मंगलवार, 28 जुलाई 2015

जिंदगी भी हमें आजमाती रही और हम भी उसे आजमाते रहे १४


मैंने सबको धन्यवाद कहा और बाहर चला आया बहुत ही गुस्से के साथ, लेकिन एक निराशा का भाव लिए हुए।निराशा इसलिए कि कैसे मेरे पूरे जवाब गलत हो सकते हैं।मेरा आत्मविश्वास एक अस्पताल में मृत शरीर के उस मशीन के सुई के समान हो गया था जिसके रुक जाने के बाद उस शरीर को मृत घोषित कर दिया जाता है।
बहुत ज्यादा ही निराश होकर बाहर जब मैं आया तो समझ में ही नहीं रहा था कि अब क्या करूँ।चेहरा गुस्से से लाल था और उसके कारण थोड़ी कपकपी भी थी शरीर में।वहीं बगल में एक दुकान वाले से एक ठंडी बोतल पानी की लिया, आधा पानी सर पर डालकर मुँह धोया और आधा पानी पीकर बोतल फेंक दिया।एक खाली जगह देखकर बैठ गया।कुछ देर बैठने के बाद फिर मन विचलित होने लगा तो उठकर पान की दुकान खोजने लगा।आधे घंटे खोजने के बाद तो पान की दुकान मिली।पान खाया तो ढंग का पान नहीं और मूड खराब हो गया तो थूक दिया।फिर वहीं पर बैठकर मेरे बनारसी मन ने सोचना शुरू कर दिया।
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यार अईसे कईसे हो सकत कि ससुरा जेतना सवाल पुछलस कुल गलत हो जाई।यार पढ़ें में एतना गदहा अऊर बकलोल ना हई कि एक्को जवाब ना सही हो'।तुरंत दिमाग ने काम किया और मैंने अपने पिछले स्कूल के एक सहकर्मी सोनल जी को फोन लगाया और जितने सवाल याद थे एक-एक कर के पूछा।सोनल जी ने हर सवाल का जवाब बताया और कहा 'अनुराग आपने जितने सवाल मुझसे पूछा और जो अपना जवाब बताया सब सही है।उस प्रिंसिपल को कुछ आता जाता नहीं है।आप निराश मत होइए आपको सफलता जरूर मिलेगी।' 
फिर उनसे थोड़ी देर इधर उधर की बातें करके मैं फोन काट दिया।मेरा आत्मविश्वास थोड़ा सा लौटा लेकिन मैं पूरी तरह आश्वस्त नहीं था।मुझे लगा कि कहीं सोनल जी ने मेरा मन रखने के वजह सै तो ऐसा नहीं कहा।मैं वापस रोहिणी की ओर चल दिया।जब कृष्णेश के यहाँ पहुँचा तो वहाँ मौजूद लोगों ने मेरे चेहरे पर निराशा देखा तो उनको भी कुछ नहीं समझ में आया कि वो क्या बोले।किसी ने कुछ नहीं कहा मुझसे।मैंने कपड़े बदले और तुरंत किताब पलट कर अपने जवाबों को मिलाना शुरू कर दिया।इतने में कृष्णेश की बीवी जी कमरे में चाय के साथ दाखिल हुई।मुझे देखकर पूछा 'भईया कुछ खोज रहे हैं क्या?' मैंने कहा 'हाँ भाभी कुछ सवालों के जवाब खोज रहा हूँ जो मुझसे आज पूछे गए थे'।उनको पूरा माजरा समझ में आया और बिना बोले कमरे से चली गई।मैं करीब एक घंटे तक किताबों के पन्नों को पलटता रहा।खोजने के बाद मुझे समझ में आया कि जितने सवाल मुझसे पूछे गए, मेरे द्वारा दिए गए सब जवाब सही थे।
मेरे मन में तुरंत यह भाव आया कि ' बढ़िया रहल कि बीएचयू विश्वनाथ मंदिर वाली दुकान से 4000 हजार किताब लेके छुट्टिया में पढ़ गयल रहली नांही बकलोलवा हमसे कुच्छो अनाब-शनाब पूछत हम बकलोलवा के सामने महाबकलोल हो जाइत।'
