शनिवार, 14 नवंबर 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे २०

छः बजे तक सबकुछ समाप्त हो गया था और जीवन का अंतिम सत्य सामने था।जीवन के अंतिम समय आपको विदा करने कितने लोग आएं हैं उससे आपकी हैसियत का अनुमान लगता है और वही आपके कमाई की वास्तविक पूँजी है।
(अब आगे)
हम बनारस वाले दोस्त घाट से बाहर आकर एक जगह इकट्ठा हुए।मुझे तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है।मुझे आज भी लगता है जैसे उस समय कोई मुझे धक्का देकर चला रहा है या कहिए कि मुझे रिमोट से कोई चला रहा था ।मैं वहाँ से आनंद भईया के साथ उनके घर चला आया।नहाने के पश्चात मेरा मन बहुत ही बेचैन हो गया तो मैं कपड़े बदल कर बाहर आ गया।कुछ देर ऐसे ही सड़क पर टहलता रहा।फिर पता नहीं क्या दिमाग में आया रिक्शा पकड़ कर स्कूल चल दिया।वहाँ पहुँचा तो देखा कि भईया की एक फोटो रिशेप्शन पर एक मेज पर लगाई गई थी और माला चढ़ाई गई थी और बगल के मेज पर एक थाली में ढेर सारी गुलाब की पंखुड़ियाँ रखी हुई थी।मैंने पुष्प अर्पित किया और सीधे प्रिंसिपल के चैंबर में गया।मुझे देखते ही प्रिंसिपल उठ खड़ी हुईं और उनके आँखो से आँसू बहने लगे।मुझे बैठने कहने के पश्चात चर्चा होने लगी और उन्होंने कहा 'Anurag when Sharad informed me instantly your face appeared in front of my face and immediately I asked Sharad that have you informed Anurag. He told me that yes he informed you.'
फिर उन्होंने कहा कि Anurag go and meet other teachers.मैं एक एक फ्लोर होता हुआ तीसरे फ्लोर पर गया जिस फ्लोर पर वह कक्षाएँ थी जिनको हमने और भईया ने पढ़ाया था।सब टीचर अपनी अपनी कक्षाओं में थे।जैसे ही मैं गैलरी में पहुँचा और एक कक्षा में प्रवेश किया तो बच्चे खड़े हो गए और कुछ बच्चे अपनी सीट पर से उठकर आकर लिपटकर रोने लगे।फिर सामने वाली कक्षा के टीचर ने देखा तो वह आ गए और उनके पीछे-पीछे बच्चे भी आ गए और मुझे घेर कर रोने लगे।मुझे बहुत उलझन होने लगी, मैं तुरंत कक्षा से निकल आया और जैसे गैलरी में आगे बढ़ा सभी क्लास के बच्चे एक-एक करके निकल कर आकर घेर कर रोने लगे।मैं बहुत परेशान हो गया और मुझे लगा कि मुझे चलना चाहिए नहीं तो स्कूल का वातावरण बोझिल हो जाएगा।मैं तुरंत तेजी से भागा और निकल कर बाहर आ गया।दो घंटे रहने के बाद मैं चला आया।तब तक पिताजी का काॅल आया कि कैंट रोडवेज आकर मिलो क्योंकि घर से खबर हो गई थी कि मैं बनारस में हूँ।पापा गाँव से आ रहे थे।मैं मिलने गया और उनको बताया तो वह भी सदमें में आ गए।मैं बनारस फिर 25 तारीख को भी रहा और 25 की शाम को शिवगंगा पकड़ कर 26 जनवरी को सुबह दिल्ली पहुँच गया।विद्यालय की छुट्टी थी तो मैं दिन भर घर में ही रहा।
27 को सुबह मैं विद्यालय पहुँचा तो देखा तो फिजा पूरी तरह बदल चुकी थी।मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मेरी अनुपस्थिति में कुछ विभाग में हुआ क्या? मुझसे कोई बात नहीं कर रहा था।मुझे भी किसी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी, क्योंकि मैं अकेला पुरुष था और मुझे थोड़ा डर भी लगता है उनसे बात करने में और झिझक भी होती है। मैं ऑफिस में गया और एक छुट्टी का फार्म लेकर भर कर जब विभागाध्यक्ष के पास गया उस पर हस्ताक्षर के लिए तो उन्होंने बिना कुछ बात किए उस पर हस्ताक्षर करके बिना आँख ऊपर किए एक तरफ टरका दिया।
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।3-4 दिन के पश्चात मुझे स्कूल की काऊंसलर ने बुलाया और कहा 'Anurag Sir without permission and information you went on leave for couple of days. ऐसे किसी की भी डेथ पर आप चले जाएंगे।'
मैंने उनसे कहा ' मैडम किसी की डेथ का मामला नहीं है जो गया है वह मेरे भाई थे। Madam though he was colleague but for me he was elder brother. Our relationship was of that type that kids of my school use to consider us real brother.'
