसा करते हुए मैंने बहुत ही बढ़िया ढंग से पढ़ाया और खुद भी संतुष्ट हुआ।मुझे रोकने को कहा गया और मैं इस भाव से बाहर आया और अपने आप से मन ही मन कहा 'यार मजा आ गया पढ़ाकर'। फिर मुझसे कहा गया कि आपको एक और क्लास पढ़ानी पड़ेगी।मैंने पूछा कौन सी तो उन्होंने कहा 8वीं भी पढ़ाना पड़ेगा।

सही मायनों में कहूँ तो मेरे हाथ-पाँव फूलने लगे कारण यह कि 8वीं मेरा स्तर नहीं है।उतना नीचे उतरना बहुत मुश्किल होता है मुझे।मैंने उन्हें कहा 'मैम मैंने पिछले 6-7 सालों में कभी 11वी के नीचे नहीं पढ़ाया है मेरे लिए 9वी और 10वी भी पढ़ाना मुश्किल होता है और आप आठवीं भी कह रही हैं।नौवीं और दसवीं मैं केवल इसलिए पढ़ाने के लिए तैयार हुआ हूँ क्योंकि यह स्कूल छोटा है और ग्यारहवी और बारहवीं में उतनी संख्या नहीं है।' मैंने साफ मना कर दिया कि मैं नौवीं के नीचे नहीं पढ़ाऊँगा।उनको देखकर यह समझ में आ रहा था कि जैसे वह कह रहे हों कि 'इसको देखो नौकरी का अभी पता नहीं और शर्तें रख रहा है।' फिर उन्होंने कहा ' अनुराग पिछली टीचर छठी भी पढ़ाती थी और यदि आपकी बात हम मानते हैं तो हमें पूरे स्कूल का टाइम टेबल बदलना पड़ेगा और बीच सत्र में यह करना बाकी टीचरों के लिए मुश्किल खड़ा कर देगा।' मेरे को उनकी बात समझ में थोड़ा बहुत समझ आई। मुझे एक इतिहास की किताब दी गई और मैंने पंद्रह मिनट का समय माँगा।

मुझे वहाँ से आठवीं कक्षा में ले जाया गया जहाँ मैंने 20-25 मिनट पढ़ाया।मुझे उतनी दिक्कत नहीं हुई पढ़ाने में क्योंकि वही सब चीजें मैं बारहवीं में पढ़ाता हूँ।मैंने पढ़ाया भी लेकिन मुझे नहीं मालूम कि बच्चों को समझ में आया कि नहीं।वहाँ से जब मैं निकल के बाहर आया तो मुझे रिशेप्शन पर ले जाया गया और एक फार्म दिया गया भरने को।इस फार्म में कुछ अपने बारे में जानकारी देनी थी, वेतन, शिक्षा, अनुभव इत्यादि।मैंने जब उनको वह भरकर दिया तो फिर मुझे प्रिंसिपल के कक्ष में साक्षात्कार के लिए बुलाया गया।साक्षात्कार क्या था इसे मात्र परिचय सत्र कहा जा सकता है जो कि मात्र औपचारिकता थी।
उसके बाद मुझे कुछ देर बैठने के लिए कहा गया।कुछ देर के बाद मुझे सूचित किया गया कि अब आपको डायरेक्टर से मिलना है।मुझे डायरेक्टर के कक्ष में ले जाया गया।मैं डायरेक्टर के कक्ष में प्रवेश किया और उनका अभिवादन किया जिसके जवाब में उन्होंने हाथ आगे बढ़ा कर हाथ मिलाया और बैठने को कहा।फिर एक औपचारिक सा परिचय हुआ दोनों लोगों के बीच में।उन्होंने कहा 'मिस्टर अनुराग  आई केम टू नो दैट यू हैव ट्रेमेन्डस नोलेज नॉट ऑफ़  योर  सब्जेक्ट  ओनली बट अदर्स आल्सो.द फीडबैक व्हिच आई गॉट रेगार्डिंग योर क्लास टीचिंग एंड मैनेजमेंट इज़  रियली  फैंटास्टिक.थ्रू योर CV आई केम टू नो दैट यू बिलोंग टू वाराणसी एंड आई मस्ट टेल यू दैट  माय सिस्टर वर्कड देयर फॉर मेनी इयर्स.आई डोंट हैव एनी डाउट अबाउट योर नोलेज, स्किल्स  एंड करैक्टर बिकॉज़ द इन्फ्लुएंस ऑफ़ दैट सिटी इजिली गेट रेफ्लेक्टेड ऑन द पर्सनालिटी  ऑफ़ इट्स पीपल. नाउ यू टेल मी अबाउट द सैलरी व्हिच यू एक्सपेक्ट फ्रॉम अस'
मैंने कहा 'सर दैट आई हैव आलरेडी मेन्शन्ड  इन द फॉर्म व्हिच आई फिल्ड .'
उनके हाथ में मेरा फार्म था जिसे उन्होंने पलट कर देखा और देखने बाद कहा -'मिस्टर अनुराग यू हैव  मेन्शन्ड दैट यू एक्सपेक्ट 6th पे कमीशन सैलरी विद अटलीस्ट 3 इंक्रिमेंट्स.'

