बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

दोगली देशी कुकुरिया अऊर विलाईती बोल-७


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'बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले' टाईप फीलिंग के साथ हम कलास से बाहर आकर स्टाफ रूम में जाकर दू बोतल पानी ढकार तो गए लेकिन ठंढक तनिको नहीं पहुँचा। ठंढक मिलता भी कइसे यहाँ तो भभा रहा था, जल रहा था पानी का कौन औकात है कि ठंडा करता। बड़ी न भेजा फ्राई हुआ था। घरे पहुँच कर चुप मारकर सुत गए। अगला दिन पहुँचे जब स्कूल में तो सोच लिए थे कि धनियवा, कलऊतिया अऊर मँगरुआ को इग्नोर मारेंगे। जब कक्षा ११ में जाने वाला घंटा बज गया तो हम एक बोतल पानी ढकारे अऊर कलास में पहुँच गए। पहुँचते ही पिछले कलास वाले टीचर का लिखा हुआ ब्लैकबोर्ड पर मेटारे अऊर 'सेकुलरिज्म' लिख दिए। लिख रहे तो गजबे दिलवा धुकधुकाने लगा। खैर करेजा को तनि मजबूत करके हम बोले " Yes today Bisheshar is going to read the next point of criticism. Everyone should get a chance to read. Yes Bisheshar you stand up and read the next point."

बिसेसरवा हाथ में किताब लेकर खड़ा हुआ अऊर पढ़ने लगा " There is the argument that Secularism encourages the politics of vote bank."

पढ़वाए बिसेसरवा से कि जल्दी से ब्याख्या करके आगे बढ़ जाएँगे लेकिन जइसे बिसेसरवा पढ़ कर बईठे रहा था वईसे किसी के खखारने का अवाज आया अऊर जईसे हम अँखिया उधर करके देखते कि कवन खखारा है तो वईसे दूसरा तरफ से खाँसने लगा कऊनो। पारा तो हमरा चढ़ गया अऊर मारे गुस्सा के हम लाल हो गए। देखे तो खखारी थी कलऊतिया अऊर हाथ मलते हुए खाँसी थी धनियवा। हमको बहुतै बढ़िया मोका मिल गया था कि बढ़िया से दुनहू का पूजा करने का कि दुन्नो डेरा कर कुछहू नहीं बोलेंगी फिर। हम गुस्सा में बोले " Yes Kalawati and Dhaniya. Both of you stand up. Both of you are suffering from any throat problem? If so better consult a good doctor and don't come to school till you are fully fit."

मँगरुआ तो चोर नियर मुसकिया रहा था तबले कलऊतिया मुसकियाते हुए बोली " अरे गुरूदेव हमको कुछहू नहीं हुआ। बिमार होवैं आपके अऊर हमरे दुश्मन। ऊ का है गुरूदेव बिसेसरा पढ़ा कि सेकुलरिज्म वोट बैंक कि पॉलिटिक्स को बढ़ावा देता है तो सुनते ही हमरे करेजा तर साँप लोटने लगा। ला-हौल-विलाकुवत बताइए कवन मुँहझंऊसा ऐसा आरोप लगाया आपके सेकुलरिज्म पर? गुरूदेव माफ करिएगा कि सुनते ही आग लग गया अऊर गला फँसने लगा।"

कलऊतिया एतना कहकर चुपाई अऊर बहुत गंदा तरह से मुसकियाने लगी तो हम सोचे कि बचवा लग रहा है कि कलऊतिया नेट प्रैक्टिस कर रही थी। अभी सोचबे कर रहे थे कि धनियवा बोली "गुरूदेव हम सबेरे गलती से कूलर का पानी ढकार लिए थे इसलिए खाँसी आ रहा था लेकिन जईसे ही बिसेसरा पढ़ा अऊर कलऊतिया खखाँरी तो हमरी खाँसी बढ़ गई त इसमें हमरा का दोष? ई सब तो प्रकृतिक है गुरूदेव जिसपर किसी का बस नहीं है।"