इसके बाद तो मेरा आत्मविश्वास सातवें आसमान पर पहुँच गया।अगले दिन मुझे एक और स्कूल से फोन आया।वहाँ PGT HISTORY और POL. SC दोनों की जगह खाली थी।मैंने फोन करने वाले साहब से कहा कि मैं दोनों विषयों को पढ़ाने के लिए तैयार हूँ बशर्ते मुझे 60000 रू वेतन के साथ बाकी सुविधाएँ चाहिए।चुंकि वह आवासीय विद्यालय था इसलिए मैंने उनको पूरा गुड़ा-भाग करके उनको बताया कि यदि वह दो अध्यापक नियुक्त करते हैं तो उनको दोनों को सुविधाएं देना पड़ेगा और 70000 कुल वेतन देना पड़ेगा।उन्होंने कहा 'अनुराग जी मेरे पास यह पावर नहीं है कि मैं आपको हाँ कर सकूँ।मैं आपकी बात ऊपर तक पहुँचा दूँगा और यदि वह लोग कोई फैसला लेते हैं तो मैं आपको सूचित कर दूँगा'
अब चुंकि आत्मविश्वास मेरा जाग चुका था तो मैंने सोचा कि सिंह साहब को मजा चखाता हूँ।मैंने Vice-Principal साहब को दोपहर में फोन लगाया और उनसे पूछा 'मिस्टर अनुराग आयी एम एक्सट्रीमली सॉरी टू से दैट यू  कुद नॉट मेक इट टू द नेक्स्ट राउंड .'
फिर मैंने उनसे कहा 'सर , व्हाटवेर हैप्पेंड यस्टरडे ऑन द बेसिस ऑफ़ दैट आयी माइसेल्फ वाज कॉंफिडेंट एंड कन्फर्म अबाउट योर रिस्पांस .'
उन्होंने फिर मुझसे पूछा  'मिस्टर सिंह हाउ कम यू कैन बी कॉंफिडेंट अबाउट माय रिस्पांस ?
मैंने उनसे कहा, 'सर, व्हाटवेर हैप्पेंड यस्टरडे ड्यूरिंग इंटरव्यू यू आर ऐन ऑय विटनेस.आई कुडन्ट आंसर  इवन अ सिंगल क्वेस्चन एंड मोरोवर द ऐटिट्यूड ऑफ़ कर्नल सिंह टुवर्ड्स मी वाज वेरी नेगेटिव.बट आई  वुड लाइक टू ड्रा योर अटेन्सन ऑन दिस फैक्ट दैट आई वाज कॉल्ड फॉर पोलिटिकल साइंस बट वाज  इंटरव्यूड विद सोशियोलॉजी क्वेस्चन्स.आल द आंसर्स गिवेन बाई मी वर डेक्लेयर्ड इनकरेक्ट बाई कर्नल सिंह दो आल द आंसर्स गिवेन बाई मी वर 100%  करेक्ट एंड आल द काउंटर आंसर्स गिवेन बाई हिम  वर टोटली इनकरेक्ट.इट्स माय एडवाइस टू योर प्रिंसिपल इदर कॉल समबडी ऐज सब्जेक्ट एक्सपर्ट  फ्रॉम आउटसाइड ऑर आस्क हिम टू रीड एक्सटेंसिवेली बिफोर टेकिंग एनी इंटरव्यू सो दैट स्कूल शुड नॉट लूज़ अ प्रॉमिसिंग टीचर इन नियर फ्यूचर ड्यू टू हिज इन्कॉम्पेटेन्सी.आई विल राईट अ मेल टू  हिम विद अ कॉपी फ़ॉर्वर्डेड टू योर डायरेक्टर मैम.एनीवे इट्स माई हार्ड लक दैट आई कुडन्ट मेक इट . थैंक्स फॉर योर हॉस्पिटैलिटी एंड योर सपोर्ट .'
मैंने वहीं बात काटकर फोन रख दिया।मेरे दिमाग ने सोचा कि Col. Singh को ऐसे नहीं छोड़ा जा सकता है कम से कम यह बात डाइरेक्टर के संज्ञान में होनी ही चाहिए क्योंकि अगले की बेवकूफी के वजह से एक बढ़िया शिक्षक नौकरी से वंचित हो जाएगा और जो इसके गलत जवाबों में हाँ में हाँ मिलाएगा वह नियुक्ति पा जाएगा।वैसा शिक्षक तो पूरी व्यवस्था के लिए बिमारी ही तो होगा। इसके बाद मैंने एक -मेल लिखा जिसकी कापी मैंने Col. Singh, Director और vice-principal को भेजा।अभी तक का मेरा जैसा अनुभव रहा है (करीब 400 विद्यालयों के संपर्क से चाहे परोक्ष या अपरोक्ष रूप से) Principal की कुर्सी पर बैठने वाले ज्यादतर लोग खोखले हैं)
मेरी चिंता और बढ़ती जा रही थी।कैसे और कितने दिन दूसरे के यहाँ रहूँगा और कितने दिन तक किसी से पैसे लूँगा लेकिन एक नई चीज जो अलवर-कांड से निकल कर आई वो था आत्मविश्वास।मुझे भरोसा हो गया कि कोई तो होगा जो मुझे समझेगा और मेरे को मेरे काबीलियत के हिसाब से तौलेगा।अब तच और झुकने की जरूरत नहीं है।फिर दो दिन के बाद एक और स्कूल की तैयारी थी जहाँ यह फैसला होना था कि अब कौन किसको नापेगा।


(क्रमश……)

'बेबाकी'

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