बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

दोगली देशी कुकुरिया अऊर बिलाइती बोल-३


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कलास से निकलकर हम सीधे पहिले लघुशंका के लिए गए अउर फिर उहां से प्रिंसिपल ऑफिस में गए तो एक पैरेंट बैठे थे अपने बच्चे को लेकर। गए थे मसला सुलझाने लेकिन दिमगवा में गजब खिचड़ी बना हुआ था कलस् की घटना को लेकर। उस वाद-विवाद ने सोचने पर मजबूर किया था लेकिन का करें सेकुलरिज्म का जवन रंग बचपने से किताब अउर सोच के माध्यम से रंगा था हमरे दिमगवा में उसका का करते। सेकुलरिजमवा का किडवा जो भित्तर घुसा हुआ था उहो तो कुलबुला रहा था। कइसे हार मान लेता आखिर सेकुलरिज्म वाला इंजेक्शन हमको बचपने से घोंपा गया था। लेकिन एक तरफ इहो दिमगवा में आ रहा था कि, हो चाहे न हो धनियवा का कुछ बतिया तो सही था ही। खैर उस दिन तो कैसों हम काट लिए कुल चीज को धीरे से क्लास से निकलकर। अगले दिन जब हम कलास में पहुँचे तो हमेशा की तरह बचवा कुल खड़ा होकर गुड मॉर्निंग विश किया और जवाब में हमहू विश कर दिए। ई सब कोरम पूरा करने के बाद हम पूछे '' आज क्या पढ़ाना है, तो मंगरुआ बोला " गुरुदेव कल हम पढ़े थे तिसरका पॉइंट जिसमे था कि A third accusation against secularism is the charge of minoritism. अब आपको इसका व्याख्या करना है। "

हमहूँ फिर कुरता का बाँहि मोड़े अउर ब्लैक बोर्ड पर पॉइंट लिख दिए। उसके बाद बच्चों की तरफ मुड़कर बोले " यह सच है कि Indian Secularism अल्पसंख्यक अधिकारों की पैरवी करती है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह न्यायोचित है ? अाप कल्पना कीजिए कि चार व्यस्क पुरुष एक तेज चलती गाड़ी में सफर कर रहे हैं। बीच में ही एक यात्रि सिगरेट पीने की इक्छा व्यक्त करता है। दूसरा यात्री शिकायत करता है कि वह सिग्रेट का धुँआ बर्दाश्त नहीं कर सकता है। अन्य दो यात्री भी धूम्रपान करते हैं, मगर वे कुछ बोलते नहीं हैं। साफ तौर पर कम से कम दो यात्रियों के बीच तो टकराव अवश्य है। एक विचार आया कि मतदान के जरिए इसे हल किया जाए। सिग्रेट पीने वाले दो खामोश यात्री उस व्यसनी का साथ देते हैं और धूम्रपान न करने वाला दो मतों के अंतर से हार जाता है। यहाँ अल्पसंख्यक पराजित हो जाता है, मगर नतीजा तो उचित प्रतीत होता है क्योंकि आम सहमति से उचित लोकतांत्रिक रीति अपनाई गई।"

अभी एतना बोले ही थे कि रामपियारी पीछे से खिलखिलाकर हँस दी अऊर बोली " गुरुदेव बहुत सही " हमको यह नहीं समझ में अाया कि रामपियारी हमको शाबाशी दे रही थी कि हमारी टाँग खींच रही थी। हम पूछे कि " क्या हुअा रामपियारी ? कोई दिक्कत ?" वह बोल उठी कि " नहीं गुरुजी अाप बहुत सही जा रहे हैं। अइसहीं ढीलते रहिए " हम अब क्या बोलते , तो अपनी बात को अागे बढ़ाते हुए बोले "अब स्थिति को थोड़ा बदल दें। कल्पना करें कि सिग्रेट न पीने वाला यात्री दमें से पीड़ित है। धूम्रपान से उसे जानलेवा दौरा पड़ सकता है। उसकी इस बात से कि दूसरा आदमी धूम्रपान न करे, उसका बुनियादी और बहुत जरूरी हित व्यक्त होता है। क्या बहुमत के फैसले को सही मानने वाली, पहले संदर्भ में जायज मानी जा सकती है? क्या आप मानते हैं कि उस व्यसनी यात्री को तब तक सिग्रेट नहीं पीनी चाहिए जब तक गाड़ी अपने गंतव्य तक न पहुँच जाए? आप सहमत होंगे कि जहाँ बुनियादी हितों का प्रश्न हो, वहाँ लोकतांत्रिक पद्धति के द्वारा मतदान उपयुक्त नहीं होता है। अपने महत्वपूर्ण हितों की पूर्ति किसी व्यक्ति का प्राथमिक अधिकार होती है। जो व्यक्तियों के लिए सही है वह समुदायों के लिए भी सही होगा। अल्पसंख्यकों के सर्वाधिक मौलिक हितों की क्षति नहीं होनी चाहिए अऊर संवैधानिक कानून द्वारा उसकी हिफाजत की जानी चाहिए। भारतीय संविधान में ठीक इसी तरीके से विचार किया गया है। जिस हद तक अल्पसंख्यकों के अधिकार अऊर मौलिक हितों की रक्षा करते हैं ,उस हद तक वह जायज हैं।"

