शनिवार, 8 अगस्त 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे १५


इतना कहने के पश्चात मैंने गुस्से में धन्यवाद कहा और तुरंत कमरे से बाहर आ गया। बाहर निकलने के बाद तुरंत एक दुकान और फिर पानी और पान।मुझे निराशा जरूर थी लेकिन कोई पछतावा नहीं था।
अब आगे.....

मैं वहाँ से सीधे कृष्णेश के यहाँ आया।मन बहुत ही खिन्न और उदास था।स्थितियाँ देखकर रोने का मन करता था लेकिन रो भी नहीं पाता था।कृष्णेश ने पूछा कि 'अनुराग भाई का भयल?' मैंने उनको पूरी घटना बताई तो वह बोले कि 'अनुराग भईया मन मत छोटा कीजिए।आप सफल जरूर होंगे, बस समय की बात है।' मुझे उनकी बात कुछ नहीं समझ में आ रही थी।खैर बातचीत करते हुए वह दिन बीता।मुझे आगे क्या करना है कुछ समझ में नहीं आ रहा था।बड़ी ऊथल पुतल में कट रही थी जिंदगी।मेरे मन में एक और खयाल आने लगा कि क्यों न दिल्ली के बाहर देखा जाए।मेरे पास दिल्ली से बाहर के एक स्कूल से साक्षात्कार के लिए बुलावा भी था।मुझे लगने लगा कि दिल्ली में मेरा दाना-पानी इतना ही लिखा था।मैंने मन बना लिया कि कल सुबह स्कूल को फोन लगाऊँगा और सूचित करूँगा कि मैं दोपहर तक पहुँच जाऊँगा।
यह स्कूल हिसार, हरयाणा में था।जिंदल का लड़कियों का स्कूल है और आवासीय है।मैंने सोचा कि आवासीय ही अब स्थितियों को देखकर ठीक रहेगा।अगले दिन सुबह उठा और स्कूल को फोन लगाया कि मैं पहुँच रहा हूँ 12 बजे तक।यह स्कूल मेरे को पिछले 2 वर्ष से पता नहीं कितने बार फोन कर चुका था लेकिन मैं साफ मना कर देता था क्योंकि मैं दिल्ली अभी नहीं छोड़ना चाहता था। खैर सुबह उठा तैयार होकर बस पकड़ कर 12:30 के आसपास वहाँ पहुँच गया।स्कूल मेन हाइवे पर लेकिन एक बड़ी विचित्र बात यह थी कि अगल बगल कुछ नहीं था।किसी चीज की यदि आवश्यकता पड़ जाए तो 6 किमी आगे जाइए या 5 किमी पीछे।
मैंने वहाँ पहुँच कर रिपोर्ट कि अपनी उपस्थिति और मेरे को कुछ देर इंतजार करने के लिए कहा गया।मैं बैठकर अखबार पढ़ने लगा कि कुछ देर के बाद एक बंधुवर आए और मेरे को एक केबिन में ले जाकर मेरे को एक प्रश्नपत्र पकड़ा दिया और कहा आपको लिखित परीक्षा देनी पड़ेगी।हमने भी मन में सोचा कि जब जिंदगी ही ने पिछले पाँच महीने में इतनी कड़ी-कड़ी परीक्षा ले ली है तो लिखित परीक्षा की क्या बिसात है उन सबके आगे।दरअसल उन्होंने पिछले साल का बारहवीं का बोर्ड पेपर दे दिया था।
सही मायनों में कहूँ तो वाकई में यह हकीकत है कि हम शिक्षक लोग पता नहीं कितनी उत्तर-पुस्तिकाएँ साल भर में जाँचते हैं इसकी कोई गिनती नहीं है।लेकिन यदि हमलोगों को ही कह दिया जाए कि 3 घंटे बैठकर एक प्रश्नपत्र हल कर दीजिए तो धैर्य जवाब देने लगता है।हमलोगों से बोलवा लीजिए चाहे जितने घंटे, बांच देंगे घंटो।भाई नौकरी का मामला था तो यह पापड़ बेलना ही था।खैर मैंने शुरू किया लिखना।डेढ़ घंटे के बाद मेरा धैर्य जवाब देने लगा।मुझसे लिखा नहीं जा रहा था।इतने देर में वह बंधु आ गए और पूछा कि 'सर पूरा हो गया'।मैंने उनसे कहा कि 'सर आधा घंटा और लगेगा।' तब उन्होंने कहा 'सर बस इतना रहने दीजिए हम इतना ही जाँच लेंगे।' मैंने सोचा चलो बढ़िया है जान बची।फिर उन्होंने कहा 'सर आप मेरे साथ चलकर खाना खा लीजिए, आपको भूख भी लग गई होगी'