मैंने तुरंत कहा - 'सर सीइंग माय एक्सपीरियंस एंड क्वालिफिकेशन्स आई थिंक आई हैव नॉट डेमांडेड एनीथिंग मोर एंड आई एक्सपेक्ट दैट मच .'
उसके बाद उन्होंने जो कहा उसको सुनने के बाद मेरे हाथ पैर काँपने लगे और दिमाग और कान जैसे सुन्न हो गया हो।उन्होंने कहा- 'मिस्टर  अनुराग आई थिंक दैट व्हाटेवर यू डेमांडेड यू डिज़र्व दैट. यू टेक  इट.'  मुझे तो अपने कान पर विश्वास ही नहीं हो रहा था मैंने फिर से उन्हें दुहराने को कहा तो उन्होंने फिर से कहा -' 'मिस्टर अनुराग आई थिंक दैट व्हाटेवर यू डेमांडेड यू डिज़र्व दैट.यू टेक इट.'
मेरे आँखों में आँसू आ गए और मैंने हाथ बढ़ाकर हाथ मिलाकर उनको धन्यवाद कहा। मैं फिर बाहर आ गया तो कुछ ही मिनट के बाद मुझे 'ऑफर लेटर' पकड़ाया गया जिसमें यह जिक्र किया गया था कि मुझे कब से नौकरी में उपस्थित होना है और मेरा वेतन कितना होगा।मैंने गुणा-भाग किया तो मेरा वेतन मेरे पिछले वेतन से करीब 5000 ज्यादा था।स्कूल से बाहर आया तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाया, मैं फफक कर रो पड़ा और कुछ देर रोने के बाद मैंने सबसे पहले माँ को फोन लगाया और यह शुभ समाचार सुनाया तो माँ भी मेरी फफक कर फोन पर रोने लगीं।करीब 15 मिनट बात हुई।फिर मैंने कृष्णेश और कौशिक साहब को फोन कर सूचित किया तो वह बहुत खुश हुए।
मैं वहाँ से निकल गया वापस कृष्णेश के कमरे पर लेकिन परीक्षा नौकरी पा जाने पर ही नहीं खत्म हुई।

(क्रमशः)

'बेबाकी'

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे १५


इतना कहने के पश्चात मैंने गुस्से में धन्यवाद कहा और तुरंत कमरे से बाहर आ गया। बाहर निकलने के बाद तुरंत एक दुकान और फिर पानी और पान।मुझे निराशा जरूर थी लेकिन कोई पछतावा नहीं था।
अब आगे.....

