समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब क्या करूँ? आर्थिक दबाव दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था।कब तक किसी के यहाँ पड़ा
रहूँगा, और ऐसे कितने दिन चलेगा।भाई की जिम्मेदारी एक अलग चिंता का विषय थी
मेरे लिए।सोचता था कि चलो अभी तक किसी को पता नहीं है घर में।घर से फोन आता था तो
काट देता था या बहाना बना देता था कि स्कूल में हूँ।पिताजी हमेशा फोन करके बहन के
लिए रिश्ते पता लगाने के लिए कहते थे, यह दबाव एक और चिंता
का सबब था।सोचता था कि यदि नौकरी मिलने में जितनी देरी हुई है अभी तक यदि इतनी और
हो गई तब तो मेरे लिए भी छिपा पाना नामुमकिन हो जाएगा।ऐसे में घर वालों पर क्या
बीतेगी।यह सब सोचते दिमाग फटने सा हो जाता था।
खैर इन सब झंझावातों के बीच ही मैं अगले
दिन फिर एक विद्यालय में साक्षात्कार के लिए पहुँचा। यह विद्यालय दक्षिणी दिल्ली
में है।वहाँ पहुँच कर मैंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। मेरा साक्षात्कार लेने के
बजाय मुझे सीधे एक क्लास में ले गए जो कि कक्षा 11वी थी लेकिन मुझे कक्षा 12वी की किताब दी गई
पढ़ाने के लिए।मुझे थोड़ा सा अजीब जरूर लगा लेकिन मेरे लिए यह एक बहुत ही दिलचस्प
अवसर था।मैंने सोचा यहीं पर मैं अपना सही मुल्यांकन कर सकता हूँ।पढ़ाने में मजा आ
सकता है यदि बच्चे थोड़े से भी होशियार होंगे।मेरे बैग में उस दिन अचानक ही मुझे
एक Hard
disk दिख गई जो मैं हमेशा रखता था जिसमें बढ़िया संगीत, कला-फिल्में, वृतचित्र का एक नायाब खजाना है। मुझे
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पढ़ाना था उसमें भी पहला पाठ 'शीत-युद्ध'।शीत युद्ध पर मेरे पास एक 24 कड़ियों का वृतचित्र था। मैंने तुरंत प्रोजेक्टर चालू कराया और वह
चालू कर दिया।शुरू करने के पहले मैंने भूमिका बनाने के लिए पहले बोर्ड पर उनको
शीत-युद्ध की भूमिका समझाई फिर वह वृतचित्र चालू कर दिया।जहाँ मुझे लगता कि यहाँ
मुझे समझाना चाहिए वहाँ उसे रोककर मैं समझाता फिर आगे बढ़ जाता था।ऐसा करते हुए
मैंने बहुत ही बढ़िया ढंग से पढ़ाया और खुद भी संतुष्ट हुआ।मुझे रोकने को कहा गया
और मैं इस भाव से बाहर आया और अपने आप से मन ही मन कहा 'यार मजा आ गया पढ़ाकर'। फिर मुझसे कहा गया
कि आपको एक और क्लास पढ़ानी पड़ेगी।मैंने पूछा कौन सी तो उन्होंने कहा 8वीं भी पढ़ाना पड़ेगा।
