शनिवार, 14 नवंबर 2015

खदेरनबो

हरिहरबो अपने पतोह को देखकर बहुत इतराती थीं और इतराए भी काहे नहीं। बहु बहुत सुघ्घर, मलाई नियर चिक्कन अऊर गोरी थी। पढ़ी भी अपने इलाका में सबसे ज्यादा थी। अऊर तो अऊर 5'4" लंबी भी थी,माल भी बढ़िया-बढ़िया लाई थी अऊर बढ़िया अमाऊंट में भी। पूरा मोहल्ला में चर्चा हो गया हरिहरबो के पतोह को लेकर। लेकिन समस्या खदेरनबो को थी।उनके करेजा पर तो साँप लोट रहा था, करेजा धुंकनी की तरह जल रहा था। खदेरनबो भी कसम खा लीं कि हमहू अपने मँगरुआ का बियाह करेंगे तो उससे सुगघर, उससे चिकनी अऊर उससे पढ़ी-लिखी पतोह लेकर आएँगे जो कई गुना माल लेकर आएँगी। हरिहरबो की पतोह का चर्चा तो मोहल्ला में है हमरी पतोह का चर्चा इलाका में होगा।
खदेरनबो कुनकुनाते हुए पहुँच गईं खदेरन के पास अऊर जोर डालने लगीं कि मँगरुआ का बियाह देखिए। इधर खदेरन तिलकहरू जुगाड़ने लगे उधर खदेरनबो हरिहरबो अऊर उनके पतोह में खोट निकाल कर घर घर चर्चा करने लगीं। हरिहरबो बहुत अईसन हैं तो वईसन हैं, पतोहिया गोर नहीं है खाली किरीम-पाऊडर पोतती है, समधी को बेचकर पईसा लिया, गाड़ी में तेल भरावे भर का पईसा नहीं है अऊर दुआरी पर गाड़ी रखकर भौकाल बनाता है। खदेरन के बेटा का बियाह अब इज्जत का बात हो गया पूरे परिवार के लिए।रर-रिश्तेदारी में भी सनेश पहुँच गया अऊर तो अऊर चारो ओर हरिहर अऊर उसके पतोह का बुराई का चर्चा होने लगा।
तिलकहरू रोज दुआरी पर आने लगे। इधर खदेरनबो तिलकहरू का फोटो देखतीं,नाक भौं सिकोड़तीं। लईकी छोट है पाँच-पाँच चाहिए, सुग्घर नहीं है, गोर चाहिए, पढ़ी लिखी भी कम है थोड़ा अऊर होना चाहिए तो उधर खदेरन रोज बजारी में चाय-पान की दुकान पर भौकाल बनाने लगे अऊर हरिहर को गरियाने लगे। खदेरन के साथ उनका बनिहार रोज साथ जाता था अऊर हाँ में हाँ मिलाता था। जब कऊनो गाड़ी नई चार पहिया खदेरन देखते तो सबसे यही कहते 'मँगरुआ के बियाह में इहे गाड़ी लियाएगी। रोज एक ठो गाड़ी देखते, दाम पूछते अऊर मोंछ टे कर यही बतिया रोज दोहराते। हरिहर अऊर खदेरन का एक परिवार से कुछ विवाद चल रहा था लेकिन खदेरना को तो हरिहर का मिट्टी खराब करना था तो खदेरन उधर चोंच लड़ाने लगे, बइठने लगे खूब छनने लगी।
हरिहर बेचारू को कोई फर्क नहीं पड़ता।ऊ अपने काम धंधा में व्यस्त,हाड़ तोड़ कर मेहनत करते।बचवा उनका अपना काम करता अऊर मस्ती में कट रही थी। हरिहर के पास सब समाचार पहुँच जाता था लेकिन कुछ नहीं बोलते। वह जानते थे कि वह ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं। क्या क्या नहीं कहा लोगों ने उनके बारे में, उनकी मेहरारू,पतोह अऊर बेटवा के बारे में लेकिन कुछ नहीं बोलते। कष्ट तो होता बेचारू को। लोग रोज-रोज आकर सवाल पूछते, भला-बुरा कहते लेकिन हरिहर का करते बेचारू।
तिलकहरू लोग रोज खदेरन के दरवाजे पर लाइन लगाए रहते। खदेरनबो लईकी का डीटेल जाॅग्रफी अऊर हिस्ट्री देखतीं तो खदेरन उसके परिवार का इकान्मिक्स। कहीं इकान्मिक्स ठीक था जाॅग्रफी गड़बड़ था तो कहीं हिस्ट्री। कहीं हिस्ट्री अऊर जाॅग्रफी ठीक था तो इकान्मिक्स गड़बड़। जहाँ कुछ सही समझ में आया तो उनको सेलेक्ट कर लिया।अब अगला क्रम था लड़की देखने का। खदेरनबो एक के बाद एक लईकी देखतीं लेकिन समस्या यह थी कि जब किसी लड़की को देखतीं तो हरिहरबो की पतोह का चेहरा सामने आता था। वे उससे तुलना करने लगतीं अऊर एक के बाद एक लड़की को नहीं करती गईं। जो लड़की पसंद आती तो उधर खदेरन अपनी इकाॅनमी को सुधारने के लिए उसके घर वालों का सेनसेक्स गिराने पर लग जाते लेकिन बात कहीं नहीं बन पा रही थी। इधर मँगरुआ के मन में भी लड्डू फूटने शुरू हो गए अऊर खूब सपना देखने लगा दिन-रात। चारों तरफ हर घर के भीतर अऊर दुआरी पर मँगरुआ अऊर उसके तिलकहरू चर्चा का विषय बन गए। देखते-देखते अऊर धीरे-धीरे पाँच साल हो गए न तो खदेरनबो को हरिहरबो के पतोह से सुग्घर पतोह मिली अऊर न तो खदेरन को बड़ी इकाॅनमी वाला घर मिला। चारों तरफ लोग मजाक उड़ाने लगे अऊर धीरे धीरे तिलकहरुओं का टाँटा लग गया। मँगरुआ की भी बियाह की उमर निकल रही थी अऊर परेशान होकर एक दिन विद्रोह कर दिया। मजबूर होकर खदेरन अऊर खदेरनबो एक लड़की देखकर बेटवा का बियाह कर दिए। न सुग्घर पतोह मिली, न माल।सब लोग गरियाने लगे तो मुँह छुपाने के अलावा कऊनो उपाय नहीं था अऊर खदेरनबो अंदर ही अंदर धुंकनी की तरह जलती रहीं। हरिहर का परिवार मजे में था अऊर चारों तरफ वाहवाही होने लगी।
'बेबाकी'
नोट : भाई लोग इसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है। गरियाइएगा मत।

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