मैं उनके साथ स्कूल के भोजनालय चला गया और खाना खाने लगा।खाने के दौरान मैंने उनसे कई जानकारियाँ ली जैसे कितना स्टाफ है, कितने पुरुष हैं और कितनी महिलाएँ हैं स्टाफ में, कितने विवाहित हैं और कितने अविवाहित हैं।स्कूल की तरफ से क्या-क्या सुविधा है स्टाफ के लिए।बाहर आने-जाने का क्या नियम हैं और जाने के लिए क्या सुविधा स्कूल देता है, इत्यादि।उनके साथ खाना खत्म करने के पश्चात हम लोग उसी जगह आ गए।अब साक्षात्कार देने के लिए मुझे एक कक्ष में बुलाया गया।स्कूल की प्रिंसिपल, डायरेक्टर और दो लोग बैठे हुए थे।मैंने अभिवादन के पश्चात अपनी जगह ले ली।मुझसे प्रश्न पूछा जाने लगा जिसका मैंने सफलतापूर्वक जवाब दिया।फिर वेतनमान को लेकर बातचीत शुरू हुई जिसमें थोड़ी लम्बी बहस हुई लेकिन कमोबेश बात बन गई।
उन्होंने कहा कि "मिस्टर अनुराग योर परफार्मेंश हैज बीन मारवेलस बट ऐज फाॅर ऐज योर सैलरी इज कन्सर्नड वी विल डिसकस अमंग अस ऐंड वी विल गेट बैक टू यू इन कपल ऑफ डेज।बट बी श्योर दैट यू हैव बीन नियरली अपाइंटेड।" 
मैंने सबको धन्यवाद कहा और बाहर निकल आया।बाहर तक वह सज्जन मुझे छोड़ने आए और बताया कि सर आपको बस स्कूल गेट से ही मिल जाएगी।मैं बस का इंतजार करने लगा।बसें आ तो रहीं थी लेकिन हाथ देने पर रुक नहीं रहीं थीं ।मैं एक घंटे तक खड़ा रहा और हाथ देता रहा।अंत में परेशान होकर एक ऑटो में बैठकर अगले स्टाॅप तक गया।वहाँ सभी बसें रुक रहीं थीं।एक बस में बैठा और बैठने के बाद कई पहलुओं पर विचार करने लगा।
पहला प्रश्न तो यह था कि मैं ठहरा अविवाहित, क्या लड़कियों के स्कूल में नौकरी करना ठीक रहेगा।
दूसरा प्रश्न कि चलो यदि कर भी लिया और मैं अपने को नियंत्रित भी कर लिया लेकिन यदि कल की तारीख में यदि मेरा मैनेजमेंट से कोई पंगा हुआ तो मैनेजमेंट तो मेरे ऊपर चरित्रहीन होने का आरोप लगाकर मेरी जिंदगी के साथ खेल सकता है।
तीसरा प्रश्न यह कि मैं अकेला अविवाहित बाकी सब विवाहित और स्कूल खत्म होने के बाद सब तो अपने घर में घुस जाएंगे मैं इस तिहाड़ में तो पागल हो जाऊँगा।
आने जाने का साधन कुछ नहीं, अगल-बगल कोई बाजार 5 किमी के पहले नहीं।इसी तरह के कई छोटे-छोटे प्रश्न उठे। मैं दिल्ली पहुँच गया और फिर से इन प्रश्नों पर विचार करने लगा और इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि सब तो ठीक है लेकिन पहले और दूसरे प्रश्न का जवाब नहीं खोज पाया।मैंने सोचा इज्जत और सम्मान बड़ी कोई चीज नहीं है और इसके साथ समझौता नहीं किया जा सकता है।अतः मैंने निर्णय किया कि नहीं यह स्कूल मैं नहीं ज्वाईन कर सकता।दो दिन बाद एक और जगह जाना था साक्षात्कार के लिए।
अगले ही दिन करीब 11 बजे हिसार से फोन आ गया कि उन्होंने वेतन को लेकर मेरी शर्त मान ली है।पर अफसोस कि मुझे नहीं कहना पड़ा उनको जिसके लिए मैंने उनसे माफी भी मांगी।मैंने दूरी का हवाला देते हुए नहीं कह दिया।
जब बात हो रही थी तो कृष्णेश भी वहीं थे और वह तो चौंक गए जब मैंने नहीं कहा।फोन काटने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने आखिर मना क्यों कर दिया।मैंने उनको सब कारण बताए तो उन्होंने कहा"अनुराग भईया ऐसी स्थिति में भी आप इतने दूर की सोचते हैं।हम लोग तो सामान्य स्थिति में भी इतना न सोच पाएं वह भी इतने बिंदुओं पर।आप धन्य हैं।"
उस दिन का समय मैंने ऐसे ही काटा।अब अगले दिन अगली परीक्षा की तैयारी थी।
(क्रमशः)

'बेबाकी'

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