सही मायनों में कहूँ तो मेरे हाथ-पाँव फूलने लगे कारण यह कि 8वीं मेरा स्तर नहीं है।उतना नीचे उतरना बहुत मुश्किल होता है मुझे।मैंने उन्हें कहा 'मैम मैंने पिछले 6-7 सालों में कभी 11वी के नीचे नहीं पढ़ाया है मेरे लिए 9वी और 10वी भी पढ़ाना मुश्किल होता है और आप आठवीं भी कह रही हैं।नौवीं और दसवीं मैं केवल इसलिए पढ़ाने के लिए तैयार हुआ हूँ क्योंकि यह स्कूल छोटा है और ग्यारहवी और बारहवीं में उतनी संख्या नहीं है।' मैंने साफ मना कर दिया कि मैं नौवीं के नीचे नहीं पढ़ाऊँगा।उनको देखकर यह समझ में आ रहा था कि जैसे वह कह रहे हों कि 'इसको देखो नौकरी का अभी पता नहीं और शर्तें रख रहा है।' फिर उन्होंने कहा ' अनुराग पिछली टीचर छठी भी पढ़ाती थी और यदि आपकी बात हम मानते हैं तो हमें पूरे स्कूल का टाइम टेबल बदलना पड़ेगा और बीच सत्र में यह करना बाकी टीचरों के लिए मुश्किल खड़ा कर देगा।' मेरे को उनकी बात समझ में थोड़ा बहुत समझ आई। मुझे एक इतिहास की किताब दी गई और मैंने पंद्रह मिनट का समय माँगा।
मुझे वहाँ से आठवीं कक्षा में ले जाया गया जहाँ मैंने 20-25 मिनट पढ़ाया।मुझे उतनी दिक्कत नहीं हुई पढ़ाने में क्योंकि वही सब चीजें मैं बारहवीं में पढ़ाता हूँ।मैंने पढ़ाया भी लेकिन मुझे नहीं मालूम कि बच्चों को समझ में आया कि नहीं।वहाँ से जब मैं निकल के बाहर आया तो मुझे रिशेप्शन पर ले जाया गया और एक फार्म दिया गया भरने को।इस फार्म में कुछ अपने बारे में जानकारी देनी थी, वेतन, शिक्षा, अनुभव इत्यादि।मैंने जब उनको वह भरकर दिया तो फिर मुझे प्रिंसिपल के कक्ष में साक्षात्कार के लिए बुलाया गया।साक्षात्कार क्या था इसे मात्र परिचय सत्र कहा जा सकता है जो कि मात्र औपचारिकता थी।
उसके बाद मुझे कुछ देर बैठने के लिए कहा गया।कुछ देर के बाद मुझे सूचित किया गया कि अब आपको डायरेक्टर से मिलना है।मुझे डायरेक्टर के कक्ष में ले जाया गया।मैं डायरेक्टर के कक्ष में प्रवेश किया और उनका अभिवादन किया जिसके जवाब में उन्होंने हाथ आगे बढ़ा कर हाथ मिलाया और बैठने को कहा।फिर एक औपचारिक सा परिचय हुआ दोनों लोगों के बीच में।उन्होंने कहा 'मिस्टर अनुराग आई केम टू नो दैट यू हैव ट्रेमेन्डस नोलेज नॉट ऑफ़ योर सब्जेक्ट ओनली बट अदर्स आल्सो.द फीडबैक व्हिच आई गॉट रेगार्डिंग योर क्लास टीचिंग एंड मैनेजमेंट इज़ रियली फैंटास्टिक.थ्रू योर CV आई केम टू नो दैट यू बिलोंग टू वाराणसी एंड आई मस्ट टेल यू दैट माय सिस्टर वर्कड देयर फॉर मेनी इयर्स.आई डोंट हैव एनी डाउट अबाउट योर नोलेज, स्किल्स एंड करैक्टर बिकॉज़ द इन्फ्लुएंस ऑफ़ दैट सिटी इजिली गेट रेफ्लेक्टेड ऑन द पर्सनालिटी ऑफ़ इट्स पीपल. नाउ यू टेल मी अबाउट द सैलरी व्हिच यू एक्सपेक्ट फ्रॉम अस'
मैंने कहा 'सर दैट आई हैव आलरेडी मेन्शन्ड इन द फॉर्म व्हिच आई फिल्ड .'
उनके हाथ में मेरा फार्म था जिसे उन्होंने
पलट कर देखा और देखने बाद कहा -'मिस्टर अनुराग यू हैव मेन्शन्ड दैट यू एक्सपेक्ट 6th पे कमीशन सैलरी विद अटलीस्ट 3 इंक्रिमेंट्स.'
मैंने तुरंत कहा - 'सर सीइंग माय एक्सपीरियंस एंड क्वालिफिकेशन्स आई थिंक आई हैव नॉट
डेमांडेड एनीथिंग मोर एंड आई
एक्सपेक्ट दैट मच .'
