सोमवार, 13 जुलाई 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे १०

साक्षात्कार के बाद बड़ा मायूस होकर लौटकर मैं आकर एक पार्क में बैठ गया।भूख लगी थी, प्यास लगी थी।पार्क के बगल में एक पानी-पान की दुकान थी लेकिन साक्षात्कार के चार घंटे में मैं भूल गया था कि मेरा बटुआ कट चुका है।जैसे ही फिर से हाथ बटुआ निकालने के लिए हाथ पीछे पैंट की तरफ बढ़ाया वैसे फिर एहसास हुआ कि बटुआ कट गया है।एक अजीब से भाव से घिर गया।जनवरी की उस दुर्घटना के वक्त मैं इतने सदमें में था कि आँसू सूख गए थे, एक बूँद नहीं गिरा, इतने झंझावातों के दौरान भी नहीं।मैं सोचने लगा कि यार किस गुनाह की सजा ऊपर वाला मुझे एक के बाद एक दिए जा रहा है ।मैंने आज तक किसी का बुरा भी नहीं किया है आज तक यहाँ तक कि किसी का बुरा सोचा भी नहीं ही कामना की।क्यों मेरे जरिए ऊपर वाला मेरे माँ-बाप, भाई-बहनों को सजा देना चाह रहा है मैं सोचता जा रहा हूँ और आँखों से झर-झर के आँसू निकल रहे हैं जिसका मुझे खुद एहसास नहीं था।पाँच महीनों में पहली बार मेरी आँखों से आँसू बहे थे।कितने देर तक मैं सोचता रहा मुझे याद नहीं लेकिन जैसे ही होश में आया मैंने दुकान में काम कर रहे बालक को बुलाया और एक बोतल पानी खरीदकर पिया और मुख धोया।मेरे पास बस 50 रुपए बचे थे जिसमें से बच्चे को 30 रुपए दिए, 3 पान के और एक बोतल पानी के।पान खाया लेकिन वहाँ से उठकर कहीं जाने का मन नहीं कर रहा था।
इतने में मेरे एक खास मित्र मिस्टर अजय कौशिक का फोन आया।अजय जी मेरे साथ उसी स्कूल में थे जिसको मैंने छोड़ा था लेकिन मेरे छोड़ने के 6 महीने पहले वह भी छोड़ चुके थे उस विद्यालय को।उनके भी मतभेद हो गए थे उस विद्यालय में।कौशिक साहब बुलेट के शौकीन है और रोज स्कूल जाते समय रास्ते में मिल जाते थे और हम लोग साथ में स्कूल पहुँचते थे और लौटते वक्त रास्ते में छोड़ देते थे एक दिन हमलोग साथ में विद्यालय से निकले तो इतने सहज ढंग से उन्होंने कहा 'अनुराग सर आज विद्यालय में मेरा आखिरी दिन था, मैंने त्यागपत्र दे दिया और कल से आपको अकेले ये सफर तय करना पड़ेगा।उनके चेहरे पे चिंता की लकीरें साफ दिख रहीं थी जिसे पढ़ लिया मैंने।मैंने अजय जी से तुरंत कहा ' गुरु आप चिंता एकदम मत कीजिए।आपको जब तक दूसरी नौकरी नहीं मिलती है तब तक आप मेरे साथ रहिए।मैं 2-BHK में रह रहा हूँ अकेले के लिए काफी है।जो बनेगा रूखा-सूखा दोनों दोस्त मिलकर खा लेंगे लेकिन मेरी एक शर्त है कि बाहर मैं कभी नहीं खाऊँगा।अजय जी ना नुकुर करने लगे फिर मान गए।मेरे साथ करीब 3 महीने रहे।अजय जी रोज मुझे स्कूल छोड़ देते थे और लेने आते थे लेकिन अजय जी को रसोई का कोई काम नहीं आता था।बर्तन धुल देते थे जो मुझे बड़ा बुरा लगता था कि एक पंडित आदमी से कैसा काम करा रहा हूँ।

एक दिन मेरी छुट्टी थी और एक जरूरी काम गया तो मैंने कौशिक जी को कहा कि कौशिक जी मैं निकल रहा हूँ और शाम 8 बजे तक जाऊँगा।लेकिन काम कुछ ऐसा फँस गया कि मैंने कौशिक जी को फोन करके कहा कि कौशिक जी मैं कल सुबह आऊँगा और आप कुछ खाने की व्यवस्था कर लीजिएगा।दूसरे दिन जब सुबह पहुँच कर देखा तो रसोई पूरी साफ थी।मैंने कौशिक जी से पूछा कि 'कौशिक जी रात में क्या खाया?' कौशिक जी ने कहा कि 'अनुराग सर आपके साथ रहते मुझे भी अब बाहर खाने की इच्छा नहीं हुई।मैं एक थैली दूध लाया और पीकर सो गया', लेकिन एक बात उन्होंने कहा 'सर सब पढ़ाई-लिखाई और ये डिग्री चाहे जहाँ से ले लीजिए सब बेकार है इफ यू हैव टू स्लीप एमटी स्टमक इन नाईट . अब आपकी ये जिम्मेदारी है कि जब तक मैं यहाँ हूँ तब तक आप मुझे खाना बनाना सिखाएंगे और खाना मैं बनाऊँगा।'

मैंने कौशिक जी को पूरा खाना बनाना सिखाया और मेरे यहाँ ही रहते उनको नौकरी मिली और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा उन्होंने और आजकल विदेश में हैं किसी स्कूल में।

अजय जी लगातार मेरे संपर्क में थे और रोज की गतिविधि की जानकारी लेते थे और जैसे ही उनका फोन आया मैं फफक कर रो पड़ा और वो घबरा गए।मैंने उनको बताया कि मेरे साथ आज ये हुआ तो उन्होंने मेरे को समझाया और कहा कि मैं आपको कुछ पैसे भेज रहा हूँ।फिर मैंने उनको बताया कि कल मुझे गुडगाँव जाना है अलवर वाले आवासीय विद्यालय में साक्षात्कार के लिए तो कौशिक जी ने कहा कि वो वहाँ पढ़ा चुके हैं और आप निश्चिंत होकर जाइए आपका हो जाएगा।
मैं थोड़ा आश्वस्थ होकर मुँह लटका कर रोहिणी कृष्णेश के यहाँ लौट आया।अब कल बारी गुडगाँव की थी।

(शेष अगले अंक में )

'बेबाकी'

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