मैंने उन्हें समझाया और हालात बताया और कहा 'Ma'am I think whatever was the condition but I think as a human being I think I need to be sensitive enough and address such situations.'
अब तक मैं बहुत संयमित होकर बात कर रहा था लेकिन इसके बाद उन्होंने जो कहा उससे तो मेरा पारा चढ़ गया और मुझे अपने गुस्से को नियंत्रित करने के लिए मुझे मुट्ठी भींचना पड़ा।उन्होंने कहा ' Mr Anurag I giving you my example. Sir I came to school on that day also when my grandfather passed away. I am totally committed towards my profession'. इतने में मैंने उन्हें बीच में टोका और कहा "Ma'am he was your grabfather and where I went that person was my elder brother, I wouldn't have done if I would have been in your place and moreover Ma'am if you are insensitive that is not my fault. Remember Maam नौकरी परिवार के लिए है, परिवार नौकरी के लिए नहीं।'मेरी आवाज तेज होती जा रही थी और चेहरा लाल होता जा रहा था।मैंने अपनी बात जारी करते हुए कहा 'Maam now I have serious doubt over the type of counseling you provide to these kids and their families and parents. I find you a major reason behind the indiscipline in the school. Your counseling can never unite a family rather wherever you will be involved a united family will divide.'
मैं एक सांस में कहता गया और जहाँ भी उन्होंने बीच में टोकने की कोशिश की मुझे मैंने तुरंत कहा कि 'let me finish'. इतना कहने के बाद उनके पास कुछ कहने के लिए रहा ही नहीं।मैंने सोचा कि इस विद्यालय में नहीं रहना है जहाँ का मैनेजमेंट संवेदनहीनता की पराकाष्ठा पर है और खास बात कि यह विद्यालय दिल्ली/एनसीआर का नामी विद्यालय है जहाँ पढ़ाने में टीचर को गर्व का अनुभव होता है लोगों के लिए स्टेटस का प्रश्न होता है।मैं वहाँ से निकला और सीधे रिसोर्स सेंटर में जाकर एक त्यागपत्र टाइप करके अपने मेल में सुरक्षित किया और प्रिंट लेकर पर्स में रख लिया कि यदि कुछ आगे हुआ और एक शब्द कोई कहा तो वाक्य पूरा करने के पहले त्यागपत्र रख दूँगा।फरवरी का महीना चल रहा था और वार्षिक परीक्षा शुरू होने वाली थी।मेरी भी कुछ नैतिक जिम्मेदारी बनती है बच्चों के प्रति और यह मैंने भईया से ही सीखा था।मेरे पास कक्षा 12 का एक विद्यार्थी था उसके प्रति भी मेरी जिम्मेदारी थी।बच्चा बहुत मेधावी था और बहुत संस्कारी था और नाम भी अनुराग था।उसका बोर्ड का मेरा पर्चा 7 मार्च को था।जिस दिन अनुराग का इतिहास का पर्चा खत्म हुआ मैंने उसी दिन अपना त्यागपत्र बड़ी प्रेम के साथ दे दिया।मुझे लगा जैसे मैंने अपने ऊपर से बहुत बड़ा भार उतार दिया हो।चुंकि एक महीने पहले नोटिस दिया था तो एक महीना जाना ही था लेकिन एक एक दिन मेरे लिए जंग लड़ने के समान था।फिर मुझे एक दिन बुलाया गया और कहा गया कि अनुराग सर आपका त्यागपत्र हम 1 अप्रैल से मानते हुए चल रहे हैं क्योंकि आपको बोर्ड की उत्तरपुस्तिकाओं के मुल्यांकन के लिए जाना पड़ेगा, बोर्ड से पत्र आया है।मैंने भी हाँ कह दिया क्योंकि अभी मुझे अपने वाले त्यागपत्र के अनुसार 15 दिन और जाना था और यदि मैं बोर्ड के पर्चों के मुल्यांकन के लिए गया तो यहाँ आने से बच जाऊँगा।मैं अगले दिन से अपने कार्य पर।कार्य पूरा होने पर एक दिन विद्यालय गया और सब कुछ सौंप कर निवृत हो गया।घर में किसी को नहीं बताया था।अब पूरा दिन खाली कमरे पर बैठा रहता था और इतने में ही कुछ दिन के बाद पिताजी छोटी बहन की शादी के सिलसिले में आ गए और 20 दिन करीब रह गए।इसके बाद क्या-क्या हुआ मैंने पहले के भागों में लिख ही दिया है।
भईया आप मेरे मन-मस्तिष्क में हमेशा रहे हैं और आज शारीरिक रूप से साथ रहते तो आपको फोन करके या आपके पास डाइरेक्ट पहुँच कर यही कहता -
'Many-many happy returns of the day Bhaiya. Happy Birthday Bhaiya'
जन्मदिन मुबारक हो भईया......... 
चिठ्ठी न कोई संदेश,.............

'बेबाकी'

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