उसके बाद उन्होंने जो कहा उसको सुनने के बाद मेरे हाथ पैर काँपने लगे और दिमाग और कान जैसे सुन्न हो गया हो।उन्होंने कहा- 'मिस्टर अनुराग आई थिंक दैट व्हाटेवर यू डेमांडेड यू डिज़र्व दैट. यू टेक इट.' मुझे तो अपने कान पर विश्वास ही नहीं हो रहा था मैंने फिर से उन्हें दुहराने को कहा तो उन्होंने फिर से कहा -' 'मिस्टर अनुराग आई थिंक दैट व्हाटेवर यू डेमांडेड यू डिज़र्व दैट.यू टेक इट.'
मेरे आँखों में आँसू आ गए और मैंने हाथ बढ़ाकर हाथ मिलाकर उनको धन्यवाद कहा। मैं फिर बाहर आ गया तो कुछ ही मिनट के बाद मुझे 'ऑफर लेटर' पकड़ाया गया जिसमें यह जिक्र किया गया था कि मुझे कब से नौकरी में उपस्थित होना है और मेरा वेतन कितना होगा।मैंने गुणा-भाग किया तो मेरा वेतन मेरे पिछले वेतन से करीब 5000 ज्यादा था।स्कूल से बाहर आया तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाया, मैं फफक कर रो पड़ा और कुछ देर रोने के बाद मैंने सबसे पहले माँ को फोन लगाया और यह शुभ समाचार सुनाया तो माँ भी मेरी फफक कर फोन पर रोने लगीं।करीब 15 मिनट बात हुई।फिर मैंने कृष्णेश और कौशिक साहब को फोन कर सूचित किया तो वह बहुत खुश हुए।
मैं वहाँ से निकल गया वापस कृष्णेश के कमरे पर लेकिन परीक्षा नौकरी पा जाने पर ही नहीं खत्म हुई।
उसके बाद उन्होंने जो कहा उसको सुनने के बाद मेरे हाथ पैर काँपने लगे और दिमाग और कान जैसे सुन्न हो गया हो।उन्होंने कहा- 'मिस्टर अनुराग आई थिंक दैट व्हाटेवर यू डेमांडेड यू डिज़र्व दैट. यू टेक इट.' मुझे तो अपने कान पर विश्वास ही नहीं हो रहा था मैंने फिर से उन्हें दुहराने को कहा तो उन्होंने फिर से कहा -' 'मिस्टर अनुराग आई थिंक दैट व्हाटेवर यू डेमांडेड यू डिज़र्व दैट.यू टेक इट.'
मेरे आँखों में आँसू आ गए और मैंने हाथ बढ़ाकर हाथ मिलाकर उनको धन्यवाद कहा। मैं फिर बाहर आ गया तो कुछ ही मिनट के बाद मुझे 'ऑफर लेटर' पकड़ाया गया जिसमें यह जिक्र किया गया था कि मुझे कब से नौकरी में उपस्थित होना है और मेरा वेतन कितना होगा।मैंने गुणा-भाग किया तो मेरा वेतन मेरे पिछले वेतन से करीब 5000 ज्यादा था।स्कूल से बाहर आया तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाया, मैं फफक कर रो पड़ा और कुछ देर रोने के बाद मैंने सबसे पहले माँ को फोन लगाया और यह शुभ समाचार सुनाया तो माँ भी मेरी फफक कर फोन पर रोने लगीं।करीब 15 मिनट बात हुई।फिर मैंने कृष्णेश और कौशिक साहब को फोन कर सूचित किया तो वह बहुत खुश हुए।
मैं वहाँ से निकल गया वापस कृष्णेश के कमरे पर लेकिन परीक्षा नौकरी पा जाने पर ही नहीं खत्म हुई।
(क्रमशः)
'बेबाकी'
बेबाकी से आपने अपनी बात कह दी!! जय हो।
जवाब देंहटाएंDhanyawaad mitr
जवाब देंहटाएंबधाई !
जवाब देंहटाएंDhanyawad Sir
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