मैं वहाँ से सीधे कृष्णेश के यहाँ आया।मन बहुत ही खिन्न और उदास था।स्थितियाँ देखकर रोने का मन करता था लेकिन रो भी नहीं पाता था।कृष्णेश ने पूछा कि 'अनुराग भाई का भयल?' मैंने उनको पूरी घटना बताई तो वह बोले कि 'अनुराग भईया मन मत छोटा कीजिए।आप सफल जरूर होंगे, बस समय की बात है।' मुझे उनकी बात कुछ नहीं समझ में आ रही थी।खैर बातचीत करते हुए वह दिन बीता।मुझे आगे क्या करना है कुछ समझ में नहीं आ रहा था।बड़ी ऊथल पुतल में कट रही थी जिंदगी।मेरे मन में एक और खयाल आने लगा कि क्यों न दिल्ली के बाहर देखा जाए।मेरे पास दिल्ली से बाहर के एक स्कूल से साक्षात्कार के लिए बुलावा भी था।मुझे लगने लगा कि दिल्ली में मेरा दाना-पानी इतना ही लिखा था।मैंने मन बना लिया कि कल सुबह स्कूल को फोन लगाऊँगा और सूचित करूँगा कि मैं दोपहर तक पहुँच जाऊँगा।
यह स्कूल हिसार, हरयाणा में था।जिंदल का लड़कियों का स्कूल है और आवासीय है।मैंने सोचा कि आवासीय ही अब स्थितियों को देखकर ठीक रहेगा।अगले दिन सुबह उठा और स्कूल को फोन लगाया कि मैं पहुँच रहा हूँ 12 बजे तक।यह स्कूल मेरे को पिछले 2 वर्ष से पता नहीं कितने बार फोन कर चुका था लेकिन मैं साफ मना कर देता था क्योंकि मैं दिल्ली अभी नहीं छोड़ना चाहता था। खैर सुबह उठा तैयार होकर बस पकड़ कर 12:30 के आसपास वहाँ पहुँच गया।स्कूल मेन हाइवे पर लेकिन एक बड़ी विचित्र बात यह थी कि अगल बगल कुछ नहीं था।किसी चीज की यदि आवश्यकता पड़ जाए तो 6 किमी आगे जाइए या 5 किमी पीछे।
मैंने वहाँ पहुँच कर रिपोर्ट कि अपनी उपस्थिति और मेरे को कुछ देर इंतजार करने के लिए कहा गया।मैं बैठकर अखबार पढ़ने लगा कि कुछ देर के बाद एक बंधुवर आए और मेरे को एक केबिन में ले जाकर मेरे को एक प्रश्नपत्र पकड़ा दिया और कहा आपको लिखित परीक्षा देनी पड़ेगी।हमने भी मन में सोचा कि जब जिंदगी ही ने पिछले पाँच महीने में इतनी कड़ी-कड़ी परीक्षा ले ली है तो लिखित परीक्षा की क्या बिसात है उन सबके आगे।दरअसल उन्होंने पिछले साल का बारहवीं का बोर्ड पेपर दे दिया था।
सही मायनों में कहूँ तो वाकई में यह हकीकत है कि हम शिक्षक लोग पता नहीं कितनी उत्तर-पुस्तिकाएँ साल भर में जाँचते हैं इसकी कोई गिनती नहीं है।लेकिन यदि हमलोगों को ही कह दिया जाए कि 3 घंटे बैठकर एक प्रश्नपत्र हल कर दीजिए तो धैर्य जवाब देने लगता है।हमलोगों से बोलवा लीजिए चाहे जितने घंटे, बांच देंगे घंटो।भाई नौकरी का मामला था तो यह पापड़ बेलना ही था।खैर मैंने शुरू किया लिखना।डेढ़ घंटे के बाद मेरा धैर्य जवाब देने लगा।मुझसे लिखा नहीं जा रहा था।इतने देर में वह बंधु आ गए और पूछा कि 'सर पूरा हो गया'।मैंने उनसे कहा कि 'सर आधा घंटा और लगेगा।' तब उन्होंने कहा 'सर बस इतना रहने दीजिए हम इतना ही जाँच लेंगे।' मैंने सोचा चलो बढ़िया है जान बची।फिर उन्होंने कहा 'सर आप मेरे साथ चलकर खाना खा लीजिए, आपको भूख भी लग गई होगी'