हमको तो बुझा गया कि ई अगवां रिलीज होने वाली फिलिम का ट्रेलर था लेकिन हमहू सोच लिए थे कि हम बैलेंस कर देंगे अपनी ब्याख्या में। हम आगे बोलकर दुनहू को बईठने को कह दिए। उसके बाद हम ब्याख्या करना शुरू किए " अनुभव जन्य दावे के तौर पर यह पूर्णतः असत्य भी नहीं है।मगर हमें इस मुद्दे को ठोस परिप्रेक्ष्य में देखना होगा। प्रथमतः लोकतंत्र में राजनेताओं के लिए वोट पाना जरूरी है। यह उनके काम का अंग है और लोकतांत्रिक राजनीति बड़ी हद तक ऐसी ही है। लोगों के किसी समूह के पीछे लगने या उनके वोट पाने की खातिर कोई नीति बनाने का वादा करने के लिए राजनेताओं को दोष देना उचित नहीं होगा? इसमें सिर्फ उन्हीं का हित है या विचाराधीन समूह का भी हित है। यदि किसी राजनेता को वोट देने वाला समूह उसके द्वारा बनवाई नीति से लाभांवित नहीं हुआ, तो बेशक वह राजनेता दोषी होगा। यदि अल्पसंख्यकों का वोट चाहने वाले धर्मनिर्पेक्ष राजनेता उनकी इच्छा पूरी करने में समर्थ होते हैं, तो यह उस धर्मनिर्पेक्ष परियोजना की सफलता होगी, जो आखिरकार अल्पसंख्यकों के हितों की भी हिफाजत करती है।

इतने में घंटा बज गया लेकिन हम बच्चों को बोले कि बैठे रहें और मेरी ब्याख्या पूरी होने दें और मैंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला "लेकिन, अगर कोई व्यक्ति विचाराधीन समूह का कल्याण अन्य समूहों के कल्याण और अधिकारों की कीमत पर करना चाहे,तब क्या होगा? यदि ये धर्मनिर्पेक्ष राजनेता बहुसंख्यकों के हितों को नुकसान पहुँचाए,तब क्या होगा? तब एक नया अन्याय पैदा होगा। लेकिन क्या आप ऐसे उदाहरणों के बारे में सोच सकते हैं? एक-दो नहीं, बल्कि ऐसे ढेर सारे उदाहरण ताकि आप दावा कर सकें कि पूरा राजनीति-तंत्र अल्पसंख्यकों के पक्ष में झुका हुआ है। अगर खूब सोचें तब भी आप संभवतः यही पाएँगे कि भारत में ऐसा कुछ हुआ है, इसका कोई प्रमाण नहीं है। संक्षेप में, वोट बैंक की राजनीति खुद में इतनी गलत चीज नहीं है। गलत तो वोट बैंक की वैसी राजनीति है,जो अन्याय को जन्म देती है। महज यह तथ्य कि धर्मनिर्पेक्ष दल वोट बैंक का इस्तेमाल करते हैं, कष्टकारक नहीं है। भारत में हर समुदाय के संदर्भ में सभी दल ऐसा करते हैं।"

इतना कहने के बाद में मैं चुप हुआ और बोतल से पानी पीने लगा तबतक तो आधा कलास खड़ा हो गया अऊर कलऊतिया बोली " गुरूदेव बहुत गजबे ब्याख्या किए आप लेकिन घंटा बज गया है फिर भी आप आज फैसलवा करके यह बताइए कि आप किस पाले में हैं सेकुलरिज्म के कि उसके विरोध में?"

हम बोले "भाई जो ब्याख्या हम किए हैं उसके ही पक्ष में रहेंगे कि उसके विरोध में? हम सेकुलरिज्म के पक्ष में हैं।"
धनियवा बोली " ठीक गुरूदेव कल हम लोग ब्याख्या करेंगे आपके ब्याख्या की। आप जाइए अऊर कल बहुत मजबूत होकर आइएगा नहीं तो बहुत मजबूरी में मजबूर हो कर वापस जाए के पड़ी।"
हम कलास से निकल कर सीधे स्टाफ रूम में जाकर फिर पानी ढकार लिए।

'बेबाकबनारसी'

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