बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

दोगली देशी कुकुरिया अऊर विलाईती बोल-९ क


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कलास से तो निकल कर बहरे आ तो गए, पानी भी ढकार लिए लेकिन जला बहुत जबर था। मिर्च नहीं लगा था बल्कि लग रहा था कि कऊनो पेट्रोल छुआया हो। बर्नॉल का जरूरत था। बड़ी दिमाग में खलबली मचा हुआ था। कऊनो काम में मन भी नहीं लग रहा था। कईसे भी दिन भर स्कूल में काट तो दिए लेकिन घरे पहुँचे तो बिना कुछ खाए पिए उपवास ही सुत गए। शाम को चाय बनाए अऊर मारे गुस्सा जाकर पान के दुकान पर खूब सारा पान बंधवा लिए। एक ठो पान घुलाए अऊर दुकान पर उपस्थित लोगों से सामाजिक मुद्दों पर बहस हुई। कमरा पर लऊट कर आए तो फिर एक कप चाय बनाए अऊर पीने के बाद पान कचरे। संगीत सुनना शुरू किए तो कलऊतिया का सुबह का राग भैरवी दिमाग में बजने लगा। बिसमिल्लाह खाँ साहब,भीमसेन जोशी जी, किशोरी अमोणकर जी की कि क्या बिसात कि दिमाग में टन-टन कर रहे कलऊतिया के राग भैरवी को शांत कर दें। खैर खाना बनाए लेकिन खाने का मूड नहीं हुआ। कलऊतिया का एक-एक शब्द हथौड़ा कि तरह करेजा अऊर ऊपर वाले डिपार्टमेंट में चोट कर रहा था। जब ढेर घायल हो जाते थे तो बकरी नियर पान कचरते थे बनारसी की तरह घुल ही नहीं रहा था चाहे कितना कोशिश कर रहे थे।
अगला दिन पहुँचे कक्षा ११ में तो सोचे कि जाते ही पहिले कलऊतिया अऊर धनियवा से पूछ लेंगे कि अऊर उदाहरण देना है तो दे ले। ब्लैकबोर्ड मिटाने के बाद टॉपिक लिखे अऊर कलऊतिया को बोले " Yes Kalawati and Dhaniya yesterday you were giving lot of examples against Secularism. Do you need to give few more examples or should I proceed with other criticism and put down the curtain of this chapter?"
कलऊतिया खड़ी हुई फिर दहाड़ते हुए बोली " का गुरूजी कल वाले से काम नहीं चला का? कम पड़ गया का? सेकुलरवन कि तरह आप भी बड़ा थेथर हैं। लात खाकर झाड़ कर खड़ा हो जाते हैं। हम तो वसुधैव कुटुम्बकम् वाले हैं जाली टोपी अऊर पलस साईन वाले नहीं लेकिन ई मत बूझिएगा कि आप अँग्रेजी में कुच्छो किटिर पिटिर किए तो हम intolerant हो जाएँगे। आप आगे गाड़ी बढ़ाकर इस चैप्टर को मंजिल तक पहुँचाइए।"
कलऊतिया के आगाज से हमको तो अंजाम समझ में आ गया तो हम सोचे कि काहे नहीं किसी को खड़ा करके पढ़वा देते हैं अऊर कलऊतिया या धनियवा को बोल देते हैं कि ब्याख्या कर दे। हमहू घायल होने से बच जाएँगे अऊर चैप्टर भी खत्म हो जाएगा। हम बोले कलऊतिया की तरफ देखकर " Kalawati why don't you explain the last criticism and end the chapter. I will ask someone to stand up and read for you. Yes Bisheshar you stand up and read the next criticism."
कलऊतिया मूड़ी हिलाकर हामी भर दी अऊर हम मनेमन बहुत खुश हुए तब तक बिसेसरवा खड़ा हुआ अऊर पढ़ने लगा " A final, cynical criticism might be this: Secularism cannot work because it tries to do much, to find out a solution to an intractable. What is this problem? People with deep religious differences will never live together in peace."
एतना पढ़ने के बाद बिसेसरवा बईठ गया तो कलऊतिया बोली " हे बिसेसरा अगवां जवन कितबिया में सेकुलरवा कुल ब्याख्या करके इस आलोचना को गलत सिद्ध किए हैं, ऊ कौन पढ़ेगा? टेंडर निकालना पड़ेगा कि केराया पर लाकर पढ़वाना पड़ेगा? चल बुड़बक अगवां पढ़।" बिसेसरवा खड़ा हुआ अऊर पढ़ने लगा " हमारे अनुभव बताते हैं कि यह दावा गलत है। भारतीय सभ्यता का इतिहास दिखाता है कि इस तरह साथ-साथ रहना बिलकुल संभव है। अन्यत्र भी ऐसा हुआ है। ऑटोमन साम्राज्य इसका प्रेरणादाई उदाहरण है। लेकिन अब आलोचक कह सकते हैं क सह-अस्तित्व वस्तुतः असमानता की स्थितियों में ही संभव है। श्रेणीबद्धता आधारित प्रणाली में हर कोई जगह पा सकता था। उनका दावा है कि आज ऐसा नहीं हो सकता है क्योंकि अब समानता लगातार प्रभावी सांस्कृतिक मूल्य बनती जा रही है।
इस आलोचना का जवाब दूसरी तरह से दिया जा सकता है। एक असंभव परियोजना का अनुसरण नहीं वरन भारतीय धर्मनिर्पेक्षता भविष्य की दुनिया का प्रतिबिंब प्रस्तुत करती है। भारत में महान प्रयोग किया जा रहा है जिसे समूची दुनिया बहुत पैनी निगाहों और बड़े चाव से देख रही है। ऐसा कहना ठीक भी है। अतीत में उपनिवेश रहे देशों से लोग अब पश्चिम के मुल्कों में आप्रवास कर रहे हैं। वैश्वीकरण में तेजी आने के साथ पूरे विश्व में लोगों की गतिशीलता अभूतपूर्व ढंग से बढ़ी है। यूरोप और अमेरिका तथा मध्य-पूर्व के कुछ हिस्से अब धर्म और संस्कृति की विविधता के लिहाज से भारत जैसा दिखने लगे हैं। ये समाज भारतीय प्रयोग के भविष्य का गहरी रूचि के साथ अवलोकन कर रहे हैं।"
इतना कहने के बाद बिसेसरवा बईठ गया अऊर कलऊतिया खड़ी हुई अऊर बोलना शुरू की और कहा " गुरूजी सबसे पहिला बात ई है कि यह सेकुलरिज्म का आलोचना बिलकुल सही है। इसमें कोई लाग-लपेट नहीं है। ई तो हमरे हिसाब से universal truth है। यह एक असंभावी परियोजना है। पश्चिम से आयातित है जो कि भारत जैसे देशों में 'सांस्कृतिक प्रभुत्व' के द्वारा आर्थिक साम्राज्य स्थापित करने का तरीका है। गुरूजी कितबिया कह रही है कि 'भारतीय सभ्यता का इतिहास दिखाता है कि इस तरह साथ-साथ रहना बिलकुल संभव है।' घंटा इतिहास कऊने इतिहास का बात कर रहे हैं आप? ऊहे कुल जो वमिया, कमिया अऊर तथाकथित लिबरलवा लिखा है? सभ्यता का इतिहास जो आप कह रहे हैं उस सभ्यता ने बहुत समझौते किए हैं, माटी लाल हुई है गुरूजी। ई कौन लिखेगा गुरूजी?

जारी.................

'बेबाकबनारसी'

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