इतना बोलने के बाद मैं कुछ देर के लिए रुका और मैंने जैसे ही मेज पर पड़ी हुई पानी की बोतल उठाते कि पीछे से कोई सीटी मार दिया और पूरा कलास ठहाका मारकर हँस दिया। हम गुस्सा को पीते हुए अपनी बात अागे बढ़ाए "कुछ लोग फिर भी कह सकते हैं कि अल्पसंख्यकों के अधिकार ऐसे विशेषाधिकार हैं, जिसके लिए दूसरों को कीमत चुकानी पड़ती है। तब ऐसे विशेषाधिकार क्यों दिए जाएं ? एक अन्य उदाहरण से इसका जवाब बहुत अच्छी तरीके से किया जा सकता है। कल्पना कीजिए कि किसी प्रेक्षागृह के पहले तल्ले पार् कोई फ़िल्म दिखाई जा रही है। वहाँ सीढ़ियों के जरिए पहुँचा जा सकता है। टिकट खरीदने, सीढ़ी पर चढ़ने और फ़िल्म देखने की इजाजत सबको है। लेकिन क्या ऐसा सचमुच है ? क्या हर कोई ऐसा करने को स्वतंत्र है? कल्पना कीजिए कि उन लालायित दर्शकों मे कुछ वृद्ध भी हैं, कुछ ऐसे हैं जिनकी हाल मे ही टांग टूट गयी है और कुछ अन्य शारीरिक रूप से अक्षम हैं। उनमे से कोई भी सीढ़ियाँ नहीं चढ़ सकता है। क्या अापके खयाल से लिफ्ट अथवा व्हील चेयर पर बैठे लोगो के लिए ढालनुमा सीढ़ी या लिफ्ट की व्यवस्था करना गलत होगा? ऐसा करने से वे लोग भी वही चीज पा सकते हैं, जो दूसरे लोग सहज ही सीढ़ियाँ चढ़कर प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन, अल्पसंख्या वाले इस समूह को पहले तल्ले पर जाने के लिए भिन्न सुविधा की जरूरत है। अगर पूरी जगह में ऐसा निर्माण किया जाए, जो केवल युवा और सक्छम लोगों के लिए ही उपयुक्त हो, तो लोगों के कुछ खास हिस्से फिल्म देखने जैसे लाभ से हमेशा के लिए वंचित हो जाएँगे। उनके लिए अलग व्यवस्था उनके साथ विशेष बरताव नहीं है। उनके लिए यह वैसे ही सम्मान और गरिमा से भरा बरताव है जैसा दूसरों के साथ किया जा रहा है। इसका मतलब यही है कि अल्पसंख्यक अधिकारों को विशेष सुविधाओं के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।"
इतना कहने के बाद हम चुप हुए और फिर बच्चों से बोले " Now I think you would have understood my explanation and the third accusation of minoritism is a false accusation." लेकिन क्लास में एक सन्नाटा पसर गया और तब तक कलऊतिया ताली बजाते हुए खड़ी हुई और बोली " गुरूजी बहुत सही। गजब़े न एक्सपलेन किए आप। ससुरा माथा झन्नाने लगा अऊर आपके झंडू टाईप एक्सपलेनेशन से। गुरूजी कम से कम आप एक ठो बढ़िया सा उदाहरण दिए होते। आरोप है हत्या का अऊर दलील भईंस चुराने की आप दे रहे हैं।अरे कम से कम एक ठो झन्नाटेदार दलील दिए होते।"
अभी कलऊतिया इतना बोली ही थी घंटा बज गया लेकिन कलऊतिया रुकी नहीं और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली "गुरूजी कम से कम एक ठो झन्नाटेदार दलील दिए होते तो पचता भी। अब तो पेट गड़ने लगा हमार। इ ससुरा घंटा बज गया लेकिन हम कल आपको एक्सपलेन करेंगे तब जाकर हमरे पेट का गड़न खतम होगा। बहुत लच्छेदार था आज का एक्सप्लेनेशन कल हम कुल लच्छा उधेड़ेंगे।"  

इसके बाद हम धीरे से क्लास से निकल आए।
                                                                
                                                             (क्रमशः)

                                                         'बेबाकबनारसी'

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