गुरुवार, 24 सितंबर 2015

न्यूटन के गति के सिद्धांत/नियम


हम पढ़ने में बहुत गदाई थे मने गदहा थे अऊर सब मिला स्कूल में बकलोलवा-बकलोलवा कह कर मुँह बिराते थे। सबसे बड़का बात ई था कि बिज्ञान हमारे खोपड़िया में कब्बो नहीं घुसता था अऊर उसमें भी भौतिक बिज्ञान तो मर्चा नियर भभाता था। रसायन अऊर जीव तो रट-रूट कर बार्डर तक कांख के पहुँचो जाते थे लेकिन भौतिकिया तो लगता था कि ससुरा कउनो दूसरे ग्रह से आया है।बड़ी न पिटाए हैं न भौतिक वाले माड़साब से। अरे कुछहू जवाब दो तो लगता था कि अपने मेहरारू वाला गोस्सा हम ही पर निकाल रहे हैं।मास्टर कौन बनाया उनको ,ऊ तो धोबी होते तो बहुते बढ़िया कपड़ा धोते। अब बताइए कि भरी कलास में धोते थे अऊर हम लजा जाते थे कि लईकी लोग के सम्हने उतार रहे हैं।
अइसहीं एक बेरी हमसे पूछ दिए 'अनुरगवा ठड़ा हो अऊर न्यूटन का गति का तीनों सिद्धांत बताओ अऊर व्याख्या करो'।
हम तो तुरंते सोचे कि 'बेटा आज तो पुजाए' अऊर मने-मन सोचे कि ' ससुरा न्यूटनवा मर के स्थिर हो गया अऊर साला हम लोगों की गति गड़बड़ कर गया। ऊहे ससुर तेजूखाम थे। अरे सेब गिरा तो गिरा,अइसा तो था नहीं कि उसके पहिले गिरबे नहीं किया अऊर बाद में नहीं गिरता।अरे गिरा तो गिरने देते उसमें ज्ञान बघारने का, का जरूरत था।कीड़ा काट रहा था , कुलबुला रहा था।'
एतना सोच ही रहे थे कि माड़साब गब्बर टाइप गुर्राए अऊर हम सकपका गए। कुर्सी पर बइठ के एक ठो मोटहर डंडा मेज पर बजा रहे थे। देखकर तो पसीना आ गया अऊर जऊनो आता था भुलाने लगा। एतना में एक ठो बहुत सुघ्घर लइकी बगल में बइठी थी धीरे से एक ठो पन्ना पर एक,दो,तीन करके तीनों सिद्धांत मेरे तरफ बढ़ा दी। गुरुआ देख नहीं पाया अऊर थोड़ा सा परान हिया में आया मेरे। हिम्मत करके बोला " गुरु जी सुनाएं" तो गुरु जी मूड़ी हिला दिए। हम बोले 'गुरूजी प्रथम नियम: प्रत्येक पिंड तब तक अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है"। गुरुजी मूड़ी हिलाकर बोले कि ठीक है अऊर बोले कि व्याख्या करो। अब कऊनो धीरे से उसका भी चुटका दिया होता तो काम बन जाता। अब का करें समझे में नहीं आ रहा था। एतना में गुरूआ कुर्सी से उठकर आ गया मोटका सोटा लेके। कसम से पसीना-पसीना हो गए हम।गुरु बोले फिर से बताओ अऊर व्याख्या करो।
हम डेराते-डेराते बोले' प्रथम नियम: प्रत्येक पिंड तब तक अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है। व्याख्या इ है कि जइसे पपुआ जब गायब रहता है या चुपाया रहता है अऊर जब तक बहरे से कोई हुरपेंचता नहीं है तब तक न तो ऊ बहरे आता है अऊर न तो मुँहवे खोलता है। अऊर जब बोलने लगता है तो बोलते रहता है जब तक कि बहरी से कोई इसारा करके या हुरपेंचके चुपवाता नहीं है अऊर ओकरे बाद कुछ दिन छुट्टी पर गायब हो जाता है'
