बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

दोगली देशी कुकुरिया अऊर विलाईती बोल-९ (ख)


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तुर्की का उदाहरण आप दे रहे हैं? गुरू जी पहिला बात ई है कि आप जो तुर्की के सेकुलरिज्म का बखान कर रहे हैं तो हम आपका फंडा किलियर कर देते हैं। कमाल अतातुर्क ने तुर्की के तथाकथित सेकुलरिज्म की नींव का पहिला ईंट रखा था। वहाँ की एक संस्था है जिसका नाम है 'दियानेट'(Diyanet), The Directorate for religious affairs जिसकी स्थापना अतातुर्क साहब ने की थी और इसका कार्य है धर्म के प्रभाव को चेक करके नियंत्रित करना। यदि सेकुलरिज्म की आपकी परिभाषा को लें जहाँ राज्य और धर्म का कोई संबंध नहीं होता है तो ओकरा हिसाब से तुर्की सेकुलर नहीं है।  पहिलका चीज कि गुरूजी जाकर तुर्की का हालत देखिए आज उनका सेकुलरिज्म खतरा में है।
गणतंत्र के शुरुआत दिनों से ही राज्य और मस्जिद एक दूसरे में बहुत घुले मिले हैं। हर मस्जिद का मालिक राज्य है, सभी इमाम राज्य कर्मचारी हैं और शुक्रवार के दिन पढ़ी जाने वाली पंक्तियों को सरकार द्वारा लिख कर बँटवाया जाता है।

प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर के अनिवार्य धार्मिक पाठ्यक्रम भी राज्य निर्घारित करता है और सुन्नी इस्लाम के प्रारूप का समर्थन करता है जिससे अन्य धर्मों के अभिभावकों को परेशान होना पड़ता है। अन्य धर्मों के स्थलों को राज्य द्वारा कोई सहायता नहीं मिलता है जैसे 'दियानेट'के द्वारा मस्जिदों को मिलता है जो कि भेदभाव है।आपको मालूम है गुरूजी ई जो दियानेट है इसके करीब १००००० कर्मचारी हैं यह राज्य के अंदर एक छोटा राज्य के रूप में कार्य करता है। २०१३ में केंद्र सरकार के खर्चा में दियानेट का बजट 4.6 billion TL (Turkish Lira) से ऊपर रहा है और सोलहवे नंबर पर है।

Turkey’s non-secular secularism will continue to be used by anybody in power to suppress other groups in society. यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राईट्स ने कई बार आपत्ति की है लेकिन तुर्की अपने सेकुलरिज्म के संस्करण में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहता है। पश्चिम का देश है और पश्चिमी परिभाषा को ही नहीं मानता है।

अभी जो हालात चल रहा है वह खुद ही गवाह है। Erdogan जो राष्ट्रपति हैं उन्होंने खूब प्रयोग किया तथाकथित सेकुलरिज्म का अपने धार्मिक और राजनीतिक स्वार्थ की रोटी सेंकने के लिए।
हमतो गुरूजी इहे कहेंगे Turkey does need a new constitution. It needs a constitution that finally gets rid off Turkey’s non-secular secularism, which will continue to be used by anybody in power to suppress other groups in society.
समझिए कि आदर्श सेकुलर राज्य जेकर उदाहरण कितबिया में दिया है ओकर स्थिति ई है। कवन मुँहझंऊसा, मुँहफुकऊना किताब लिखा है? ई राजनीतिक चिंतक हैं ससुरे अऊर अईसहीं सब पिछला ६०-६५ साल में ईहे पढ़ाया है न कि आज निरहू चच्चा के नाम पर विश्वविद्यालय जो है उसमें नारा लगता है " भारत तेरे टुकड़े होंगे ईंशा अल्लाह, ईंशा अल्लाह"। इस दोगली कुकुरिया को  'वसुधैव कुटुम्बकम्' नहीं देखाता है?
गुरू जी किताब ई कह रही है कि 'भारतीय सभ्यता का इतिहास दिखाता है कि इस तरह साथ-साथ रहना बिलकुल संभव है।' अरे तो बता रहे हैं गुरूजी कि रहना संभव सेकुलरिज्म के दोगलई सिद्धांत के कारण नहीं हो पाया है बल्कि 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के कारण और तो और इसके खातिर कितना बलिदान हुआ है। कितना खून बहा है हमारा, कितना लाश गिरा है, मिट्टी लाल हुई है। इस देश का महानता है गुरूजी कि आज तक किसी पर कोई धर्म थोपा नहीं गया है क्योंकि यहाँ धर्म नाम की कोई संस्था रहबे नहीं किया है, यहाँ तो आत्मिक, मानसिक रूप से जीवनशैली ही अध्यात्मिक रहा है। लोग कहता है कि यहाँ जो आया वह यहीं का रहकर रह गया। अरे गुरूदेव घंटा रह गया, मजबूरी था नहीं करता तो एतना बड़ा साम्राज्य कईसे खड़ा करता सब। अईसा धर्म था ओ कुलहिन का कि अपने देश में पैर रखने का ही जमीन नहीं मिला। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का भाग मनावें कि दो गज जमीन मिल गया आखिरी में सुतने को नहीं तो कहीं अपसे में लड़-कट कर मर जाते अऊर चील- कऊवा खाकर weight loss के लिए आसन करते। देख रहे हैं न पश्चिम वाला बहुत सेकुलरिज्म-सेकुलरिज्म टेरा जिनगी भर अऊर खूब मलाई काटा, अब जब यूरोप अऊर अमेरिका के हर शहर में सब रोज पटाखा छोड़ता है तो सेकुलरिज्म भित्तर घुस जाता है अऊर गुरूजी हँसी से पेट दुखाने लगता है जब दोगलवा उसको 'आतंकवाद' कहता है। फूँक दे अइसे सेकुलरिज्म के गुरूजी।"

कलऊतिया एतना बोली ही थी कि पूरा कलास ठहाका मारकर हँस दिया अऊर चिल्लाने लगा ' वाह रे कलऊतिया, वाह रे कलऊतिया गजबे चीर दी सेकुलरिज्म का '। तब तक घंटा बज गया तो कलऊतिया बोली ' गुरूजी कल आगे हम पूरा ब्याख्या करके इस पाठ का पर्दा उखाड़ कर फूँक देंगे।" हमहू कुछ नहीं बोले अऊर मूड़ी हिलाकर अपना सामान उठाकर बाहर चल दिए लेकिन मंथन के लिए मजबूर तो कलऊतिया कर ही दी थी।

'बेबाकबनारसी'

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