मैं उनके साथ स्कूल के भोजनालय चला गया और खाना खाने लगा।खाने के दौरान मैंने उनसे कई जानकारियाँ ली जैसे कितना स्टाफ है, कितने पुरुष हैं और कितनी महिलाएँ हैं स्टाफ में, कितने विवाहित हैं और कितने अविवाहित हैं।स्कूल की तरफ से क्या-क्या सुविधा है स्टाफ के लिए।बाहर आने-जाने का क्या नियम हैं और जाने के लिए क्या सुविधा स्कूल देता है, इत्यादि।उनके साथ खाना खत्म करने के पश्चात हम लोग उसी जगह आ गए।अब साक्षात्कार देने के लिए मुझे एक कक्ष में बुलाया गया।स्कूल की प्रिंसिपल, डायरेक्टर और दो लोग बैठे हुए थे।मैंने अभिवादन के पश्चात अपनी जगह ले ली।मुझसे प्रश्न पूछा जाने लगा जिसका मैंने सफलतापूर्वक जवाब दिया।फिर वेतनमान को लेकर बातचीत शुरू हुई जिसमें थोड़ी लम्बी बहस हुई लेकिन कमोबेश बात बन गई।
उन्होंने कहा कि "मिस्टर अनुराग योर परफार्मेंश हैज बीन मारवेलस बट ऐज फाॅर ऐज योर सैलरी इज कन्सर्नड वी विल डिसकस अमंग अस ऐंड वी विल गेट बैक टू यू इन कपल ऑफ डेज।बट बी श्योर दैट यू हैव बीन नियरली अपाइंटेड।" 
मैंने सबको धन्यवाद कहा और बाहर निकल आया।बाहर तक वह सज्जन मुझे छोड़ने आए और बताया कि सर आपको बस स्कूल गेट से ही मिल जाएगी।मैं बस का इंतजार करने लगा।बसें आ तो रहीं थी लेकिन हाथ देने पर रुक नहीं रहीं थीं ।मैं एक घंटे तक खड़ा रहा और हाथ देता रहा।अंत में परेशान होकर एक ऑटो में बैठकर अगले स्टाॅप तक गया।वहाँ सभी बसें रुक रहीं थीं।एक बस में बैठा और बैठने के बाद कई पहलुओं पर विचार करने लगा।
पहला प्रश्न तो यह था कि मैं ठहरा अविवाहित, क्या लड़कियों के स्कूल में नौकरी करना ठीक रहेगा।
दूसरा प्रश्न कि चलो यदि कर भी लिया और मैं अपने को नियंत्रित भी कर लिया लेकिन यदि कल की तारीख में यदि मेरा मैनेजमेंट से कोई पंगा हुआ तो मैनेजमेंट तो मेरे ऊपर चरित्रहीन होने का आरोप लगाकर मेरी जिंदगी के साथ खेल सकता है।
तीसरा प्रश्न यह कि मैं अकेला अविवाहित बाकी सब विवाहित और स्कूल खत्म होने के बाद सब तो अपने घर में घुस जाएंगे मैं इस तिहाड़ में तो पागल हो जाऊँगा।
आने जाने का साधन कुछ नहीं, अगल-बगल कोई बाजार 5 किमी के पहले नहीं।इसी तरह के कई छोटे-छोटे प्रश्न उठे। मैं दिल्ली पहुँच गया और फिर से इन प्रश्नों पर विचार करने लगा और इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि सब तो ठीक है लेकिन पहले और दूसरे प्रश्न का जवाब नहीं खोज पाया।मैंने सोचा इज्जत और सम्मान बड़ी कोई चीज नहीं है और इसके साथ समझौता नहीं किया जा सकता है।अतः मैंने निर्णय किया कि नहीं यह स्कूल मैं नहीं ज्वाईन कर सकता।दो दिन बाद एक और जगह जाना था साक्षात्कार के लिए।
अगले ही दिन करीब 11 बजे हिसार से फोन आ गया कि उन्होंने वेतन को लेकर मेरी शर्त मान ली है।पर अफसोस कि मुझे नहीं कहना पड़ा उनको जिसके लिए मैंने उनसे माफी भी मांगी।मैंने दूरी का हवाला देते हुए नहीं कह दिया।
जब बात हो रही थी तो कृष्णेश भी वहीं थे और वह तो चौंक गए जब मैंने नहीं कहा।फोन काटने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने आखिर मना क्यों कर दिया।मैंने उनको सब कारण बताए तो उन्होंने कहा"अनुराग भईया ऐसी स्थिति में भी आप इतने दूर की सोचते हैं।हम लोग तो सामान्य स्थिति में भी इतना न सोच पाएं वह भी इतने बिंदुओं पर।आप धन्य हैं।"
उस दिन का समय मैंने ऐसे ही काटा।अब अगले दिन अगली परीक्षा की तैयारी थी।
(क्रमशः)

'बेबाकी'