अब सवाल यह उठ रहा था कि 4000
रुपल्ली में चलेगा कैसे?
ये महीना तो काटा जा सकता है लेकिन अगले महीने से मकान का किराया,
भाई का पैसा,
अपने खर्च कैसे चलेंगे।कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।घर से आने के पश्चात भी मुझे इस बात का बहुत बारीकी से ध्यान रखना था कि घर में किसी भी तरह से किसी को कोई शक न हो।घर से यदि फोन भी आता था तो मैं एक-आक बार उठा लेता था और कहता था कि स्कूल में फोन का प्रयोग करना वर्जित है।जब भी फोन उठाता था तो बाथरूम में चला जाता था,
ताकि कहीं से बाहर
की कोई
आवाज फोन
तक न
पहुँचे। भीड़
वाले इलाके
में होता
था तो
उठाता ही
नहीं था।
मेरे एक
मित्र हैं
कृष्णेश शाही, मित्र कम
कहिए छोटे
भाई हैं।कृष्णेश
उसी विद्यालय
में हैं
जिसे मैंने
छोड़ा था
और रोहिणी
के सेक्टर
16 में रहते
हैं।करीब-करीब
रोज ही
फोन से
बात कर
लिया करते
थे।एक दिन
उन्होंने मुझे
अपने यहाँ
बुलाया शाम
को और
बोले 'क्या भईया
अकेले पड़े
हुए हैं
घर में, आइए मेरे
यहाँ कुछ
बढ़िया बनाया
खाया जाए"।उनके यहाँ
जाना मुझे
बहुत बढ़िया
लगता है, इतना अपनापन
मिलता है
उनके यहाँ।मैं
उनके यहाँ
गया, खाया-पिया।इतने
में ही
उन्होंने मेरे
सामने एक
ऐसा प्रस्ताव
रखा कि
मैं असमंजस
की स्थिति
में पड़
गया।
उन्होंने कहा
कि 'अनुराग भाई, देखिए जो
मैं कह
रहा हूँ
थोड़ा ध्यान
से सुनिएगा।आप
वहाँ हैं
अकेले, आपके साथ
लगातार जनवरी
के उस
दुर्घटना के
बाद से
ही एक
के बाद
एक घटना
हुए जा
रही है।आप
ऐसे में
बहुत परेशान
हैं और
नौकरी भी
नहीं है, खर्च भी
बहुत है।
आप ऐसा
कीजिए मेरे
यहाँ धीरे- धीरे
अपनी सामान
शिफ्ट कीजिए।बिलावजह
क्यों 6000-7000
रुपए दे
रहे हैं।मैं
अभी अकेले
रह रहा
हूँ और
एक हफ्ते
में मेरी
पत्नी भी
आ जाएगी
तो खाने
वाली भी
समस्या हल
हो जाएगी "
मैंने जबकि
उनसे कुछ
जिक्र नहीं
किया था।वो
अड़ गए
और उन्होंने
फरमान जारी
कर दिया।मैंने
बहुत समझाने
की कोशिश
की लेकिन
वो मानें
नहीं।अगले दिन
शाम को
मेरे कमरे
पर धमक
पड़े और
कपड़े समेट
कर अपने
यहाँ ले
गए।बड़ी शर्म
महसूस हो
रही थी।खैर
मैं पूरी
कोशिश करता
था कि
कृष्णेश का
एक भी
पैसा मेरे
ऊपर खर्च
न हो।साग-सब्जी
और बाकी
सामान मैं
खरीद कर
पहले ही
ले आ
देता था।एक
दिन इसके
लिए भी
गुस्सा गए
तो मुझे
थोड़ा सा
कड़क रुख
अपनाना पड़ा
तो कुछ
नहीं बोले।
एक बढ़िया
बात यह
हुई कि
एक विद्यालय
से साक्षात्कार
के लिए
मुझे एक
हफ्ते बाद
बुलाया गया।ये
विद्यालय दिल्ली
के उत्तम
नगर इलाके
में है
और इसकी
कई शाखाएँ
दिल्ली में
हैं यहाँ
तक कि
अब विश्वविद्यालय
भी खुल
गया है।यहाँ
पर Leave vacancy थी।जुलाई
के मध्य
महीने में
permanent
vacancy के
आसार कम
होते हैं
।मैंने सोचा
कि चलो
6-महीने गुजारे
जाएँ फिर
देखा जाएगा।इसी
बीच एक
और विद्यालय
में जगह
आयी तो
वहाँ भी
cv मेल कर
दिया और
उनका जवाब
आ गया।यह
विद्यालय दिल्ली
से सटे
अलवर जिले
में है
और बहुत
ही प्रतिष्ठित
आवासीय विद्यालय
है।थोड़ी आशा
बँधी मेरी।
इसी बीच
कई जगहों
से बुलावा
आया साक्षात्कार
के लिए
और सब
ही दिल्ली
और आस-पास
के नामी
विद्यालय लेकिन
सबसे पहले
उत्तम नगर
वाले विद्यालय
जाना था।मैंने
कृष्णेश को
बताया तो
तो वो
बहुत खुश
हुए।उनकी पत्नी
भी दो
दिन पहले
आ गईं।
इतने दिनों
में मेरे
पास बचे
खुचे पैसे
भी खत्म
हो गए।अब
मुझे 22 जुलाई को
तैयार होकर
निकलना था
साक्षात्कार के
लिए।
(शेष अगले अंक में..........)
'बेबाकी'
कृष्णेश जी जैसे लोग भी हैं
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा ।
सर अगर न होते ऐसे लोग तो शायद यह जो सिस्टम चल रहा है वह नहीं चलता.रावण की लंका बन जाता.
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