अबही हम बोलकर सांसो नहीं लिए थे कि गुरूआ पपुआ नियर जोश में आ गया जइसे कि हम जवाब नहीं खोद दिए हों अऊर ले सोटा-ले सोटा धर दिया हमको।चोट से जादा तो हम लजा गए। गुरुआ का पारा चढ़ा था अऊर लग रहा था जइसे मेहरारू से रात में भिड़ गया हो अऊर खाना न मिला हो अऊर भुखले सो गया हो। गुरुआ गुर्राया अऊर बोला कि दूसरा नियम बताओ अऊर व्याख्या करो। अरे हमार तो हालत पतली हो गई कि पहिलही नियम में एतना प्यार बरसाया तो तीसरे आते तक तो ऊबाल मारके ओवरफ्लो करने लगेगा।
हमहू काँपते-काँपते बोले ' द्वितीय नियम: किसी भी पिंड की संवेग परिवर्तन की दर लगाये गये बल के समानुपाती होती है और उसकी (संवेग परिवर्तन की) दिशा वही होती है जो बल की होती है।
अऊर इसका व्याख्या इ है कि पपुआ को हुरपेंचने वाला जो बल उसी अनुपात में होती है जब हुरपेंचने वालों को लगने लगने लगता है कि अब कुछ किया जाए नहीं तो साँस लेना दुसुआर हो जाएगा अऊर उनकी साँस तो पपुआ में चाभी भरने पर है क्योंकि पपुआ अपने से तो चल नहीं सकता है।इसलिए समय समय पर वेग में परिवर्तन होता रहता है।
'अरे माई रे',हमारे मुँहे से निकला।गुरुआ एतना जोर का सोटा धर दिया जइसे मेहरारू रतिया में भुखले रख के घरवो से निकाल दी थी। बिना साँस लिए गुरुआ धरे जा रहा था अऊर कलास का लईका-लईकी लोग मुसकिया रहा था अऊर ठहाका मार रहा था जइसे संसद में पपुआ जब बोलता है तो उसको हुरपेंचने वाले उसके पीछे बईठा रहता है अऊर मुसकियाता है अऊर विपक्ष में बइठा लोग ठहाका लगाता है।
गुरुआ भी सोच लिया था कि मेहरारु का महीना भर का गुस्सा आजै निकाल लेगा फिर आखिरी सोटा देकर कहा कि 'तीसरा नियम बताओ अऊर व्याख्या करो।' हमहू डेराते-काँपते बोले ' तृतीय नियम: प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।' अऊर व्याख्या इ है कि जेतना बल लगाया जाता है पपुआ पर ओतने तेजी से ऊ अपना कुर्ता का बांही केहुनी पर चढ़ाता अऊर ओतने तेजी से भोंकना शुरू करता है। अऊर दूसर व्याख्या इ है कि जेतना गुरुआइन आपको भुखले रखती हैं अऊर जेतना रात घरे से बहरी कर देती हैं ओतने कठिन सवाल आप दागकर ओतने तबीयत से हमको धोते हैं'
'अरे मईया रे मईया,लेहलस मुँहफुकऊना जान हमार बचा ला भोले बाबा विश्वनाथ हमके' कहकर हम चिल्ला रहे थे अऊर गुरुआ हमको भर कलास में नचा-नचा कर धो रहा था।
ओकरे बाद तो कसम खा लिए कि भरसाईं में जाए बिज्ञान हम नहीं पढ़ेंगे आगे। हमको न्यूटन अऊर आइंसटीन नहीं बनना है।बिज्ञान इंटर के बाद छोड़ के इतिहास लेकर गड़ा मुर्दा उखाड़े अऊर आज ले उखाड़ रहे हैं ।
'बेबाकी'